By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Wed, 31 Jan 2024 09:37:31 AM (IST)
Updated Date: Wed, 31 Jan 2024 12:15:41 PM (IST)
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर (Arham Garbha Sadhana)। बच्चे देश का भविष्य होते हैं। उन्हें श्रेष्ठ बनाने के लिए माता-पिता तब प्रशिक्षित करना शुरू करते हैं, जब वह बोलने और समझने में सक्षम हो जाते हैं। परंतु इंदौर में एक ऐसी शख्सियत भी हैं, जो इसके एक कदम आगे जाकर बच्चों के भविष्य पर तबसे काम करना शुरू कर देती हैं, जब वे मां के गर्भ में होते हैं। ये हैं सुनीता छजलानी। वे गर्भ के पहले महीने से ही माता-पिता को थेरेपी देना शुरू करती हैं। इसे इन्होंने 'अरहम गर्भ साधना' नाम दिया है।
अरहम का अर्थ होता है अपने अंदर के हुनर को पहचान कर उजागर करना। इसमें सुनीता कई थेरेपी के माध्यम से कपल के रिश्ते सुधारती हैं, उनके चित्त को शांत व निर्मल बनाती हैं तथा गर्भ में पल रहे बच्चे को बेहतर स्थितियां मिलें, इसके प्रयास करती हैं। इसके बाद तीन-तीन महीने की कार्यशाला में पालकों को श्रेष्ठ माता-पिता बनने का प्रशिक्षण देती हैं।
बच्चे के जन्म के बाद उससे व्यवहार कैसे करना है, भोजन कैसा देना है आदि विषयों को लेकर भी माता-पिता को सिखाती हैं।
गर्भधारण के नौ महीने और डिलीवरी के छह महीने बाद तक यह थेरेपी कार्यक्रम चलता है। सुनीता का मानना है कि लोग बेहतर पालक बनें, ताकि उनका बच्चा बेहतर नागरिक और श्रेष्ठ संतान बने।
सुनीता छजलानी द्वारा इस मंगल कारज को किए जाने की कहानी शुरू होती है वर्ष 1996 से। उस वर्ष जैन संत उपाध्याय ऋषि प्रवीन
इंदौर प्रवास पर आए थे। इस दौरान सुनीता की उनसे भेंट हुई। चर्चा में संत ने बच्चों का लालन-पालन बिगड़ने पर चिंता व्यक्त की थी। संत ने कहा कि लोग माता-पिता तो बन जाते हैं, लेकिन बच्चे की बेहतर देखभाल के लिए तैयार नहीं होते। इसके लिए उन्होंने अपनी संस्था में अरहम गर्भ साधना कार्यक्रम की शुरुआत की। सबसे पहला कार्यक्रम इंदौर में किया गया।
सुनीता बताती हैं कि गर्भधारण होते ही पालकों को कई चरणों में अरहम गर्भ थेरेपी दी जाती है। इसके माध्यम से कपल को बेहतर पैरेंट्स बनाने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए नाममात्र का चार्ज लिया जाता है, लेकिन उसे भी धर्म कार्यों में दान कर दिया जाता है। सुनीता बताती हैं कि वे अब तक करीब 1500 जोड़ों को इस थेरेपी से प्रशिक्षित कर चुकी हैं।
इस काम में संतुष्टि मिलती है क्योंकि जब बच्चे स्वस्थ, सुरक्षित और गुणवान होंगे, तो निश्चय ही अगली पीढ़ी भारत को काफी ऊंचाई पर ले जाएगी। सुनीता का मानना है कि बच्चे को गर्भ में केवल मां ही बदल सकती है क्योंकि इस समय बच्चा मां से 100 प्रतिशत जुड़ा होता है।
इन चरणों में होता 'अरहम गर्भ धारण' थेरेपी
1. कलर कार्ड थेरेपी
गर्भ की शुरुआत होते ही कपल के लिए सबसे पहले कलर कार्ड थेरेपी करते हैं। इसमें आंख बंद करके कपल को उनके पूरे जीवन का स्मरण कराया जाता है। एक तरीके से व्यक्ति थर्ड पर्सन बनकर खुद का एनालिसिस करता है ताकि पति-पत्नी दोनों अपनी पुरानी गलतियों और समस्याओं को याद करके उनके समाधान पर बात कर सकें। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बच्चा पैदा होने के बाद कपल में कोई मतभेद न रहे।
2. फूड चार्जिंग
कलर थेरेपी के बाद भोजन को मंत्रों द्वारा चार्ज यानी शुद्ध किया जाता है। एक तरह से भोजन को प्रसाद बनाया जाता है। यह प्रसाद कपल को खिलाया जाता है। माना जाता है कि जैसा अन्न होता है, वैसा ही मन बनता है। अत: माता-पिता शुद्ध अन्न लें ताकि गर्भ में पल रहा बच्चा भी स्वस्थ बने।
3. अरहम का जाप
शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना होता है। इनमें आकाश, पानी, अग्नि, वायु और पृथ्वी। इस चरण में माता-पिता को इन तत्वों और अपने हारमोंस के बीच बैलेंस रखना सिखाया जाता है। साथ ही ओम की तरह अरहम का जाप करवाया जाता है। इससे भावी माता-पिता में शांति का भाव होता है।
4. सेमिनार
शुरुआती थेरेपी के बाद डिलीवरी तक कपल के लिए हर तीन-तीन महीने के अंतराल में सेमिनार आयोजित किया जाता है। इसमें मां को मंत्रों का जाप कराया जाता है, जिससे बच्चा पिछले जन्म की बुराइयों को भूल जाता है।
5. फीडिंग मंत्र
यह प्रक्रिया डिलीवरी के बाद शुरू होती है। इसमें माताओं को बताया कि जाता है बच्चे को दुग्धपान कराने के लिए अपने मन को शांत रखें, गुस्सा न करें। वात्सल्य मंत्र के जरिए मां अपने दिमाग पर नियंत्रण रखती है। इसके अलावा पैरेंट्स को गले लगाने के लिए कंगारू थेरेपी सिखाई जाती है। बच्चे को क्या और कैसे खिलाना बताया जाता है।
कैंसर रोगियों को भी कराती हैं योग
सुनीता ने बताया कि गर्भवती महिलाओं के साथ ही वह कैंसर पीड़ितों और डायलिसिस सेंटर पर मरीजों को योग भी करवाती हैं, ताकि उनके मन को शांति और मजबूती मिल सके। इसके अलावा अन्य सामाजिक कार्यों में बच्चों की फीस भी देती हैं। साथ ही उनके पास कई मेडिकल संसाधन मौजूद हैं, जिन्हें जरूरत पड़ने पर लोग प्रयोग के लिए निश्शुल्क ले जाते हैं।
दान में जाती है पूरी फीस
गर्भ के समय से लेकर डिलीवरी के छह महीने बाद तक थेरेपी देने के लिए सुनीता नाममात्र का शुल्क लेती हैं। सुनीता बताती हैं- पहले सबकुछ निश्शुल्क था, किंतु तब लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते थे। बाद में जब नाममात्र का शुल्क लेना शुरू किया, तो अब लोग गंभीर होकर थेरेपी को फालो करते हैं। हालांकि जो शुल्क लिया जाता है, उसे धर्मार्थ कार्यों या जरूरतमंदों को दान दे दिया जाता है।