Dussehra 2023 डिजिटल डेस्क, इंदौर। मध्य प्रदेश में कई लोक प्रथाएं प्रचलित है। प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र की अपनी-अपनी प्रभाएं हैं। त्योहारों पर इसका धूम धाम से पालन भी किया जाता है। प्रदेश की एक ऐसी ही टेसू-झांझी की प्रथा या यूं करे संस्कृति है जो भिंड, हरदा समेत प्रदेश के कई जिलों में मनाई जाती है।
दरअसल, टेसू-झांझी की प्रथा क्षेत्र के हिसाब से दो अलग-अलग समय पर मनाई जाती है, जिसमें किसी क्षेत्र में अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से दशहरा तक और किसी क्षेत्र में शरद पूर्णिमा तक टेसू-झांझी खेले जाते हैं। इस खेल में बच्चों की ही अहम भूमिका होती है। बाद में टेसू और झांझी का विवाह कराया जाता है और इसी के साथ शादियों के सीजन की शुरुआत मानी जाती है।
दशहरे से पूर्व लगने वाले मेले में झांझी और टेसू नामक मटकी बेची जाती है, लोग इन्हीं मटकी को खरीद कर लाते हैं। इन मटकियों में से एक लड़के के रूप में टेसू और लड़की के रूप में झांझी होती है। झांझी को लड़की के रूप में सजाया जाता है और टेसू को मछधारी युवक का रूप दिया जाता है। इस सजावट के बाद टेसू रूपी मटकी में अनाज रखा जाता है और झांझी रूपी मटकी में दीपक जलाया जाता है और इन्हें लेकर बच्चे घर-घर जाते हैं।
टेसू-झांझी प्रथा में बच्चों को टेसू और झांझी दिए जाते हैं। लड़के टेसू लेकर घूमते हैं, तो वहीं लड़कियों के हाथ में झांझी दी जाती है। इन दोनों को लेकर बच्चे 'टेसू के रे टेसू के टेसू बैठो आंगन में.. टेसू रे टेसू घंटार बजइयो.. बस गई नगरी बस गए मोर, हरी चिरैया को ले गए चोर' जैसे गीत गाते हुए बधो समूह बनाकर घर-घर जाते हैं, जहां उन्हें दक्षिणा और अनाज देकर विदा किया जाता है।
इस प्रथा का समापन टेसू-झांझी के विवाह के साथ होता है। दशहरा अथवा शरद पूर्णिमा पर टेसू झाझी का धूमधाम से विवाह करवाया जाता है और आतिशबाजी भी होती है। जिसके बाद इन्हें किसी जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है। माना जाता है कि टेसू-झांझी की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। ऐसे में इसे प्रत्येक वर्ग द्वारा मनाया जाता है।