नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। प्रकृति केंद्रित विकास मंच द्वारा आयोजित प्रकृति संवाद कार्यक्रम में बुधवार को स्कूली बच्चों ने रोचक अंदाज में प्रकृति से संवाद स्थापित किया। उन्होंने न सिर्फ प्रकृति का महत्व जाना बल्कि इसे बचाने का संकल्प भी लिया। प्रकृति का महत्व बताते हुए कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बच्चों से पूछा कि हम सब भारत माता की जय बोलते हैं, लेकिन क्या कभी आपने अमरिका माता या इंग्लैंड माता सुना है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम धरती को माता कहते हैं। इसकी पूजा करते हैं।
यह प्रकृति ही है जो हमें हमेशा देती है कभी कोई अपेक्षा नहीं करती। प्रकृति केंद्रित विकास मंच के संयोजक, प्रख्यात चिंतक और विचारक गोविंदाचार्य ने इस अवसर पर कहा कि किसी समय हम नारा लगाते थे रोटी, कपड़ा और मकान मांग रहा हिंदुस्तान, लेकिन अब यह शुद्ध हवा, पानी और आहार मांग रहा हिंदुस्तान हो गया है।
यह शुद्ध हवा, पानी और आहार की मांग करने वाला आंदोलन है। हम सभी को समन्वय स्थापित करते हुए प्रकृति को बचाने की दिशा में आगे बढ़ना है। कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के पद्मश्री से सम्मानित अतिथियों ने अपने अनुभव साझा किए और आव्हान किया कि देश की नई पीढ़ी प्रकृति को बचाने के लिए आगे आए।
विजयवर्गीय ने रोचक अंदाज में बच्चों से संवाद स्थापित करते हुए पूछा कि पेड हमें क्या देते हैं। बच्चों ने जैसे ही कहा आक्सीजन, उन्होंने पूछा क्या कभी किसी पेड़ ने आक्सीजन का बिल किसी को दिया है।
दरअसल प्रकृति का संतुलन पेड़ों की वजह से ही बना हुआ है। पेड आक्सीजन देकर कार्बन डाईआक्साइड सोंखते हैं और प्रकृति का संतुलन बनाए रखते हैं। प्रधानमंत्री ने एक पेड़ मां के नाम अभियान चलाया है, हम बच्चों से कहते हैं कि वे दो पेड़ लगाएं। एक मां के नाम और दूसरा पिता के नाम।
मैं विद्यार्थी के रूप में आया हूं
मैं यहां अतिथि के रूप में नहीं बल्कि विद्यार्थी के रूप में आया हूं। हमने प्रकृति का जो शोषण किया है उसे लेकर बात होना चाहिए। संवाद, मंथन होगा तो ही अमृत निकलेगा।
केबिनेट मंत्री तुलसीराम सिलावट
पहले स्कूलों में बागवानी का पाठ पढ़ाया जाता था। इससे बच्चे सीधे प्रकृति से जुड़ते थे, लेकिन इसे पाठ्यक्रम से हटा दिया गया। बच्चों को प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाना है तो हमें बागवानी को फिर से पाठ्यक्रम में जोड़ना होगा।
पद्मश्री महेश शर्मा
हमें प्रकृति को बचाना है तो हमें अपने आचरण में बदलाव लाना होगा। संयमित संसाधनों में जीवन गुजारना होगा। मानव निर्मित नहीं बल्कि प्रकृति केंद्रित जीवन जीना होगा। मैं और मेरी पत्नी प्राकृतिक आवास में रहते हैं। हमारे घर किसी तरह का कोई इलेक्ट्रानिक उपकरण नहीं है। हम जंगल से लकडियां एकत्रित कर ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। आज तक हमने कभी किसी पेड को ईंधन के लिए नहीं काटा। हमारे घर बिजली कनेक्शन है, लेकिन हम उसका न्यूनतम इस्तेमाल करते हैं। एक माह में बमुश्किल एक यूनिट बिजली जलती है।
पद्मश्री दिलीप कुलकर्णी