जितेंद्र यादव, इंदौर। मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र से गेहूं की दो जुड़वां किस्में निकली हैं। जल्द ही ये देश के गेहूं उत्पादक राज्यों के खेतों में लहलहाती दिखाई देंगी। एक का नाम पूसा-अहिल्या है तो दूसरी का नाम पूसा-वाणी। बीज रूप में दोनों के माता-पिता एक ही हैं। जिस तरह एक ही माता-पिता की दो संतानें रूप और गुण में हमेशा एक-सी नहीं होतीं, उसी तरह अहिल्या और वाणी में भी कुछ अंतर है। अहिल्या का विकास मध्यभारत की जलवायु के हिसाब से किया गया है तो वाणी को प्रायद्वीपीय (समुद्र तट) राज्यों की जलवायु के अनुकूल बनाया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के इंदौर स्थित क्षेत्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र ने इन दोनों प्रजातियों को विकसित किया है।
इंदौर केंद्र से निकली गेहूं की प्रजातियों के परिवार में इन प्रजातियों में बहनों का रिश्ता इसलिए कहा जा रहा है कि इनका मातृ बीज गुजरात और पितृ बीज पंजाब से लेकर इनकी क्रॉसिंग कराई गई है। एक ही अनुसंधान केंद्र पर एक ही समय में विकसित होने से दोनों जुड़वां हो गईं। पूसा-वाणी का वैज्ञानिक नाम एचआइ-1633 है तो पूसाअहिल्या को एचआइ-1634 है। देश के किसानों के लिए यह खुशी का समय है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में अपने गजट में प्रकाशित कर इन्हें मान्यता दे दी है।
अहिल्या देवी के सम्मान में रखा नाम
क्षेत्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र के प्रभारी और बीज प्रजनक डॉ. एसवी साईंप्रसाद का कहना है कि गेहूं की दोनों प्रजातियां पैदावार ही नहीं, गुणवत्ता में भी पुरानी किस्मों से बेहतर हैं। पूसा-वाणी को विद्या की देवी सरस्वती को समर्पित किया गया है, जबकि पूसा-अहिल्या का नामकरण देवी अहिल्याबाई होलकर के सम्मान में किया गया है। अक्टूबर से इनका ब्रीडर बीज मिलेगा। बीज निगम व संस्थाओं को इसका बीज उपलब्ध करवाकर फाउंडेशन (आधार) बीज तैयार किया जाएगा।
इंदौर से अब तक निकल चुकी हैं 37 किस्में
इंदौर के क्षेत्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र से 37 प्रजातियां निकल चुकी हैं। इनमें 2001 से 2015 के बीच रोटी के लिए शरबती गेहूं की अमृता (एचआइ 1500), हर्षिता (एचआइ 1531), स्वर्णा (एचआइ 1479), पूर्णा (एचआइ 1544) व पूसाप्राची (एचआइ 1563) शामिल हैं। ड्यूरम (कठिया) प्रजातियां मालव कीर्ति (एचआइ 8627), पोषण (एचआइ 8663) व पूसा मंगल भी इसी दौर में निकली हैं।
पूसा
अहिल्या की पैदावार अधिक है जबकि पूसावाणी गुणवत्ता में भारी है। एक से अनाज का भंडार भरेगा तो दूसरे में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक है। पूसा-वाणी बायोफोर्टिफाइड वैरायटी है। गेहूं की दोनों किस्मों की रोटी बहुत मुलायम होगी। बिस्कुट बनाने में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। दोनों शरबती गेहूं की किस्में हैं।
पूसा अहिल्या
अधिकतम उत्पादन 70.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगा। पौधे की ऊंचाई 80-85 सेंटीमीटर रहेगी। इसमें आयरन 38.0 पीपीएम, जिंक 37.0 पीपीएम व प्रोटीन 12 प्रतिशत से अधिक है। यह देश के मध्य भाग के मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान के कोटा व उदयपुर गव उत्तर प्रदेश के झांसी क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल प्रजाति है।
पूसा वाणी
अधिकतम उत्पादन 65.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगा। पौधे की ऊंचाई भी 80-85 सेंटीमीटर तक रहेगी। इसमें आयरन, जिंक व प्रोटीन पूसा अहिल्या से भी अधिक होगा। आयरन 41.6 पीपीएम, जिंक 41.1 पीपीएम व प्रोटीन 12.5% से भी ज्यादा होगा। यह प्रजाति महाराष्ट्र, कर्नाटक व तमिलनाडु जैसे राज्यों के लिए उपयुक्त रहेगी।
पहले निकली किस्मों से इसलिए बेहतर
इंदौर क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र से इससे पहले 2007 में शरबती गेहूं की किस्म पूर्णा (एचआइ-1544) निकाली गई थी। 2010 में पूसा-111 (एचडी-2932) जारी हुई थी। दोनों किस्मों में प्रोटीन का स्तर 12 प्रतिशत से कम है। साथ ही आयरन व जिंक की मात्रा भी पूसा-वाणी और पूसा-अहिल्या के मुकाबले कम है।