अमित भटोरे, खरगोन (नईदुनिया)। निमाड़ में बोली जाने वाली निमाड़ी बोली को अब तक राजभाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है। 30 हजार शब्दों के कोष के साथ व्याकरण और समृद्ध साहित्य के बावजूद यह हालात बन रहे हैं। एक दशक से अधिक समय से इसके लिए अभियान चलाया जा रहा है।
अखिल निमाड़ लोक परिषद के पूर्व अध्यक्ष जगदीश जोशीला ने बताया कि किसी भी बोली को राजभाषा का दर्जा दिलाने के लिए उसका शब्दकोष, व्याकरण, साहित्य और लिपि का मानक स्वरूप निर्धारित होना चाहिए। परिषद ने विद्वानों की कमेटी बनाकर वर्ष 2010 में 30 हजार शब्दों को शब्दकोष तैयार कर मप्र संस्कृति विभाग के माध्यम से प्रकाशित करवाया था। इसके बाद से अब तक दस हजार शब्द और जुटाए हैं जिनहें शब्दकोष में स्थान दिया जाना है।
व्याकरण और साहित्य की जानकारी के साथ प्रस्ताव भेजा गया। प्रस्ताव भेजने के बाद गृह विभाग दिल्ली से पत्र आया। इसमें लिखा था कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 345 के अंतर्गत किसी भी बोली को राजभाषा का दर्जा देने का राज्य शासन का दायित्व है। इसके बाद से ही राज्य सरकार से लगातार पत्राचार किया जा रहा है, लेकिन अब तक संतोषजनक जवाब नहीं मिला। खरगोन, खंडवा, बड़वानी, बुरहानपुर जिलों में निमाड़ी का संपूर्ण, जबकि पड़ोसी जिलों में आंशिक प्रभाव है।
13वीं शताब्दी के आसपास हुई निमाड़ी की शुरुआत
निमाड़ी व्याकरण के विशेषज्ञ मणिमोहन चवरे निमाड़ी के मुताबिक 13वीं शताब्दी के आसपास एक स्वतंत्र भाषा के रूप में निमाड़ी की शुरुआत हुई। जब दिल्ली से दक्षिण तक साम्राज्य विस्तार अभियान के दौरान अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा को जीतकर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया, तब प्राचीन 'अनूप-जनपद' का नाम 'निमाड़' हो गया और यहां की बोली निमाड़ी कहलाने लगी। निमाड़ क्षेत्र संस्कृतकाल से ही भाषा, साहित्य, शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता के बल पर अप्रवासियों को आकर्षित करता रहा। निमाड़ी पर राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र और बुंदेलखंड भाषा का असर है।
इनका कहना है
निमाड़ी बोली को राजभाषा बनाने के लिए पत्राचार किया जा रहा है। परिषद की प्रथम बैठक 1953 के रिकॉर्ड के अनुसार 19 सितंबर को निमाड़ी दिवस मनाया जाता है।
-कुंवर उदयसिंह अनुज, अध्यक्ष, अखिल लोक निमाड़ परिषद