Dhar Bhojshala Case: वर्ष 1902-03 की रिपोर्ट रिकार्ड में मौजूद है, नई समिति बनाने की जरूरत नहीं
Dhar Bhojshala Case: धार भोजशाला मामले में केंद्र और राज्य सरकार का जवाब हाई कोर्ट में प्रस्तुत। एक पक्षकार ने नहीं दिया जवाब, कोर्ट ने दिया दो सप्ताह का समय।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Wed, 24 Jan 2024 10:13:43 AM (IST)
Updated Date: Wed, 24 Jan 2024 12:35:52 PM (IST)
धार भोजशाला Dhar Bhojshala Case: नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। धार भोजशाला मामले में मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के समक्ष चल रहीं चार याचिकाओं में मंगलवार को सुनवाई हुई। याचिकाओं में एक पक्षकार को छोड़कर सभी के जवाब आ चुके हैं। जिस पक्षकार ने जवाब नहीं दिया, कोर्ट ने उससे दो सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने को कहा है। मंगलवार की सुनवाई में एक पक्षकार ने इस मामले में समिति गठित करने की बात कही। शासन के वकील ने इसका विरोध किया और कहा कि वर्ष 1902-03 में एक रिपोर्ट तैयार हुई थी, जो पहले से न्यायालय के रिकार्ड में मौजूद है। नई समिति गठित करने की आवश्यकता नहीं है।
धार भोजशाला विवाद को लेकर हाई कोर्ट में चल रही जनहित याचिकाओं में से पहली याचिका वर्ष 2013 और अंतिम याचिका वर्ष 2022 में दायर हुई थी। इन सभी की सुनवाई एकसाथ चल रही है। वर्ष 2022 में दायर अंतिम याचिका हिंदू फ्रंट फार जस्टिस ने दायर की है। इसमें मांग की गई है कि मुसलमानों को भोजशाला में नमाज पढ़ने से तुरंत रोका जाए और हिंदुओं को नियमित पूजा का अधिकार दिया जाए।
याचिका में कहा गया है कि हर मंगलवार को हिंदू भोजशाला में यज्ञ कर उसे पवित्र करते हैं और शुक्रवार को नमाज के लिए आने वाले मुसलमान उन्हीं यज्ञ कुंडों को अपवित्र कर देते हैं। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के आरंभिक तर्क सुनने के बाद राज्य शासन, केंद्र शासन सहित अन्य संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। एक पक्षकार को छोड़कर शेष सभी याचिकाओं में जवाब दिए जा चुके हैं जो कोर्ट के रिकार्ड में दर्ज हैं।
मंगलवार को एक पक्षकार ने मामले के निराकरण के लिए समिति गठित करने का सुझाव दिया। कोर्ट ने कहा कि पहले सभी संबंधित पक्षकारों के जवाब आ जाएं, इसके बाद इस संबंध में विचार करेंगे।
गौरतलब है भोजशाला विवाद काफी पुराना है। हिंदू पक्ष का कहना है कि यह
देवी सरस्वती का मंदिर है। कुछ समय पहले मुसलमानों ने यहां मौलाना कमालुद्दीन की मजार बनाई थी। भोजशाला परिसर के खंभों पर आज भी देवी-देवताओं के चित्र और संस्कृत में श्लोक लिखे हुए हैं। पाली भाषा में शिलालेख भी लगे हैं।
अंग्रेज भोजशाला में लगी वाग्देवी की मूर्ति लंदन ले गए थे। याचिका में कहा गया है कि भोजशाला हिंदुओं के लिए उपासना स्थली है। भोजशाला परिसर की खोदाई और वीडियोग्राफी कराने की मांग भी की गई है। इस याचिका के साथ 33 फोटोग्राफ भी संलग्न हैं।
यह है भोजशाला का इतिहास
-धार में परमार वंश के राजा भोज ने 1034 में सरस्वती सदन की स्थापना की थी। दरअसल, यह एक महाविद्यालय था जो बाद में भोजशाला के नाम से विख्यात हुआ। राजा भोज के शासनकाल में ही यहां मां सरस्वती (वाग्देवी) की मूर्ति स्थापित की गई थी। यह मूर्ति भोजशाला के पास खोदाई में मिली थी। 1880 में इसे लंदन भेज दिया गया।
कब क्या हुआ
-भोजशाला को लेकर 1995 में मामूली विवाद हुआ था। इसके बाद मंगलवार को हिंदुओं को पूजा और शुक्रवार को मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई।
-12 मई 1997 को प्रशासन ने भोजशाला में आम नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। हिंदुओं को वसंत पंचमी पर और मुसलमानों को शुक्रवार एक से तीन बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई। प्रतिबंध 31 जुलाई 1997 तक रहा।
-6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया।
-2003 में मंगलवार को फिर से पूजा करने की अनुमति दी गई। पर्यटकों के लिए भी भोजशाला को खोल दिया गया।