Divorce Rules 2023: आपसी सहमति से तलाक के लिए पति-पत्नी का कम से कम छह माह से अलग-अलग रहना जरूरी
Divorce Rules: प्रस्तुत आवेदन में इस बात का उल्लेख जरूर होना चाहिए कि पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Wed, 23 Aug 2023 01:18:10 PM (IST)
Updated Date: Wed, 23 Aug 2023 02:32:28 PM (IST)
आपसी सहमति से तलाक का आवेदन प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।Divorce Rules 2023: इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। हिंदू विवाह अधिनियम 1956 में आपसी सहमति से विवाह विच्छेद (तलाक) का प्रविधान भी है। आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए पति-पत्नी दोनों को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13ख के तहत एक साथ न्यायालय में आवेदन देना होता है। आवेदन विवाह के कम से कम एक वर्ष बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है। इसके पहले आपसी सहमति से तलाक का आवेदन प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
एडवोकेट दृष्टि रावल ने बताया कि आपसी सहमति से
तलाक लेने के लिए यह भी जरूरी है कि पति-पत्नी कम से कम छह माह से अलग-अलग रह रहे हों। आवेदन पत्र को प्रस्तुत करने के बाद पति-पत्नी दोनों को न्यायालय में उपस्थित होना पड़ता है। आवेदन के साथ पति-पत्नी के पृथक-पृथक शपथ पत्र, विवाह पत्रिका, फोटोग्राफ आदि संलग्न करना होता है। आवेदन पत्र 100 रुपये के न्याय शुल्क पर प्रस्तुत कर सकते हैं।
आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए प्रस्तुत आवेदन में इस बात का उल्लेख जरूर होना चाहिए कि पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं और उनके बीच कोई
विवाद नहीं है। आपसी सहमति से तलाक का आवेदन जहां विवाह हुआ, जहां रहते हुए पति-पत्नी के बीच विवाद हुआ और उन्होंने अलग-अलग रहना शुरू किया, जहां पत्नी अपने माता-पिता के साथ रह रही हो उस
न्यायालय के क्षेत्राधिकार में प्रस्तुत किया जा सकता है। आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए प्रस्तुत आवेदन के निराकरण में न्यायालय
भरण पोषण की राशि देने के संबंध में पति-पत्नी के बीच हुए समझौते को भी ध्यान में रखता है।
कई मामलों में पति भरण पोषण की एक मुश्त राशि आवेदन के साथ ही पत्नी को दे देता है। अगर ऐसा नहीं किया गया है तो प्रतिमाह भरण पोषण की राशि तय की जाती है। प्रविधान यह है कि पत्नी को विवाह विच्छेद के पश्चात भरण पोषण की राशि तब तक ही मिलती है जब तक की वह दूसरा
विवाह न कर ले या नौकरी, व्यवसाय से अपने भरण पोषण के लिए पर्याप्त आय न अर्जित करने लगे।
आपसी सहमति से होने वाले तलाक के समझौते में इस विवाह से उत्पन्न संतान के पालन पोषण के संबंध में भी स्पष्ट निर्देश होते हैं कि पति-पत्नी में से संतान की देखभाल कौन करेगा। नए प्रविधानों के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए प्रस्तुत आवेदन के निराकरण में कुलिंग पीरियड की आवश्यकता नहीं रहती। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जहां पति-पत्नी के बीच समझौते की कोई संभावना ही न हो वहां न्यायालय स्वविवेक से छह माह के कुलिंग पीरियड की अवधि को समाप्त भी कर सकता है।