
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। मुस्लिम दंपती द्वारा शरीयत कानून के अनुसार मुबारत पद्धति (आपसी सहमति) से लिए गए तलाक को कुटुंब न्यायालय ने नामंजूर कर दिया। मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो युगलपीठ ने इसे दोबारा कुटुंब न्यायालय भेज दिया और इस पर दोबारा निर्णय लेने को कहा है।
खजराना क्षेत्र निवासी मुस्लिम दंपती की ओर से दायर आवेदन को कुटुंब न्यायालय ने यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि वे यह सिद्ध नहीं कर पाए कि उन्होंने मुस्लिम कानून के तहत मान्यता प्राप्त तलाक-ए-एहसान और तलाक-ए-हसन से तलाक लिया है।
पत्नी ने कुटुंब न्यायालय के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दायर की। तर्क दिया गया कि जिस पद्धति से तलाक लिया है, वह शरीयत के अनुसार है और सुप्रीम कोर्ट और गुजरात हाई कोर्ट इस पद्धति से लिए गए तलाक को मान्यता दे चुके हैं। हाई कोर्ट ने मामले को दोबारा कुटुंब न्यायालय भेजते हुए कहा कि वह शरीयत कानून के दोनों पद्धति से तलाक के दस्तावेजों पर विचार कर नए सिरे से फैसला ले। याचिकाकर्ता को चूंकि पढ़ाई के लिए विदेश जाना है, इसलिए 15 दिन में सुनवाई पूरी कर आदेश पारित करें।
हाई कोर्ट ने कुटुंब न्यायालय से कहा है कि वह शरीयत कानून के मुताबिक दोनों के तलाक और मुबारत पद्धति से तलाक के दस्तावेजों पर विचार करने के बाद नए सिरे से मामले में फैसला ले। सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि पत्नी को पढ़ाई के लिए विदेश जाना है। इसलिए कुटुंब न्यायालय को शीघ्रता से सुनवाई के लिए कहा जाए।