Divorce Rules: पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं तो उनका कम से कम छह माह से अलग रहना जरूरी
Divorce Rules: आवेदन के साथ पति-पत्नी के पृथक-पृथक शपथ पत्र, विवाह पत्रिका, फोटोग्राफ आदि संलग्न करना होता है।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Thu, 11 Jan 2024 10:59:29 AM (IST)
Updated Date: Thu, 11 Jan 2024 10:59:29 AM (IST)
पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं तो उनका कम से कम छह माह से अलग रहना जरूरीHighLights
- विवाह अधिनियम 1956 के प्रविधानों के तहत यह जरूरी है कि उनकी शादी को कम से कम एक वर्ष पूरा हो गया हो और वे कम से कम छह माह से अलग-अलग रह रहे हों।
- आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए पति-पत्नी दोनों को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 ख के तहत एक साथ न्यायालय में आवेदन देना होता है।
- शादी को अगर एक वर्ष पूरा नहीं हुआ है तो आपसी सहमति से तलाक का आवेदन प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
Divorce Rules: नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। पति-पत्नी अगर आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं तो हिंदू विवाह अधिनियम 1956 के प्रविधानों के तहत यह जरूरी है कि उनकी शादी को कम से कम एक वर्ष पूरा हो गया हो और वे कम से कम छह माह से अलग-अलग रह रहे हों। आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए पति-पत्नी दोनों को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 ख के तहत एक साथ न्यायालय में आवेदन देना होता है।
एडवोकेट सिद्धार्थ सिसोदिया ने बताया कि शादी को अगर एक वर्ष पूरा नहीं हुआ है तो आपसी सहमति से तलाक का आवेदन प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। यह बात भी ध्यान रखें कि आपसी सहमति से तलाक का आवेदन पत्र प्रस्तुत करने के बाद पति-पत्नी दोनों को व्यक्तिगत रूप से न्यायालय के समक्ष उपस्थित होना पड़ता है। आवेदन के साथ पति-पत्नी के पृथक-पृथक शपथ पत्र, विवाह पत्रिका, फोटोग्राफ आदि संलग्न करना होता है। आवेदन पत्र 100 रुपये के न्याय शुल्क पर प्रस्तुत कर सकते हैं।
आपसी सहमति से
तलाक लेने के लिए प्रस्तुत आवेदन में इस बात का उल्लेख जरूर किया जाना चाहिए कि पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक आखिर क्यों लेना चाहते हैं और उनके बीच कोई विवाद नहीं है। आपसी सहमति से तलाक का आवेदन जहां विवाह हुआ वहां, जहां रहते हुए पति-पत्नी के बीच विवाद हुआ वहां और जहां उन्होंने अलग-अलग रहना शुरू किया हो या जहां पत्नी अपने माता-पिता के साथ रह रही हो उस
न्यायालय के क्षेत्राधिकार में प्रस्तुत कर सकते हैं।
भरण पोषण की राशि को भी ध्यान में रखा जाता है
आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए प्रस्तुत आवेदन के निराकरण में न्यायलय भरण पोषण की राशि देने के संबंध में पति-पत्नी के बीच हुए समझौते को भी ध्यान में रखता है। कई मामलों में पति भरण पोषण की एक मुश्त राशि आवेदन के साथ ही पत्नी को दे देता है। अगर ऐसा नहीं किया गया है तो प्रतिमाह भरण पोषण की राशि तय की जाती है। प्रविधान यह है कि पत्नी को विवाह विच्छेद के पश्चात भरण पोषण की राशि तब तक ही मिलती है जब तक की वह दूसरा विवाह न कर ले या नौकरी, व्यवसाय से अपने भरण पोषण के लिए पर्याप्त आय न अर्जित करने लगे।
आपसी सहमति से होने वाले तलाक के समझोते में इस विवाह से उत्पन्न संतान का पालन पोषण के संबंध में भी स्पष्ट निर्देश होते हैं कि पति-पत्नी में से संतान की देखभाल कौन करेगा। कुछ समय पहले तक यह नियम था कि आपसी सहमति का आवेदन प्रस्तुत होने के बाद कोर्ट छह माह कूलिंग पीरियड के रूप में देती थी ताकि पति-पत्नी अगर विवाद के बाद भी साथ रहना चाहे तो परिवार टूटने से बच सके, लेकिन अब
सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशानुसार आपसी सहमति से तलाक के लिए प्रस्तुत आवेदन के निराकरण में कुलिंग पीरियड की आवश्यकता नहीं रहती है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि जहां पति-पत्नी के बीच समझौते की कोई संभावना नहीं हो वहां विचारण न्यायालय स्वविवेक से 6 माह के कुलिंग पीरियड की अवधि को समाप्त कर सकता है।