MP के इंजीनियरिंग कॉलेजों को 'मंदी का कोरोना', पांच साल में पचास से अधिक हुए बंद
प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों की हालत खराब, शिक्षा की गुणवत्ता खराब होने से दूर होते गए विद्यार्थी। 31 हजार सीट पर ही हो पाए प्रवेश।
By sameer.deshpande@naidunia.com
Edited By: sameer.deshpande@naidunia.com
Publish Date: Thu, 10 Dec 2020 06:50:00 AM (IST)
Updated Date: Thu, 10 Dec 2020 07:15:11 AM (IST)

इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। मध्य प्रदेश में इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थिति हर साल खराब होती जा रही है। प्रदेश में 151 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं और इनमें करीब 72 हजार सीटें हैं, लेकिन कॉलेज लेवल काउंसिलिंग (सीएलसी) के कई राउंड कराने के बाद भी इस बार 31 हजार सीटें ही भर पाई हैं। वहीं 2013 में प्रदेश में जब प्री इंजीनियरिंग टेस्ट के आधार पर प्रवेश हुआ करते थे तब करीब 200 कॉलेज थे और इनमें 75 हजार सीट थी। इनमें से 72 हजार सीट भर भी जाती थी लेकिन अब धीरे-धीरे करीब 50 कॉलेज बंद हो गए। प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में कॉलेज और सीट की संख्या कम होने के पीछे विशेषज्ञ कई कारण बता रहे हैं।
ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआइसीटीई) के मार्गदर्शक और एसजीएसआइटीएस के पूर्व निदेशक डॉ. पीके चांदे का कहना है कि प्रदेश में बड़ी संख्या में कॉलेज खुल तो गए थे लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर नहीं थी। नौकरी देने के लिए आने वाली कंपनियों का रूझान प्रदेश के विद्यार्थियों को नौकरी देने का नहीं था। कॉलेजों में शिक्षकों की कमी रही है और जो शिक्षक पढ़ाते हैं उन्हें भी ट्रेनिंग देने का कोई साधन नहीं है। प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों को संचालित करने के लिए एकमात्र राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) ही है। इसमें भी शिक्षा में गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता है। मुझे एआइसीटीई ने कॉलेजों की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए मार्गदर्शक बनाकर रखा है लेकिन सच बात तो यह है कि कॉलेज हमारे हिसाब से अपनी सुविधाओं में बदलाव करने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
40 फीसदी विद्यार्थी चले जाते हैं बाहर
इंदौर के ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट अधिकारी अतुल एन. भरत का कहना है सबसे बड़ी समस्या अनुभवी शिक्षकों की कमी की है। इस समय प्रदेश के 80 फीसद कॉलेजों में बीई और एमई करने वालों से पढ़ाई कराई जा रही है। पीएचडी वाले शिक्षक संस्थानों के पास बहुत कम संख्या में हैं। इनकी सैलरी भी बहुत कम होती है। 15 से 20 हजार रुपये महीने सैलरी शिक्षकों को दी जा रही है जो बहुत कम है। इसमें हम गुणवत्ता वाली शिक्षा के बारे में बात नहीं कर सकते। भरत का कहना है कि आरजीपीवी को भी ज्यादा सक्रिय होने की जरूरत है। जॉब प्लेसमेंट की बात करें तो कॉलेजों और इंडस्ट्रीज के बीच समझौता नहीं होने से विद्यार्थियों को प्रेक्टिकल ट्रेनिंग नहीं मिल पा रही है।
प्रदेश में टॉप 10 कॉलेजों के अलावा बाकी जगहों पर नामी कंपनियां कभी विद्यार्थियों को नौकरी देने के लिए नहीं पहुंच रही। कॉलेजों में अच्छे शिक्षक, लैब और रिसर्च के साधन नहीं होने से हर साल इंदौर के 100 में से 40 फीसदी अच्छे विद्यार्थी बाहर के राज्यों के इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश लेने के लिए जा रहे हैं इसलिए भी प्रदेश में इंजीनियरिंग करने वालों की संख्या कम हुई है। इस बार की प्रवेश प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद ज्यादातर इंजीनियरिंग कॉलेजों में मैकेनिकल, सिविल, इलेक्ट्रिकल जैसी ब्रांच में सीट खाली रह गई है। सिर्फ कंप्यूटर साइंस और आइटी ब्रांच में ही विद्यार्थी मिल पाए हैं।
शिक्षकों को नहीं मिल रही ट्रेनिंग
एसजीएसआइटीएस के निदेशक डॉ. आरके सक्सेना का कहना है प्रदेश में शिक्षा का नया मॉडल तैयार करने की जरूरत है। इसके लिए सभी कॉलेजों को आपस में जोड़ना जरूरी हो गया है और शिक्षकों को समय-समय पर अपडेट रखने के लिए ट्रेनिंग देना जरूरी हो गया है। कोरोनाकाल में जिस तरह के चैलेंज इंजीनियरिंग कॉलेजों को मिल रहे हैं वह संकट से भरे हैं। ऑनलाइन कक्षाएं लेने के लिए ऐसे अनुभवी शिक्षकों की जरूरत है जो विद्यार्थियों को ऑनलाइन विषयों को सरलता से समझा सके। विद्यार्थियों को प्रेक्टिकल प्रोजेक्ट बनाने पर भी जोर देना जरूरी है।
इंजीनियरिंग में विद्यार्थियों की संख्या कम होने का यह भी कारण है
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के आइएमएस संस्थान के ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट अधिकारी अवनीश व्यास का कहना है 2015 तक की बात करें तो तब हर कोई माता-पिता अपने बच्चों को इंजीनियरिंग कराना चाहते थे। बहुत कम ही संख्या हुआ करती थी जब विद्यार्थियों को कॉमर्स कोर्स दिलवाया जाता था। अब चार से पांच साल में माता-पिता और विद्यार्थी कोर्स चयन के लिए ज्यादा जागरूक हुए हैं।
बड़ी संख्या में विद्यार्थी कॉमर्स, साइंस, फार्मेसी, लॉ और आर्ट विषयों की ओर जा रहे हैं। चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी जैसे कोर्स में भी विद्यार्थियों का रूझान पिछले सालों के मुकाबले तेजी से बढ़ा है इसलिए प्रदेश में अब इंजीनियरिंग में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या कम हुई है। टॉप इंजीनियरिंग संस्थानों को छोड़ बाकी में नौकरी मिलने की भी उम्मीद बहुत कम होती है, ऐसे में विद्यार्थी अब भेड़ चाल न चलते हुए अपनी रुचि के विषय लेने लगे हैं।
यह है स्थिति
शिक्षा सत्र संचालित कॉलेज सीट संख्या
2015-16 200 96180
2016-17 194 90303
2017-18 197 79899
2018-19 197 61006
2019-20 160 63113
2020-21 150 56008
(स्रोत: ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के आंकड़ों पर आधारित)