नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर Hello Naidunia Indore। किशोर अवस्था में प्रवेश करते ही बच्चों का बर्ताव बदलने लगता है। यह सब शरीर में हार्मोन के बदलावों से होता है। उम्र के इस पड़ाव में उन्हें अपने जीवन से जुड़े प्रत्येक फैसले खुद लेने का मन करता है। सही-गलत का अंदाजा नहीं होता है। जिद्दी होने के साथ ही कई बार विभिन्न विषयों में वह बहस और सवाल पूछते हैं। ऐसे में रोक-टोककर माता-पिता अपनी जिम्मेदारी पूरी समझते हैं।
बच्चों को पढ़ाई करने का कहते है, मगर वर्तमान दौर में
परवरिश का यह तरीका सही नहीं है, क्योंकि अभिभावकों का रोकना-टोकना उन्हें गलत लगता है। ऐसे में वह इंटरनेट के माध्यम से अपनी जिज्ञासाओं को शांत करते हैं। जहां वह मोबाइल के आदी हो जाते हैं या अपनी बातों को मित्रों के साथ शेयर करते हैं। दोनों ही स्थिति में उन्हें गलत और सही के बारे में कोई नहीं बताता है। यहां अभिभावकों का कर्तव्य होता है कि उन्हें उपदेश देने के बजाय बच्चों से संवाद स्थापित करें। उनकी बातों को टालें नहीं, बल्कि उनके प्रश्नों को पूरा सुनकर जिज्ञासाओं को शांत करने पर ध्यान दें।
यह बात चाइल्ड साइकोलाजिस्ट (बाल मनोविज्ञानी) डा. माया वोहरा ने कही। मंगलवार को उन्होंने हेलो नईदुनिया कार्यक्रम के माध्यम से बच्चों की परवरिश को लेकर मार्गदर्शन दिया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में माता-पिता बच्चों को नंबर के पीछे भागने पर मजबूर करते हैं। 10वीं-12वीं की तैयारी के दौरान उन्हें 90-95 प्रतिशत अंक लाने को कहा जाता है। अच्छा प्रदर्शन नहीं करने पर उनकी तुलना होती है। कई बार डांटा और मारा भी जाता है। ऐसा करने के बजाय अभिभावकों को अपने बच्चों की खूबियां समझने की जरूरत है। उसके रुचि वाले क्षेत्र में उसका भविष्य बनाने में मदद करें। अभिभावकों और बच्चों के बीच संवाद नहीं होने से दूरियां बढ़ती जा रही हैं।
पाठकों द्वारा पूछे गए सवाल और उनके जवाब ......
सवाल- बेटी आठवीं में पढ़ती है। वह कई बार अपनी बात मनवाने के लिए जिद करती है? -वेद प्रकाश राय, इंदौर
जवाब- वह किशोर अवस्था में प्रवेश कर रही है। उसके व्यवहार में बदलाव स्वाभाविक है, क्योंकि हार्मोंस बदलते रहते हैं। उसकी जिज्ञासा का तार्किक जवाब दें। बिलकुल न डांटे।
सवाल- मेरा भतीजा स्कूल से आने के बाद सिर्फ कोचिंग क्लास जाता है। उसके बाद वह पूरे समय मित्रों के साथ रहता है। भैया-भाभी हमेशा डांटते रहते हैं। -राजेश अग्रवाल
जवाब- अच्छे और बुरे के बारे में बताएं। उसके बाद वह अपने मित्रों का चयन कर सकेगा। गलत संगत में नहीं पड़ेगा। माता-पिता को बच्चों को मित्रों पर भी नजर रखना चाहिए। उनके मित्रों से भी संवाद स्थापित करें।
सवाल- नौकरीपेशा माता-पिता को बच्चों की परवरिश करने में काफी दिक्कतें होती है। अभिभावक और बच्चे दोनों में चिड़चिड़ापन आता है। -अनिल कवछाले, इंदौर
जवाब- बच्चों पर पढ़ाई करने का दवाब न डालें। उनके साथ कुछ समय बिताएं। बच्चों से मिले तो मोबाइल और टीवी व अन्य इलेक्ट्रोनिक डिवाइस का उपयोग न करें। उन्हें दिल खोलकर बातें करेने दें।
सवाल- युवा नशे का आदी हो चुका है। इनकी लत छुड़वाने के लिए अभिभावकों को क्या प्रयास करना चाहिए? -सुरेश मंगवानी, इंदौर
जवाब- संवाद करें। नशे के नुकसान पर चर्चा करना चाहिए। कई बार मित्रों के साथ रहकर सिर्फ आनंद के लिए युवा नशे को अपनाते हैं। धीरे-धीरे वह लत बन जाती है।