इंदौर। देश आजाद हुआ। रियासतों का विलय हुआ। राजे-रजवाड़े खत्म हो गए... पर नहीं खत्म हुआ तो उनकी धन-संपदा का विवाद। दावेदार बदलते रहे... पर नहीं बदली तो लड़ने की इच्छा। होलकर राजवंश की संपत्ति की लड़ाई भी इसी का एक हिस्सा है। एक तरफ खासगी देवी अहिल्याबाई होलकर चैरिटीज ट्रस्ट है, तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश सरकार। ट्रस्ट से जुड़े होलकर के वंशज इस दावे के साथ ट्रस्ट की संपत्ति बेच रहे हैं कि यह उनकी निजी संपत्ति है, तो सरकार ने इसे शासकीय घोषित कर रखा है। हाई कोर्ट के स्टे के कारण न तो अब ट्रस्ट अपनी संपत्ति बेच पा रहा है और न ही यह पूरी तरह सरकार के खजाने में दर्ज हो पाई है। लड़ाई अब न्यायपालिका की दहलीज पर है। यह महज संयोग है कि अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से 13 अगस्त को अहिल्याबाई की 221वीं पुण्यतिथि भी है और इसी दिन हरिद्वार कोर्ट में शिव मंदिर को लेकर सुनवाई है। इसी मौके पर खासगी ट्रस्ट की स्थापना, इसकी संपत्ति, इतिहास और विवाद की पड़ताल करती जितेंद्र यादव की विशेष रिपोर्ट...
खासगी ट्रस्ट की संपत्ति की लड़ाई में देश के विभिन्न् स्थानों पर होलकर शासनकाल में देवी अहिल्या द्वारा बनवाए गए देव स्थान, मंदिर, धर्मशालाएं, घाट, बगीचे, बावड़ियां सब संकट में हैं। उस दौर में विभिन्न् नगरों व गांवों में मंदिर, धर्मशालाएं, घाट, छत्रियां, बगीचे, कुंड, बावड़ियां आदि का निर्माण किया गया था। इसमें मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, तमिलनाडु आदि राज्य शामिल हैं।
प्रजा के बीच अहिल्याबाई की छवि एक देवी के रूप में बन चुकी थी। उनका शासन जनोन्मुखी रहा, यही कारण रहा कि उन्होंने खासगी संपत्ति से अधिकांश निर्माण सार्वजनिक संपदा के रूप में जनता की सुविधा के लिए करवाए। बहरहाल ये सब खासगी ट्रस्ट में शामिल हैं और अधिकांश जगह सार्वजनिक उपयोग के निर्माणों पर भी किसी न किसी रूप में शासन के बजाय होलकरों के प्रतिनिधियों का कब्जा है। यहां ट्रस्ट की इच्छा चलती है और सरकार हर वह दस्तावेज जुटाने में लगी है जो ट्रस्ट की संपत्ति को शासकीय सिद्ध कर दे।
मप्र गठन के बाद बना खासगी इतिहास गवाह है कि देश आजाद होने के बाद वर्ष 1948 में विभिन्न् रियासतों का भारत सरकार में विलय हुआ। इसके साथ ही राजाओं की संपत्ति भी शासन की संपत्ति हो गई। होलकर रियासत का समूचा क्षेत्र और संपत्ति भी शासन में निहित हो गई। भारत सरकार ने होलकर रियासत की संपत्ति को मध्यभारत (तब वर्तमान मध्य प्रदेश मध्यभारत कहलाता था) सरकार में दर्ज कर दिया। तब मध्यभारत सरकार के पास संसाधनों की कमी थी। जमी-जमाई व्यवस्था को ध्यान में रख एक अनुबंध किया गया और होलकर राजघराने को ही इन संपत्तियों की देखभाल की जिम्मेदारी दी गई।
देशभर में फैली होलकर राजघराने की संपत्तियों के रखरखाव के लिए हर साल 2 लाख 92 हजार रुपए का शुल्क तय किया गया। यह शुल्क होलकर राजवंश के प्रतिनिधियों को दिया जाने लगा। मप्र राज्य के गठन तक यह व्यवस्था चलती रही। नवंबर, 1961 में मध्य प्रदेश के गठन के बाद 27 जून 1962 को खासगी (देवी अहिल्याबाई होलकर चैरिटीज) ट्रस्ट बना। होलकर राज्य की धार्मिक व सांस्कृतिक संपत्ति को इस ट्रस्ट में शामिल किया गया। यशवंतराव होलकर की बेटी उषाराजे को अध्यक्ष बनाया गया। राज्य के प्रतिनिधि के रूप में कमिश्नर व केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में एक अधिकारी को ट्रस्टी नामित किया गया।
मैं तीन साल पहले ही आया हूं। पहले क्या हुआ-क्या नहीं, यह जाननासमझना बहुत जरूरी है। ट्रस्ट वैसे ही काम कर रहा है जैसे पहले काम करता था। - रिटायर्ड कर्नल एन भटनागर, सचिव और अटॉर्नी, खासगी ट्रस्ट
देशभर में फैली खासगी ट्रस्ट की संपत्तियां शासन की हैं। पुराने दस्तावेजों से भी यह साबित होता है। खासगी ट्रस्ट के होलकर वंश के सदस्य हरिद्वार सहित अन्य जगह की संपत्तियों की अवैध तरीके से खरीदी-बिक्री कर रहे हैं। न्यायालयीन प्रकरणों में मध्यप्रदेश शासन भी इंटरविनर बन रहा है। हम हर हाल में ट्रस्ट की संपत्ति को बचाएंगे। - आकाश त्रिपाठी, कमिश्नर और खासगी ट्रस्ट में शासकीय प्रतिनिधि
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अहिल्याबाई की सास महारानी गौतमाबाई के आग्रह पर बना 'खासगी'
- खासगी को समझने के लिए हमें महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी और मराठाओं के इतिहास में लौटना पड़ेगा। बात वर्ष 1732 के दौर की है। तब पुणे में छत्रपति शिवाजी महाराज के पोते छत्रपति साहूजी महाराज का शासन था। उन्हें पेशवा नियुक्त किया जा चुका था।
- पेशवा की संधि के तहत इंदौर व मालवा क्षेत्र की सूबेदारी होलकरों को सौंपी गई। मल्हारराव होलकर को इंदौर का सूबेदार बनाया गया। इसके साथ ही धार में पंवारों और उज्जैन में सिंधियाओं को सूबेदारी दी गई थी।
- वर्ष 1733-34 का दौर था। मल्हारराव अक्सर युद्ध पर रहने लगे। इधर इंदौर में राजमहल, राजपरिवार की सुविधाओं के खर्च और दान-धर्म की व्यवस्था में मुश्किलें आने लगीं। तब महारानी गौतमाबाई ने पेशवा तक इसकी शिकायत की।
- गौतमाबाई की समस्या को साहूजी महाराज ने गंभीरता से लिया। उन्होंने एक निधि स्थापित की। इसे खासगी दौलत या खासगी जागीर नाम दिया गया। लूट और आक्रमण से मिली दौलत खासगी जागीर कहलाने लगी।
- इस दौलत का 40 फीसदी हिस्सा पेशवा को जाता था और 40 फीसदी हिस्सा लड़ाई जीतने वाले सूबेदार को सैन्य खर्च चलाने के लिए मिलता था। बचे 20 फीसदी में से 10 फीसदी दान-धर्म पर खर्च होता था और 10 फीसदी खासगी में डाल दिया जाता है जिससे राजपरिवार का खर्च चलता था।
- इस 10 फीसदी खासगी संपत्ति पर राजपरिवार की प्रमुख महिला यानी महारानी का अधिकार होता था। उस समय गौतमाबाई को यह अधिकार मिला था। गौतमाबाई के निधन के बाद उनकी बहू अहिल्या को अधिकार मिला।
- बताया जाता है कि उस समय अहिल्याबाई को मिली खासगी संपत्ति का मूल्यांकन करीब 16 करोड़ रुपए था। अहिल्याबाई ने इसी संपत्ति का रखरखाव करते हुए दान-धर्म भी किया और देशभर में मंदिरों, घाटों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया।
35 साल पहले बिकने लगी थी संपत्ति, छह साल पहले जागी सरकार
- खासगी ट्रस्ट की संपत्तियों की बिक्री तो 35 साल पहले ही शुरू हो गई थी, लेकिन सरकार करीब छह साल पहले जागी। वह भी तब नासिक, हरिद्वार (उत्तराखंड), पुष्कर (राजस्थान) और रामेश्वरम् (तमिलनाडु) की संपत्तियों में से अधिकांश बेच दी गई। सबसे पहले ट्रस्ट की नासिक की संपत्ति चोरी-छिपे बेचने का मामला सामने आया।
- ट्रस्ट में शामिल सरकारी प्रतिनिधियों से मिलीभगत कर या गफलत में रखकर न्यायालय से वास्तविक तथ्य छिपा लिए और अपने पक्ष में आदेश करवा लिए। इन्हीं को आधार बनाकर ट्रस्ट की संपत्ति को निजी संपत्ति बताकर इसकी बिक्री शुरू कर दी।
- हरिद्वार में वर्ष 2009-10 में होलकरबाड़ा बेचा तो कुशावर्त घाट को लीज पर देने का अनुबंध कर डाला। इससे पहले पुष्कर में भी 1983-84 से लेकर 1998-99 के बीच बाड़ा व दुकानें बेच दी गईं। उधर रामेश्वरम् में भी 2006 से 2008 के दौरान ट्रस्ट की संपत्ति की रजिस्ट्री हो गई।
- वर्ष 2012 में पहली बार तब यह मामला सामने आया, जब होलकरबाड़ा और कुशावर्त घाट बिकने की जानकारी मिली। पॉवर ऑफ अटॉर्नी के जरिए हरिद्वार की संपत्ति सिखौला परिवार को बेच दी गई।
- यह उजागर होने पर हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी डी. सेंथिल पांडियन ने संपत्ति के दाखिल-खारिज पर रोक लगा दी। रजिस्ट्री निरस्त करने के आदेश भी दिए और नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी बीएल आर्य को निलंबित कर दिया।
- वर्ष 2013 में पौड़ी गढ़वाल के संभागायुक्त कुणाल शर्मा ने उत्तराखंड सरकार को रिपोर्ट सौंपी। उन्होंने कुशावर्त घाट, होलकरबाड़ा और शिव मंदिर की खरीद-फरोख्त को अवैध बताया और तीनों संपत्तियों को मप्र सरकार की होना बताया। साथ ही सीबीआई या स्वतंत्र एजेंसी से जांच की अनुशंसा की।
- इस बीच मध्य प्रदेश सरकार को जानकारी मिली तो वर्ष 2013 में इंदौर के तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी भी हरिद्वार पहुंचे। उन्होंने ट्रस्ट की संपत्ति बचाने के लिए स्थानीय प्रशासन से ठोस कार्रवाई के लिए कहा। हरिद्वार प्रशासन को पत्र दिया कि रिकॉर्ड में तीनों संपत्तियों को मप्र शासन के नाम दर्ज करें।
- आदेश के खिलाफ राजघराने के सदस्यों की याचिका पर हाई कोर्ट ने होलकर घराने के पक्ष में आदेश दिया।
- इसके खिलाफ हाई कोर्ट की युगल पीठ ने स्थगन दे दिया। इस तरह ट्रस्ट की संपत्तियों को मप्र शासन में समाहित करने के आदेश पर भी रोक लग गई। यह रोक अब तक जारी है।