इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। विचारक और इतिहासविद टोनी जोसेफ ने कहा है कि आज चाहे पिज्जा बनाने का श्रेय कोई दूसरा देश ले रहा है लेकिन हकीकत यह है कि दो हजार साल पहले ही भारतीय पूर्वज पिज्जा बना चुके हैं। हड़प्पा संस्कृति के पहले ही भारत में पिज्जा बन चुका था। उक्त विचार इतिहासविद और विचारक टोनी जोसेफ ने व्यक्त किए। वे मंगलवार को अभ्यास मंडल द्वारा जाल सभागृह में आयोजित 60वीं ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे। वे 'हमारे पूर्व व वर्तमान को अर्थवत्ता प्रदान करते प्रारंभिक भारतीय' विषय पर बोल रहे थे। इस अनूठे और इतिहास से जुड़े विषय पर जोसेफ ने स्लाइड शो के माध्यम से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हड़प्पा संस्कृति के भी बहुत पहले भारतीय पिज्जा बनाना शुरू कर चुके थे।
यह बात आज से करीब 2000 साल पहले की है। अब तो पिज्जा बनाने का श्रेय चाहे कोई भी देश ले ले लेकिन इतिहास से सामने आ रही इस हकीकत को नकारा नहीं जा सकता है। भारतीय संस्कृति कई क्षेत्रों के लोगों के आने से मिलकर बनी हुई संस्कृति है। अनेक सभ्यताओं के मिलन की संस्कृति की यह परंपरा शुरुआत से लेकर आज तक कायम है। जब दूसरे स्थानों के लोगों ने आकर भारत को अपनाया, तो हमारे यहां भाषा इंडो-यूरोपियन हो गई।
उसके पहले हमारे यहां भाषा लेको ग्रेडियन थी। इस तरह भारत ने एक भाषी से बहुभाषी होने का सफर तय किया। अमेरिका या यूरोप की संस्कृति और सभ्यता तो बहुत बाद की है। उनसे बहुत पुराना और बहुत अधिक व्यापक आधार की संस्कृति भारत की है। उन्होंने कहा कि भारत में सबसे पहले होमो सेपियंस आए थे और सबसे अंत में आर्य आए। यह विश्व की एकमात्र ऐसी संस्कृति है जो गैर अफ्रीकन है वरना विश्व में के अलग-अलग देशों में जो भी संस्कृतियां हैं, वे सभी अफ्रीकन के योगदान के साथ बनी हुई हैं।
जोसफ ने कहा कि सबसे अंत में आए आर्य ने भारत में अपना डेरा उत्तर भारत में डाला और फिर भी यहीं से पूरे भारत में फैल गए। उनकी भाषा भी वही थी, जो भारत में प्रचलित थी। बस अंतर यह हुआ कि उन्होंने उस भाषा को आर्य भाषा का नाम दे दिया। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में भोपाल के निकट भोजपुर के पास में स्थित भीमबेटका ऐसी जगह है, जहां पर प्राचीनतम भारत में किसी व्यक्ति का मकान होने का साक्ष्य सामने आता है।
उन्होंने मोहनजोदड़ो सभ्यता के अलावा गुजरात के ढोला वीरा और राखीगढ़ी का भी उदाहरण दिया, जहां पर कि मानव की सभ्यता का विकास होने के साक्ष्य सामने आए हैं। अतिथियों का स्वागत अरविंद पोरवाल, अतुल लागू, नेताजी मोहिते, प्रवीण जोशी और वैशाली खरे ने किया। मनीषा गौर ने संचालन किया। अजीत सिंह नारंग ने आभार माना।