Indore News: पेड़ों को गले लगाकर तो देखो बहुत सुकून मिलेगा
Indore News: वर्ष 1901 में तो भारतीय वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बोस ने साबित कर दिया था कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Tue, 02 May 2023 03:18:15 PM (IST)
Updated Date: Tue, 02 May 2023 03:43:48 PM (IST)

Indore News: इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। क्यों न पेड़ों को जीवित प्राणी घोषित कर दिया जाए ताकि उनके अधिकार संरक्षित किए जा सकें। पर मेरी दृष्टि से यह प्रश्न सिर्फ सरकार या उससे संबंधित संस्थाओं के लिए नहीं बल्कि हर उस नागरिक के लिए है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़-पौधों की महत्ता विचारों और शब्दों से व्यक्त करता है। कृत्यों में वह विपरीत हो जाती हैं। वर्तमान को ही ध्यान में रखें तो सड़क निर्माण या ब्रिजों के निर्माण के लिए दो हजार से ज्यादा पेड़ों के काटे जाने की जनहित याचिका डाली गई है, जिसमें पेड़ों में जीवन होने की दुहाई दी जाती है। क्या इस विषय को परे रखकर हम यह प्रश्न खुद से पूछ सकते हैं। क्या पेड़-पौधे भी जीवित प्राणी होते हैं।
यह कहना है पर्यावरणविद स्वप्निल व्यास का। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा कि वर्ष 1901 में तो भारतीय वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बोस ने साबित कर दिया था कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। जबकि भारतीय दर्शन ने तो उससे भी हजारों वर्षों पूर्व पेड़ों को जीवित रूप में भी माना है और सिद्ध भी किया है। वृक्षों में भावनाओं का पाया जाना एक अकाट्य सत्य है अध्ययनों एवं शोधों से यह पता चला है कि वे आपस में बात करते हैं और एक दूसरे पर निर्भर होते हैं उनकी जड़ें एक-दूसरे से संवाद करती हैं तथा उनमें प्रतिस्पर्धा भी देखने को मिलती है।
जमीन के नीचे स्थित जड़ पानी से लेकर पोषक तत्वों तक को साझा करती हैं तथा पेड़ इनका उपयोग संचार के लिए भी करते हैं। उनके जुड़ने को भूमिगत फंगल नेटवर्क के रूप में जाना जाता है। इसे वुड वाइड वेब के नाम से भी उच्चारित किया जाता है। पौधों में भी मनुष्यों की तरह एक नर्वस सिस्टम काम करता है, जो इंटेलिजेंस या विचारशक्ति का ही एक रूप है। यह भी कि पौधे भी याद रखने और सीखने की क्षमता से संपन्न होते हैं। भावना और अहसास को कई बार प्रामाणिक रूप से अभिव्यक्त करना मुश्किल होता है। पर अपने व्यक्तिगत अनुभव एवं समाज के कई लोगों के द्वारा किए गए शोध से में यह आग्रह करना चाहता हूं कि पेड़ों को गले लगाएं एक पेड़ को गले लगाना अपने आप को प्रकृति के साथ जोड़ने की एक सुंदर तकनीक है।
ये हरे पेड़ हमारी नकारात्मक ऊर्जाओं को सोख लेते हैं और हमें सकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं। जब हम पेड़ों को गले लगाते हैं तो हम बहुत उत्साह, खुशी और विश्राम से भर जाते हैं और हमारे नकारात्मक भाव हमसे दूर हो जाते हैं। मनुष्य स्वभावतः सामाजिक प्राणी है। गले मिलने से ऑक्सीटोसिन रिलीज होता है जो हमें रिलैक्स करता है और हमें गर्माहट और शांति का अहसास कराता है।
ऑक्सीटोसिन मनुष्यों में शांत और भावनात्मक जुड़ाव महसूस करने के लिए जिम्मेदार है। इसलिए, जब भी आप किसी पेड़ को गले लगाते हैं, तो आपको अच्छा महसूस होता हैं और आपके मन को बेहतर महसूस होता हैं। यह शरीर और मन को शांत और मजबूत करता है। इसलिए मैं शहर से आग्रह करना चाहता हूं। पेड़ों के साथ समय बिताना शुरू करें। इनसे अच्छा हमदर्द कोई और नहीं, पेड़ों में प्राण होते हैं। यह जनहित याचिका का विषय नहीं, जीवन हित के विचार का अकाट्य सत्य है।