नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इंदौर ने ब्लड कैंसर यानी ल्यूकेमिया के इलाज के लिए एक नई दवा तकनीक विकसित की है। ये तकनीक एल-एस्पेरेजिनेज(एक प्रकार का प्रोटीन, जिसका उपयोग ल्यूकेमिया के इलाज के लिए कीमोथेरेपी दवा के रूप में किया जाता है) का नया इंजीनियर्ड वर्जन बताया गया है। दवा एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) के इलाज पर केंद्रित है। यह बीमारी खून का एक गंभीर कैंसर है, जो अक्सर बच्चों और युवाओं को प्रभावित करता है।
एएलएल का इलाज फिलहाल एल-एस्पेरेजिनेज़ नामक दवा से किया जाता है, लेकिन इसके साथ एक बड़ी समस्या है कि मौजूदा दवाओं के उपयोग से मरीजों को कई गंभीर दुष्प्रभाव झेलने पड़ते हैं। इनमें लिवर डैमेज, एलर्जी और नर्वस सिस्टम की गड़बड़ियां शामिल हैं।
यही वजह है कि बच्चों के लिए यह इलाज और भी कठिन हो जाता है। आईआईटी के अधिकारियों के मुताबिक इस तकनीक को अब डीके बायोफार्मा को सौंपा गया है ताकि दवा का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सके और मरीजों तक पहुंचाया जा सके।
ब्लक कैंसर की इस दवा को आईआईटी इंदौर के बायोसाइंसेज एंड बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग ने प्रो. अविनाश सोनवणे और उनकी टीम ने तैयार की है। उन्होंने इस पर महीनों तक रिसर्च किया है। दवा को क्लिनिकल टेस्ट में अधिक सुरक्षित और असरदार पाया है। इसमें दुष्प्रभाव बहुत कम हैं, जिससे मरीज ज्यादा सुरक्षित रहेंगे।
परीक्षणों में यह दवा 85 प्रतिशत से ज्यादा ल्यूकेमिया कोशिकाओं को नष्ट करने में सक्षम पाई गई है। प्रो. सोनवणे ने बताया कि यह शोध अब तकनीक हस्तांतरण के स्तर तक पहुंच गया है। डीके बायोफार्मा के साथ साझेदारी से यह संभव होगा कि ज्यादा से ज्यादा मरीज खासकर बच्चे और युवाओं को दवा मिल सके। ताकि बीमारी से लड़ने के लिए अच्छे से इलाज किया जा सके।
शोध का मकसद हमेशा लोगों के जीवन को बेहतर बनाना है। दवा के क्लिनिकल टेस्ट हुए है। रिजल्ट अच्छे मिले हैं। दवा का उत्पादन करने के लिए कंपनी से अनुबंध हुआ है। यह कदम ल्यूकेमिया के इलाज को और आसान और सस्ता बनाना है। ताकि अच्छे से इलाज हो सके। - प्रो. सुहास जोशी, निदेशक, आईआईटी इंदौर।