लोकेश सोलंकी, नईदुनिया, इंदौर। पुश्तैनी जमीन पर कालोनी बसाने की डील करने वालों को आयकर के नोटिस से झटका लग सकता है। दरअसल ऐसे तमाम रियल एस्टेट प्रोजेक्ट को विभाग ने खंगालना शुरू कर दिया है जिनमें ज्वाइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट हुआ है। सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स (सीबीडीटी) ने विभाग के तमाम क्षेत्रीय अधिकारियों को बीते वर्षों में हुए ऐसे तमाम प्रोजेक्ट और उनके करार को खंगालने का निर्देश जारी किया है। आसार हैं कि इंदौर व आसपास के जमीन मालिक जिन्होंने कालोनाइजरों के साथ हाथ मिलाया है, उन्हें कैपिटल गेन टैक्स के लिए नोटिस मिल सकता
प्रदेश में करीब छह हजार रियल एस्टेट प्रोजेक्ट हैं जो रेरा में रजिस्टर्ड हैं। बीते वर्षों से अब तक हुए इन प्रोजेक्ट में से लगभग आधे इंदौर परिक्षेत्र में विकसित हो रहे हैं। सीबीडीटी ने वित्त वर्ष 2021-22 से अब तक के तमाम ऐसे प्रोजेक्ट की जानकारी निकालने के लिए कहा है जिनमें ज्वाइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट हुए हैं। सीबीडीटी ने आयकर अधिनियम की नई धारा 45(5ए) के तहत ऐसे सभी जमीन मालिकों से कैपिटल गेन टैक्स की वसूली करने के निर्देश दिए हैं जिन्होंने अपनी जमीन के लिए कालोनाइजरों से करार किया है।
कैपिटल गेन टैक्स की वसूली ऐसे प्रोजेक्ट को रेरा से पूर्णता (कंप्लीशन) प्रमाण पत्र जारी होने के साथ ही किए जाने के निर्देश हैं। 15 सितंबर को जारी हुए सीबीडीटी के इस एसओपी के आधार पर इंदौर में आयकर विभाग ने रियल एस्टेट प्रोजेक्ट की जानकारी खंगालना शुरू कर दी है।
सीए मनोज गुप्ता के अनुसार सीबीडीटी ने जो एसओपी जारी किया है उसमें कोलकाता आयकर विभाग द्वार अपनाई गई प्रक्रिया को आधार बनाया गया है। इसके अनुसार धारा 45(5ए) के तहत ज्वाइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट के आधार पर जमीन मालिक से कैपिटल गेन टैक्स की वसूली होना है। नई धारा में इसकी वसूली कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी होने के बाद होना है।
पहले यह धारा नहीं थी लेकिन ऐसे एग्रीमेंट पर कैपिटल गेन टैक्स लागू होता ही था। अब एसओपी जारी होने के बाद यह माना जा रहा है कि आयकर विभाग हर प्रोजेक्ट को बारीकी से खंगालेगा और साथ में उसके जमीन मालिक की जानकारी की जांच भी होगी। ऐसे में कई जमीन मालिक जो अब तक विभाग की नजर में नहीं थे, वे भी निशाने पर आ जाएंगे।
चार्टर्ड अकाउंटेंट आनंद जैन के अनुसार सीबीडीटी के ताजा निर्देश पर हो रही इस कार्रवाई का प्रभाव बड़े पैमाने पर किसानों पर पड़ता दिख रहा है। इंदौर व आसपास के क्षेत्रों में तो रियल एस्टेट डेवलपर का यह फार्मूला ही है कि वे जमीन मालिक के साथ ज्वाइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट करते हैं। कालोनी विकास के बदले उसे विकसित प्रोजेक्ट में कुछ हिस्सा और जमीन की कीमत के बदले कुछ राशि दोनों दी जाती है। जमीन देने वाले ज्यादातर लोग किसान होते हैं।
आमतौर पर ये लोग न तो आयकर रिटर्न की खानापूर्ति के प्रति गंभीर होते हैं ना ही कैपिटल गेन टैक्स चुकाने या उसकी प्लानिंग में रुचि लेते हैं। अब क्योंकि रेरा और कालोनी की अनुमति देने वाली एजेंसियों से विभाग जानकारी जुटाएगा। जिन-जिन प्रोजेक्ट को पूर्णता प्रमाण पत्र मिलेगा उसमें जमीन देने वाले के आयकर रिकार्ड की जांच होगी। यदि उसने कैपिटल गेन टैक्स की खानापूर्ति बीते वर्षों में नहीं की होगी तो उसे टैक्स और पेनाल्टी का नोटिस मिलेगा।