इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि Indore News। देश की आजादी के बाद और खासकर 90 के दशक में आए आर्थिक उदारीकरण के बाद से लगातार व्यवसायिकता की तरफ बढ़ती पत्रकारिता को कोरोनाकाल ने एक नई दिशा दिखाई है। सामाजिक सरोकारों से दूर होते जा रहे पत्रकार जगत को वैश्विक महामारी ने लोकमानस के मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र की समझ पैदा की है। यह बात देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की विभागाध्यक्ष डा. सोनाली नरगुंदे ने कान्यकुब्ज मंच पत्रिका द्वारा आयोजित संगोष्ठी में कही। देवर्षि नारद की जयंती के उपलक्ष्य में गुरुवार को इंटरनेट मीडिया के जरिए यह संगोष्ठी आयोजित की गई।
'पत्रकारिता में नारदीय दृष्टि' विषय पर हुई इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में डा. सोनाली ने देवर्षि नारद के भक्ति सूत्र को उद्धत करते हुए आपदकाल में पत्रकारों से सलाहकार भूमिका की अपेक्षा की। भारतीय जनसंचार संस्थान दिल्ली के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने बताया कि आदि पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठित देवर्षि नारद ने लोकमंगल का संचार किया था। गाजियाबाद से वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल ने कहा कि भारतीय जनमानस आज भी मीडिया की खबरों में भरोसा करता है। एक पत्रकार का दायित्व है कि सुनी-सुनाई बातों में न जाकर खबरों की गहराई तक जाना चाहिए। एक पत्रकार का सम्पर्क सभी से हो लेकिन मित्रता सिर्फ सत्य से होनी चाहिए। कोरोनाकाल में पत्रकारों का दायित्व कहीं अधिक बढ़ जाता है।
हिन्दी परिवार इंदौर के अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी ने कहा कि नारद जयंती पत्रकारिता से जुड़े लोगों को अपनी कार्यशैली के मूल्यांकन और विश्लेषण करने का अवसर देती है। निष्पक्षता और सत्यता उसका आभूषण है। सर्वब्राह्मण शिखर के सम्पादक शैलेंद्र जोशी ने देवर्षि नारद की पत्रकारिता को न्यायकारी, देव-दानव व मनुज सभी के लिए न्यायकारी व अहिंसक बताया। संगोष्ठी में इंदौर से डा. मुकेश दुबे, योगेंद्र जोशी, रंजना शर्मा, उज्जैन से विवेक वाजपेयी, लखनऊ से प्रो. डीसी मिश्र, विकास पाठक, कानपुर से सौरभ अवस्थी, अजय पाण्डेय, राजेश दीक्षित, नोएडा से मनीषा पाण्डेय, मुंबई से बीके मिश्र तथा भागलपुर से गोपाल कृष्ण पाण्डेय आदि ने भी विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी का संचालन आशुतोष पाण्डेय ने किया। आभार विष्णु पाण्डेय ने माना।