Indore Abhishek Chendke Column: अभिषेक चेंडके, नईदुनिया, इंदौर। विधायक महेंद्र हार्डिया न किसी से ज्यादा दोस्ती रखते हैं और न दुश्मनी। वे नाराज भी तब होते हैं जब उनके विधानसभा क्षेत्र में उनकी मर्जी के बगैर कोई अभियान चल जाता है। बायपास पर निर्माणों के नक्शे निरस्त कर नोटिस थमाने की बात जब विधायक हार्डिया को पता चली तो उन्होंने भोपाल की बैठक में नगरीय विकास मंत्री के सामने अपनी नाराजगी तक जता दी, लेकिन इस मामले में अफसरों की बात ही भोपाल में मानी गई। विधायक हार्डिया की नाराजगी को दरकिनार कर दिया गया। ऊपर से हरी झंडी मिलते ही नियमों में बदलाव करने का पत्र इंदौर से प्रमुख सचिव तक पहुंच गया। उधर कांग्रेस की सरकार के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका में रहे लोगों की जमीन भी अब बायपास पर नप रही है और उन्होंने आंदोलन को हवा देनी भी शुरू कर दी है।
पुरानों को बदलेगी नई अध्यक्ष
जिस नेता को महत्वपूर्ण पद मिलता है तो वह अपने हिसाब से टीम तैयार करने में जुट जाता है। प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अर्चना जायसवाल भी इसी रास्ते पर हैं। उन्होंने सूची तैयार कर ली है। कुछ जिलों में पांच-सात साल से पद लेकर बैठी नेत्रियों को रवानगी देने का वे मन बना चुकी हैं। सूची में झाबुआ, आगर, दमोह, ग्वालियर जैसे कई शहरों की जिलाध्यक्षों के नाम भी हैं। अर्चना अब इन जिलों में अपनी पुरानी टीम की नेत्रियों को मौका दे सकती हैं। उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ से हाल ही में मुलाकात कर मंशा जाहिर की। नाथ ने अर्चना को इंदौर संभाग में होने वाले उपचुनाव पर ध्यान देने के लिए कहा है। जोबट से किसी महिला उम्मीदवार पर भी विचार चल रहा है, क्योंकि पहले वहां की विधायक कांग्रेस की कलावती भूरिया थीं।
वीआइपी कल्चर खत्म, कमरे की रौनक भी गायब
संभागीय संगठन मंत्री की व्यवस्था खत्म होने के साथ ही जावरा कंपाउंड के भाजपा कार्यालय की तीसरी मंजिल का वीआइपी कल्चर भी खत्म हो गया। यहां के कमरे की रौनक गायब सी हो गई है। संभागीय संगठन मंत्री के निकट रहने वाले कुछ विधायक और पूर्व पदाधिकारी अचानक हुए इस फैसले से प्रभावित भी हुए हैं। पहले तीसरी मंजिल पर भाजपा नेताओं को संगठन मंत्री से मिलने के लिए अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता था। मुलाकात में देरी से नाराज एक नेता ने तो इंटरनेट मीडिया पर टिप्पणी कर दी थी कि ऐसा लगता है कि संभागीय संगठन मंत्री से नहीं, आइएएस से मिलने जा रहे हैं। तीसरी मंजिल का कमरा कुछ दिनों बाद फिर आबाद हो सकता है। संगठन ने तीन सह संगठन मंत्री और बनाने की तैयारी की है। एक सह संगठन मंत्री को इंदौर और उज्जैन संभाग का जिम्मा मिल सकता है और वे इंदौर में ही रहेंगे।
अध्यक्षों के भरोसे कांग्रेस और भाजपा
मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी जैसे प्रमुख दलों को कार्यकारिणी घोषित करने की फुर्सत तक नहीं मिल रही है। दो-तीन सालों से अध्यक्ष अकेले ही संगठन चला रहे हैं। भाजपा में तो रायशुमारी होने के बाद प्रदेश संगठन तक नाम भी पहुंच गए। इस बात को भी सालभर से ज्यादा बीत गया, लेकिन अभी तक कार्यकारिणी घोषित नहीं हो पाई है। ऐसा ही हाल कांग्रेस का भी है। यहां अकेले विनय बाकलीवाल ही अध्यक्ष की कुर्सी पर हैं। कांग्रेस ने कार्यकारिणी तो दूर कार्यकारी अध्यक्ष भी अन्य नेताओं को नहीं बनाया है। जिले के ग्रामीण भाजपा नेताओं को तो सांवेर उपचुनाव के समय अच्छे पद का भरोसा दिया गया था। नेताओं ने खूब मेहनत की, लेकिन जिले की कार्यकारिणी की सूची भी अब तक फाइनल नहीं हो पाई है। सिंधिया समर्थकों के कारण भी सूची पर निर्णय नहीं हो पा रहा है।