प्रणय चौहान, इंदौर। कुछ वर्ष पहले जब शहर में ई-रिक्शा का चलन शुरू हुआ था तो शहरवासियों को उम्मीद थी कि उन्हें आवागमन के लिए प्रदूषण रहित साधन मिल गया। न वाहन की कर्कश आवाज सुनाई देगी न इससे निकलने वाला काला धुआं नजर आएगा। ऐसा हुआ भी, लेकिन राहत के नाम पर शुरू हुई सुविधा शहरवासियों के लिए अब परेशानी का सबब बन गई है।
शहर में ई-रिक्शा की संख्या इतनी तेजी से बढ़ी कि किसी को कुछ समझ ही नहीं आया। राजवाड़ा जैसा सघन क्षेत्र जहां पैदल चलना भी मुश्किल है वहां ये ई-रिक्शा बेखौफ होकर सड़क पर मंडराते हैं और कोई कुछ नहीं कर पाता। राजवाड़ा पर तो पुलिस चौकी के समीप जिम्मेदारों की आंखों के सामने ही अस्थाई ई-रिक्शा स्टैंड बन गया है।
आज हालत यह है कि जिस गली, मोहल्ले, कालोनी, सड़क पर पर निकल जाओ, ई-रिक्शा ही नजर आते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि ई-रिक्शा की संख्या नियंत्रित करने के लिए आज तक कोई नीति नहीं बनी। इतना ही नहीं न तो इनके लिए कोई रूट प्लान तैयार किया गया न और न कभी किराया नियंत्रित करने का प्रयास हुआ। ऐसा नहीं कि जिम्मेदारों ने कागजों पर ई-रिक्शा को नियंत्रित करने का प्रयास न किया हो, लेकिन ये प्रयास कभी कागजों से निकलकर मैदान में नजर नहीं आए।
करीब छह माह पहले महापौर ने खुद सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि राजवाड़ा क्षेत्र ई-रिक्शा मुक्त होगा, लेकिन घोषणा भी हवा में उड़ गई और कुछ नहीं हुआ। परिवहन विभाग के अनुसार शहर में वर्तमान में बारह हजार से ज्यादा ई-रिक्शा दौड़ रहे हैं। हाई कोर्ट खुद परिवहन विभाग, जिला प्रशासन और नगर निगम को ई-रिक्शा की वजह से शहरवासियों को हो रही परेशानी को लेकर फटकार लगा चुका है, बावजूद इसके कुछ नहीं हुआ। कुछ वर्ष पहले जब शहर में ई-रिक्शा शुरू हुए थे तो लोग उन्हें अचरज भरी नजर से देखते थे। आज हालत यह है कि ई-रिक्शा देखते ही शहरवासियों को कोफ्त होने लगती है।
22 जुलाई को कलेक्टर, पुलिस आयुक्त और निगमायुक्त को व्यक्तिगत रूप से हाई कोर्ट के समक्ष उपस्थित होकर बताना है कि यातायात सुधार के लिए उन्होंने क्या उपाय किए? आदेश को एक सप्ताह होने को आया है, लेकिन मजाल है शहर के यातायात में रत्तीभर भी कोई सुधार हुआ हो। जनप्रतिनिधियों का भी आलम यह है कि रोजाना नई-नई घोषणा कर रहे हैं, लेकिन शायद ही कोई घोषणा मूर्तरूप ले पाती हो। जिम्मेदार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की कुंभकर्णीय नींद टूटने का नाम नहीं ले रही है। ई-रिक्शा चालक प्रदूषण न फैलाने के नाम पर मिली छूट का फायदा उठाकर ट्रैफिक को बद से बदतर बना रहे हैं। जहां सवारी ने हाथ दिया, वहीं रिक्शा रोक दिया, चाहे पीछे से आ रहे वाहन चालक दुर्घटना का शिकार ही क्यों न हो जाएं।
राजवाड़ा पर तो मनमर्जी का आलम ये है कि भले ही दो पहिया वाहन को जाने की जगह न मिलें, लेकिन इन्हें अपने वाहन खड़े करने की इतनी जल्दी होती है कि चाहे इनके कारण वाहनों की कतार लग जाए। इन्हें अपनी हिसाब से ही चलना है। पिछले साल प्रशासन ने इन पर सख्ती कर इनके 26 रूट तय किए थे, लेकिन संचालकों के विरोध के बाद सख्ती हवा में उड़ गया। इतना ही नहीं जिला प्रशासन, ट्रैफिक पुलिस व आरटीओ ने भी अपनी जिम्मेदारी से हाथ खीच लिया है। इस अनदेखी का खामियाजा शहर की जनता भुगत रही है। जनता के लिए एक अच्छी सुविधा परेशानी का सबब बन गई है।
शहर में लगातार ई-रिक्शा की संख्या बढ़ रही है। वर्तमान में 12000 से ज्यादा सड़कों पर बेतरतीब दौड़ रहे हैं। वहीं कई रहवासियों ने इसे धंधा बना लिया है। वे ई-रिक्शा खरीदकर कमीशन पर किराए पर चला रहे हैं और रोज की बढ़िया कमाई कर रहे हैं। उधर, शहर में 30 से 35 फीसदी ई-रिक्शा का संचालन महिलाएं कर रही हैं। इनकी बैटरी भी असुरक्षित तरीके से चार्ज हो रही है। लेड एसिड बैटरी से संचालन किया जा रहा है। कई चालक ज्यादा कमाई के लिए ओवर स्पीड में वाहन चला रहे हैं। जबकि ज्यादा सवारी बैठाने से जरा से में इसका संतुलन बिगड़ जाता है और ये पलट जाती है। इससे सवारियां कई बार दुर्घटना का शिकार हो रही है।
शहर में कई कंपनियां ई-रिक्शा बेचती हैं और ऑनलाइन या स्थानीय डीलरों से खरीद सकते हैं। इसकी कीमतें 1.10 लाख रुपये से 4.10 लाख रुपये तक हो सकती हैं। कई वेबसाइटों द्वारा बताया गया है। लोकप्रिय ई-रिक्शा माडल में मिनी मेट्रो, अतुल एलीट प्लस, महिंद्रा और सारथी डीएलएक्स शामिल हैं। कीमतें माडल, फीचर्स और आन रोड कीमत के आधार पर अलग होती हैं। ई-रिक्शा में अलग विशेषताएं होती हैं, जैसे कि बैटरी क्षमता, पेलोड क्षमता और मोटर पावर। यात्रियों और सामानों को ले जाने के लिए किया जाता है।
सरकार ई-रिक्शा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं भी चला रही है। ट्रैफिक के अधिकारियों के अनुसार दूरस्थ कालोनियों में परिवहन का अभाव होने से लोगों को अपने वाहनों का उपयोग करना पड़ रहा है। शहर में बेतरतीब चल रहे ई-रिक्शा के रूट इन क्षेत्रों में तय किए जा सकते हैं। इनके संचालन के लिए रूट के साथ ही स्टैंड भी तय किए जा सकते हैं। खासकर नए विकसित हो रहे शहर में इनके स्टैंड बनाकर इन्हें वहां खड़ा किया जा सकता है। सिटी बसों के साथ फीडर रूट बनाकर उपयोग कालोनी क्षेत्रों के लिए किया जा सकता है। ट्रैफिक पुलिस समय पर इनकी जांच करें और आरटीओ किराया सूची बनाए।
ई-रिक्शा का रूट नगर निगम व प्रशासन तय करेगा, ट्रैफिक विभाग नहीं। किराया व रजिस्ट्रेशन आरटीओ तय करेगा। इनकी सीमा तय होना चाहिए। शहर में जितनी आवश्यकता है उतनी ही होना चाहिए। रोजाना संख्या बढ़ रही है, इस पर लगाम बहुत जरूरी है और रूट भी तय होना चाहिए। मुख्य मार्गों पर प्रतिबंध लगना चाहिए। ये धीमी चलते हैं, इनके कारण यातायात धीमा हो जाता है, जिससे जाम की स्थिति बनती है। जरा सा संतुलन बिगड़ने से पलट जाती है, जिससे दुर्घटनाएं हो रही है। रूट तय होने के बाद ये प्रतिबंधित मार्ग पर चलेंगे तो कार्रवाई की जाएगी। - संतोष कुमार कौल, एडिशनल डीसीपी, ट्रैफिक विभाग
जिला सड़क सुरक्षा समिति ही ई-रिक्शा संचालकों का रूट तय करेगी। समिति की बैठक में रूट तय होगा। आरटीओ विभाग को रूट बनाकर प्रस्तुत करना है। नगर निगम इनके रूट तय नहीं कर सकता है। चालानी कार्रवाई का अधिकार ट्रैफिक विभाग को है। समिति की बैठक में जो भी निर्णय होगा उसका पालन कराएंगे। - राकेश जैन, यातायात विभाग, एमआईसी सदस्य