नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। प्रकरण में असत्य और अधूरी जानकारी देने वाले पक्षकार आपराधिक प्रकरण का सामना करने के लिए तैयार रहें। सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट दिशा निर्देश हैं कि शपथ पत्र में आय और संपत्ति के बारे में स्पष्ट और सत्य जानकारी दी जाए, बावजूद इसके देखने में आता है कि पति-पत्नी दोनों इस संबंध में प्रस्तुत शपथ पत्र में जानकारी देने के बजाय लागू नहीं (एनए) लिख देते हैं।
कई बार वे या तो असत्य जानकारी देते हैं या अधूरी। वर्तमान प्रकरण में भी ऐसा ही हुआ है। पति-पत्नी दोनों आय, संपत्तियों के बारे में सत्य और पूरी जानकारी के साथ नया शपथ पत्र प्रस्तुत करें, अन्यथा आपराधिक प्रकरण के लिए तैयार रहें।
यह तल्ख टिप्पणी इंदौर कुटुंब न्यायालय के न्यायाधीश तजिंदर सिंघ अजमानी ने पति-पत्नी के बीच चल रहे भरण पोषण के प्रकरण की सुनवाई करते हुए की है। नाराजगी जताते हुए न्यायालय ने कहा कि पति-पत्नी शपथ पत्र तो प्रस्तुत करते हैं, लेकिन उनमें तथ्यात्मक जानकारी नहीं दी जाती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2020 में ही शपथ पत्र के संबंध में स्पष्ट दिशा निर्देश जारी कर दिए थे, लेकिन पांच वर्ष बाद भी दिशा निर्देशों के अनुरूप शपथ पत्र प्रस्तुत नहीं हो रहे हैं। अगर शपथ पत्र प्रस्तुत भी किया जाता है तो जानबूझकर उसमें पूर्ण जानकारी नहीं दी जाती। जो शपथ पत्र निर्धारित प्रारूप में प्रस्तुत किए जाते हैं उनमें प्रश्नों के संबंध में औपचारिकतावश लागू नहीं शब्द लिख दिया जाता है।
ज्यादातर मामलों में पक्षकार आय के संबंध में जानकारी देने से बचते हैं। यही वजह है कि शपथ पत्र में स्पष्ट जानकारी नहीं आ पाती है। सिर्फ वो ही जानकारी आ पाती है जो पक्षकार देते हैं। - एडवोकेट प्रीति मेहना
जब तक पक्षकार अधिवक्ता को पूरी और सत्य जानकारी नहीं देंगे, जानकारी शपथ पत्र पर नहीं आ सकती। पक्षकार खुद अधूरी जानकारी देते हैं। यही वजह है कि शपथ पत्र में अधूरी जानकारी होती है। - एडवोकेट कृष्णा लोधी
इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि आवेदन में वर्णित अभिवचन और लिखित कथन के संबंध में मिथ्या जानकारी दी गई हो तो न्यायालय ऐसा करने वाले के विरुद्ध धारा 340 के तहत कार्रवाई के साथ-साथ न्यायालय की अवमानना की कार्रवाई कर सकता है।
कुटुंब न्यायालय में चल रहे भरण पोषण के प्रकरण में पति-पत्नी दोनों ने अपनी तरफ से शपथ पत्र दिया था। इसमें दोनों ने ज्यादातर जगह ‘लागू नहीं’ लिखा था। कोर्ट ने इसे लेकर नाराजगी जताई है।