By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Fri, 05 May 2023 11:03:09 AM (IST)
Updated Date: Fri, 05 May 2023 11:03:09 AM (IST)
Indore News: इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। भारत के इतिहास में जिन महान स्वतंत्रता स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में सबसे अधिक दुष्प्रचार किया गया, उनमें से एक हैं विनायक दामोदर सावरकर अर्थात वीर सावरकर। स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों द्वारा दिए गए अपार कष्टों के बावजूद सावरकर ने भारत माता की स्वतंत्रता के प्रयास नहीं छोड़े। किंतु देश को आजादी मिलने के बाद राजनीतिक षड्यंत्र के तहत जिस तरह वीर सावरकर के विरुद्ध दुष्प्रचार किया गया, वह अक्षम्य है।
अब उसी दुष्प्रचार का दुष्प्रभाव कम करने और आम जनता को सच्चाई बताने के लिए देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के सभागृह में संस्था मित्र मेला द्वारा दो दिवसीय व्याख्यानमाला आयोजित की गई। इसमें इतिहासकार व लेखक पार्थ बावस्कर ने इंदौर को वीर सावरकर की गौरवगाथा सुनाई। विद्यार्थियों ने सावरकर को लेकर जैसे प्रश्न किए, उससे यह विश्वास जागृत हुआ कि युवा पीढ़ी छल से किए गए दुष्प्रचार को हटाकर सत्य को जानने की उत्सुक है।
Indore News: मित्र मेला संस्था की व्याख्यानमाला में विद्यार्थियों के प्रश्नों के दिए गए उत्तर
गुरुवार को देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में हुई इस व्याख्यानमाला में इतिहासकार और लेखक पार्थ बावस्कर बताया कि वीर सावरकर के बारे में कई तरह की भ्रांतियां चली आ रही हैं, जबकि यह भ्रांतियां केवल सिक्के का एक पहलू है। हमें सावरकर के विषय में गहन अध्ययन करना चाहिए क्योंकि उनके क्रांतिकारी कार्यों के माध्यम से ही स्वतंत्रता के आंदोलन में एक नई ऊर्जा आई थी। वीर सावरकर का कर्तव्यनिष्ठ जीवन राष्ट्र की प्रत्येक समस्याओं का समाधान है।
इस दौरान विनय पिंगले ने कहा कि तत्कालीन समय के अनेक नेताओं ने अंग्रेजों के समक्ष माफीनामा लिखा था, किंतु वर्तमान में षड्यंत्रपूर्वक वीर सावरकर की वीरता पर प्रश्न चिह्न लगाए जा रहे हैं। कार्यक्रम में अतिथि परिचय अधिवक्ता कुणाल भंवर ने दिया, संचालन माला सिंह ठाकुर ने किया। मुख्य अतिथि के तौर पर समाजसेवी जयंत भिसे और सोनाली नरगुंदे उपस्थित रहीं।
प्रश्न, जिनके उत्तरों ने शांत की जिज्ञासा
1. सावरकर ने भारत छोड़ो आंदोलन में क्यों हिस्सा नहीं लिया?
उत्तर : वीर सावरकर ने 1942 से पहले ही बड़े आंदोलनों में हिस्सा लिया था। इस दौरान उन्होंने हैदराबाद के निजाम के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया था। दरअसल, हैदराबाद में हिंदुओं के मंदिर जाने और प्रार्थना करने पर निजाम ने कई पाबंदियां लगा रखी थीं। इसके विरोध में सावरकर ने आंदोलन किया और मंदिरों के जीर्णोद्धार करने के लिए लड़ाई लड़ी। साथ ही वह 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन से भी जुड़े। इसी कालखंड में नेताजी सुभाषचंद्र बोस वीर सावरकर के कहने पर जापान गए और आजाद हिंद फौज तैयार की। वहां नेताजी ने आजाद हिंद सेना के रेडियो चैनल पर वीर सावरकर द्वारा किए गए कार्यों के बारे में बात की थी।...तो यह आरोप सर्वथा गलत है कि वीर सावरकर ने आंदोलनों में हिस्सा नहीं लिया। सच तो यह है कि वे आंदोलनों के प्राणतत्व बने।
2. अंग्रेजी शासन से पेंशन लेते थे सावरकर?
उत्तर : बावस्कर ने बताया कि सावरकर को कोई पेंशन नहीं मिलती थी बल्कि डिटेंशन अलाउंस मिलता था। यह भत्ता सभी दलों के राजनीतिक बंदियों को दिया जाता था। यह इसलिए दिया जाता था क्योंकि अंग्रेज सरकार बंदियों को ऐसी जगह रखती थी, जहां आजीविका कमाने का कोई रास्ता नहीं होता था। सावरकर की एलएलबी डिग्री मुंबई विश्वविद्यालय ने रद्द कर दी थी और उन्हें रत्नागिरी में भी कानून की प्रैक्टिस करने की अनुमति से वंचित कर दिया गया था। सावरकर को रत्नागिरी में रखा गया था और उनकी करोड़ों की संपत्ति जब्त कर ली गई थी। सावरकर अपनी करोड़ों की संपत्ति के बजाय क्या 60 रुपये की पेंशन के लिए अंग्रेजों से समझौता करते?
3. गांधीजी के हत्याकांड में शामिल थे सावरकर?
उत्तर : यह विवाद केवल राजनीतिक संगठनों ने खड़ा किया है। इस मामले में कोर्ट का निर्णय आता है, जो सावरकर जी को निरपराध करार देती है। वहीं गांधीजी की हत्या के मुख्य आरोपी नाथूराम गोडसे ने स्वयं कहा था कि यह कृत्य मैंने अपनी बुद्धिमत्ता और विवेक से किया है। अगर कोई कहता है कि यह मैंने किसी के कहने पर किया है, तो मैं इसे अपनी बुद्धिमत्ता, विवेक व निर्णय का अपमान मानूंगा। हालांकि दूसरी ओर हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के शक में विनायक दामोदर सावरकर को 1948 में मुंबई में गिरफ्तार किया गया। हालांकि जांच के बाद उन्हें वर्ष 1949 में बरी कर दिया गया था। हालांकि एक रिपोर्ट में उन्हें पूरी तरह से दोषमुक्त नहीं माना गया।
इन बिंदुओं पर भी हुई बात
- यूं तो वीर सावरकर को लेकर दुनिया में कई भ्रांतियां फैली हैं, लेकिन उनके किरदार में कुछ ऐसे गुण भी थे, जो आज के समय में भी युवाओं को प्रेरित करते हैं। सावरकरजी की तरह हर युवा में कहे और सोचे हुए कार्य को करने की दृढ़ता और साहस होना चाहिए।
- वे हमेशा कहते थे, जब हमें अपने धर्म पर गर्व और गौरव की अनुभूति होना चाहिए। धर्मनिरपेक्षता यदि हो तो सभी के लिए हो यदि मुस्लिम कट्टरपंथ, ईसाई अपना ईसाईत्व छोड़ने के लिए तैयार हों तो मैं भी अपना हिंदुत्व छोड़ने के लिए तैयार हूं। यदि अन्य धर्म के लोग अपने धर्म को छोड़ने के लिए तैयार नहीं तो केवल हिंदुओं से ही यह अपेक्षा क्यों? अपने-अपने विचार और निर्णय पर दृढ़ रहना चाहिए।
- सावरकर ने यातनाएं सहीं, देश को आजाद करवाने की लड़ाई में कठिन कारागार में लंबा वक्त गुजारा, लेकिन अपना राष्ट्रप्रेम नहीं छोड़ा। उन्होंने सुविधाओं को तिलांजलि देकर देश-प्रेम को प्राथमिकता दी। आज के समय में लोग अपने बारे में सोचते हैं, जबकि सावरकर के कारण उनके परिवार ने भी कई तकलीफें झेलीं, लेकिन उन्होंने स्वयं को कभी कमजोर नहीं होने दिया।
- सावरकर स्वदेशी अपनाने और भाषा की शुद्धता को लेकर हमेशा आग्रही रहे। आज के दौर में इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। वे सदैव शुद्ध हिंदी बोलने और लिखने के पक्षधर रहे। उन्होंने स्वदेशी को बढ़ावा देने के भरपूर प्रयास किए। आज भी हमें स्वदेशी की तरफ रुख करना चाहिए।