Indore Hukumchand Mill: नहीं खत्म हो रही हुकमचंद मिल के मजदूरों की परेशानी, कोर्ट के आदेश के बावजूद नहीं मिल रहा भुगतान
Indore Hukumchand Mill: फिलहाल इनमें से सिर्फ 1400 के लगभग मजदूरों के बैंक खाते में पैसा पहुंचा है। कोर्ट के आदेश के बावजूद भुगतान नहीं मिलने से मजदूरों में निराशा है।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Thu, 29 Feb 2024 09:57:22 AM (IST)
Updated Date: Thu, 29 Feb 2024 09:57:22 AM (IST)
हुकमचंद मिलHighLights
- हुकमचंद मिल के हजारों मजदूरों की परेशानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही।
- कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद उन्हें अपने बकाया भुगतान के लिए भटकना पड़ रहा है।
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर Indore Hukumchand Mill। हुकमचंद मिल के हजारों मजदूरों की परेशानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही। कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद उन्हें अपने बकाया भुगतान के लिए भटकना पड़ रहा है। कोर्ट ने तीन दिन पहले हुई सुनवाई में स्पष्ट आदेश दिया था कि जिन मजदूरों को वर्ष 2017 में भुगतान किया गया था और जो वर्तमान में जीवित हैं उन्हें तुरंत भुगतान किया जाए, बावजूद इसके बुधवार को किसी मजदूर को भुगतान नहीं किया गया।
मजदूर नेता नरेंद्र श्रीवंश ने बताया कि मजदूरों की ओर से कमेटी में शामिल किशनलाल बोकरे बुधवार को दिनभर समिति कार्यालय में बैठे रहे, लेकिन समिति के अन्य सदस्य नहीं आए। इसके चलते किसी मजदूर का भुगतान नहीं हुआ। मजदूर नेताओं का कहना है कि अगर उन्हें जल्द से जल्द रकम मिल जाएगी तो वे इसे अन्यत्र लगाकर अपना भविष्य सुरक्षित कर लेंगे।
पहले भुगतान हो चुका है तो अब क्या दिक्कत है
तीन दिन पहले हुई मामले की सुनवाई में
कोर्ट ने स्वयं यह सवाल उठाया था कि वर्ष 2017 में मजदूरों को भुगतान हो चुका है। मजदूरों से संबंधित दस्तावेज परिसमापक के कार्यालय में वर्ष 2007 से उपलब्ध हैं तो फिर इस बार मजदूरों के भुगतान में क्या दिक्कत आ रही है। मजदूर नेता श्रीवंश के मुताबिक मिल के 5895 मजदूरों को
भुगतान होना है। फिलहाल इनमें से सिर्फ 1400 के लगभग मजदूरों के बैंक खाते में पैसा पहुंचा है। कोर्ट के आदेश के बावजूद भुगतान नहीं मिलने से मजदूरों में निराशा है।
कई मजदूर मिल बंद होने के बाद अन्य शहरों में चले गए थे। पैसा मिलने की उम्मीद के चलते वे शहर में लौट आए हैं और अपने रिश्तेदारों के यहां ठहरे हुए हैं। मुआवजे का पैसा नहीं मिलने से ऐसे मजदूरों के सामने संकट खड़ा हो गया है। वे समझ नहीं पा रहे कि लौट जाएं या इंतजार करें।