Indore Ke Shilpi: कुछ दशक पहले की बात है। इंदौर या मालवा-निमाड़ के किसी व्यक्ति को यदि नेत्र चिकित्सा की आवश्यकता होती थी, तो उसे मुंबई, दिल्ली, चेन्नई या बेंगलुरु की ओर दौड़ लगानी होती थी। तब इंदौर आंखों की शल्य क्रिया में बहुत पीछे था। किंतु उसी दौर में इंदौर के एक शख्स की आंखों ने एक नया सपना देखा। सपना यह था कि इंदौर को आंखों के उपचार में इतना आगे ले जाया जाए कि मालवा-निमाड़ के तमाम जिलों सहित समूचे मध्यभारत के लोगों को मुंबई, चेन्नई न भागना पड़े। जिस शख्स ने यह सपना देखा, वह हैं डा. पीएस हार्डिया।
इंदौर के इस कर्मयोद्धा शिल्पी ने नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में इतना काम किया कि उनके समर्पण को देख भारत सरकार ने उन्हें नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया। आंखों का उपचार करते-करते इंदौर की आंखों का तारा बन चुके डा. हार्डिया ने न केवल इंदौर में नेत्रों की जटिल से जटिल सर्जरी सफलतापूर्वक की, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में हजारों नेत्र चिकित्सा शिविर भी आयोजित किए। वे प्रतिदिन सुबह एक संकल्प लेकर घर से निकलते और शाम तक कई लोगों की आंखों का उपचार करके ही घर लौटते।
संकल्पशक्ति व संवेदनशीलता के धनी
डा. हार्डिया अब तक लाखों लोगों की आंखों की रोशनी लौटा चुके हैं। पांच अक्टूबर 1938 को इंदौर में डाक्टर पिता के यहां जन्मे हार्डिया ने बचपन में ही तय कर लिया था कि उन्हें नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में काम करना है। पिता के नेत्र चिकित्सक होने का फायदा यह मिला कि घर में हमेशा डाक्टरी की बातें होती थीं। बचपन डाक्टरी औजारों से खेलते हुए बीता। वर्ष 1963 में डा.पीएस हार्डिया ने महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय इंदौर से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। इसके बाद वे खुद को नेत्र चिकित्सक के रूप में स्थापित करने और इंदौर को विश्व मंच पर स्थापित करने के मिशन में जुट गए। उन्होंने देश-विदेश के दौरे किए और नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र की अत्याधुनिक तकनीकों का अध्ययन किया। बाद में इन्हीं तकनीकों का उपयोग इंदौर के अस्पतालों में किया। वर्ष 2003 में उन्होंने इंदौर के राऊ क्षेत्र में अत्याधुनिक सुविधाओं वाला चिकित्सालय स्थापित किया। इस वक्त तक डा. हार्डिया की ख्याति देश में फैल चुकी थी। तब देश ही नहीं, विदेश से भी मरीज उनके पास आने लगे। बड़ी संख्या में मरीजों को इंदौर आते देख नए चिकित्सकों का रुझान भी नेत्र चिकित्सा की तरफ बढ़ने लगा। इस तरह डा. हार्डिया ने इंदौर को नेत्र चिकित्सा का बड़ा केंद्र बना दिया।
इंदौर में स्थापित की एशिया की पहली चश्मा उतारने वाली मशीन
डा. हार्डिया हमेशा ही भविष्य की सोचते रहे। वे जीवनभर इस दिशा में अध्ययन करते रहे कि दुनिया के किस देश में नेत्र चिकित्सा की कौन-सी नई पद्धति विकसित हुई है और उसका लाभ इंदौरवासियों को कैसे मिले। वे इसके लिए कई बार विभिन्न् देशों की यात्रा पर गए, वहां से उपचार की आधुनिक तकनीक सीखी और इंदौर लौटकर उसका लाभ मालवा-निमाड़ के नेत्र मरीजों को दिया। उन्होंने एशिया की पहली चश्मा उतारने की मशीन भी इंदौर में स्थापित की। वर्ष 1997 में उनका नाम चश्मा उतारने की सबसे ज्यादा सर्जरी करने के मामले में प्रतिष्ठित गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल हुआ। इंदौर के ये शिल्पी 85 वर्ष क उम्र में आज भी सक्रिय हैं।