Indore News: मेरा देश बदल रहा है, जन्मदिन पर मार्कण्डेय पूजन और विवाह वर्षगांठ पर हो रही भगवती अर्चना
Indore News: बर्थडे पार्टी में बजने वाले तेज संगीत के स्थान पर मंत्रों की गूंज सुनाई देने लगी है और विवाह वर्षगांठ पर होटल में पार्टी आयोजित करने के बजाय मंदिर में देवी की कुमकुम-हल्दी से अर्चना की जाने लगी है।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Mon, 04 Mar 2024 12:48:52 PM (IST)
Updated Date: Mon, 04 Mar 2024 12:48:52 PM (IST)
मेरा देश बदल रहा है
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नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर Indore News। एक बार फिर सनातनी संस्कृति का रंग लोगों पर चढ़ने लगा है। अब भक्ति केवल पर्वों तक ही सीमित नहीं बल्कि दिवस विशेष पर भी की जा रही है। अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले बच्चे और आलीशान गाड़ी में घूमने वाले अभिभावक भी अब जन्मदिन या विवाह वर्षगांठ पर केक काटने के चलन से किनारा करने लगे हैं। अब मोमबत्ती जलाकर उसे बुझाया नहीं जाता बल्कि दीपदान किया जाने लगा है। बर्थडे पार्टी में बजने वाले तेज संगीत के स्थान पर मंत्रों की गूंज सुनाई देने लगी है और विवाह वर्षगांठ पर होटल में पार्टी आयोजित करने के बजाय मंदिर में देवी की कुमकुम-हल्दी से अर्चना की जाने लगी है। ग्रंथों और पुराणों में पर्व विशेष या दिवस विशेष को मनाने का जो तरीका लिखा है अब लोग उसे अपनाने लगे हैं।
अपनी जड़ों की ओर लौटने का यह सिलसिला बीते कुछ वर्षों से शुरू हुआ है। अब लोग यह बात समझने लगे हैं कि पाश्चात्य की सोच को बिना सोचे-समझे ही अपना लेना अंधविश्वास है जबकि ग्रंथ-पुराणों में वर्णित बात को तर्कों के आधार पर अपनाना संकीर्ण नहीं बल्कि सही सोच है। बीते दिनों शहर आए केरला स्टोरी फिल्म के लेखक सूर्यपाल सिंह ने एक व्याख्यान में भी इस बात का जिक्र किया कि अब रूख बदलने लगा है। वे भी अपने और स्वजन के जन्मदिन पर केक काटने के बजाय मार्कण्डेय पूजा कराते हैं। ऐसे लोग शहर में कई हैं जिनपर अब सनातनी संस्कृति का रंग दोबारा छाने लगा है।
हर सदस्य के जन्मदिन पर होती है पूजा
हाईलिंक सिटी निवासी सतीश खंडेलवाल बताते हैं कि उनके परिवार में सात सदस्य हैं और सभी के जन्मदिन पर पूजा होती है। बच्चे जरूर अपने जन्मदिन पर केक काटते हैं लेकिन मोमबत्ती बुझाना, केक चेहरे पर लगाना जैसे कार्य नहीं किए जाते। इसके स्थान पर दीप प्रज्वलित किया जाता है क्योंकि भारतीय प्रकाश और सकारात्मकता को महत्व देते हैं। हमारे लिए दीप बुझाना अशुभ है तो ऐसे में प्रकाश प्रदान करने वाली मोमबत्ती कैसे बुझाई जाए। इसके अलावा पूजन भी होता है जिसमें कभी रुद्राभिषेक होता है तो कभी मार्कण्डेय पूजा कराई जाती है।
‘बुके नहीं बुक’ की धारणा को अपनाया
स्कीम नंबर 94 निवासी पंकज शर्मा बताते हैं कि उनका पूरा परिवार इस बात पर विश्वास करता है कि शुभ काज में ईश्वर का आशीष लिया जाना चाहिए। ऐसे में जन्मदिन और विवाह वर्षगांठ पर सुबह गायत्री हवन किया जाता है और शाम को दीप यज्ञ व आशीर्वचन अनुष्ठान होते हैं। विगत करीब छह माह से मैंने ‘बुके नहीं बुक’ की सोच को अपनाते हुए प्रयोग करना शुरू किया है। इसमें मित्रों के जन्मदिन या विवाह वर्षगांठ पर आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित पुस्तकें उन्हें देता हूं। गुलदस्ता तो दो दिन बाद फेंक दिया जाता है पर यह किताबें बेहतर व्यक्तित्व और सुखी दांपत्य जीवन का संदेश देने वाली हैं जिनसे जीवन सुदृढ़ बनाने की प्रेरणा मिलती है।
पार्टी में मंत्रोच्चार के साथ आरती
ट्रेजर फेंटेसी निवासी धनश्री कुलकर्णी बताती हैं कि वे अपने बेटे देवांश के जन्मदिन पर सुबह सत्यनारायण कथा कराती हैं और शाम को बेटे के दोस्तों को घर बुलाकर जन्मदिन मनाती हैं। शाम को होने वाले आयोजन में भी मोमबत्ती बुझाना या केक काटने की रस्म नहीं निभाई जाती। इसके स्थान पर आटे के दीपक बनाए जाते हैं। बेटे की जितनी उम्र है उससे एक ज्यादा दीपक बनाया जाता है और सभी सदस्य महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए उन दीपों से बेटे की आरती करते हैं। यह तरीका जीवन में सकारात्मकता का संचार करता है।
दो-तीन वर्ष में बदली सोच
आचार्य पं. राकेश तिवारी बताते हैं विगत दो-तीन वर्षों में जन्मदिन या विवाह वर्षगांठ पर पूजन कराने के चलन में वृद्धि हुई है। जन्मदिन पर लोग मार्कण्डेय पूजन कराकर सप्त चिरंजीवियों के साथ ऋषि मार्कण्डेय का आशीष लेते हैं। कुछ लोग यह पूजा मंदिर में भी कराते हैं। विवाह वर्षगांठ पर शिवाभिषेक, भगवती अर्चना, दीपदान पूजन, हवन, विष्णु सहस्त्रनाम जाप या ईष्ट के मंदिर में अभिषेक भी कराने लगे हैं। कुछ लोग तो जन्म तारीख और तिथि दोनों ही अवसर पर पूजन कराने में विश्वास करते हैं। लोग अब यह कहने लगे हैं कि शुभ दिन को ईश्वर का पूजन कर और भी सार्थक बनाया जाए।