नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर (Indore News)। इंदौर सराफा चौपाटी का इतिहास लगभग 100 साल पुराना है। शुरुआत में यहां सिर्फ परंपरागत व्यंजन मिलते थे, लेकिन करीब तीन दशक पहले यहां बदलाव शुरू हुआ और आज स्थिति यह है कि यहां परंपरागत व्यंजनों से ज्यादा चाइनीज और अन्य खाने-पीने की दुकानें हैं। शुरुआत में कुछ ही दुकानों के बाहर खाने-पीने की दुकानें लगती थीं, लेकिन धीरे-धीरे यहां के ज्वेलर्स ने अपनी दुकानों के ओटले किराए पर देना शुरू कर दिए।
आज हालत यह है कि सराफा चौपाटी में 200 से ज्यादा छोटी-बड़ी दुकानें संचालित हो रही हैं, जबकि परंपरागत दुकानों की संख्या 80 के आसपास है। सराफा चौपाटी की तंग गलियों में हादसे की आशंका हमेशा बनी रहती है। इसे शिफ्ट करने की कवायद कई बार हुई, लेकिन कभी सफलता नहीं मिली। अब जब महापौर परिषद की बैठक में परंपरागत दुकानों को छोड़कर शेष दुकानों को हटाने के प्रस्ताव पर मुहर लग गई है, शहरवासियों को राहत की उम्मीद है।
सराफा चौपाटी में खाने-पीने की दुकान लगाने वाले दुकानदार शुरुआत में घर से व्यंजन तैयार कर यहां लाते थे। उन्हें चौपाटी पर आग जलाने या व्यंजन तैयार करने की अनुमति नहीं थी। यही वजह थी कि दुकानदार घर से मिष्ठान तैयार कर यहां लाते थे, लेकिन धीरे-धीरे दुकानदार यहीं व्यंजन तैयार करने लगे। तीन दशक पहले तक सराफा चौपाटी में गिनती की दुकानें थीं, इसके बाद संख्या बढ़ने लगी। वर्तमान में यहां 200 से ज्यादा दुकानें हैं।
हरदा में पटाखा फैक्ट्री ब्लास्ट के बाद बढ़ी कोशिशें
बता दें कि करीब 15 माह पहले हरदा में पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट के बाद सराफा चौपाटी में दुकानों की संख्या को नियंत्रित करने की बात जोर पकड़ने लगी थी। चौपाटी में दुकानों पर रातभर जलने वाले सिलिंडर और संकरी गलियों में सोने की कारीगरी का मुद्दा उठा था। सराफा के व्यापारियों ने यहां बड़े हादसे का डर जताया था। इसके बाद महापौर ने कमेटी बनाई थी।
इस कमेटी ने सराफा चौपाटी का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट महापौर को सौंपी थी। कमेटी ने भी दुकानों की संख्या नियंत्रित करने की सिफारिश की थी। बताया जाता है कि महापौर परिषद में लाया गया प्रस्ताव इसी कमेटी की सिफारिशों पर आधारित है।
सराफा चौपाटी के परंपरागत दुकानदार यहां दुकानों की संख्या नियंत्रित करने के निर्णय से खुश हैं। रात्रिकालीन सराफा चौपाटी एसोसिएशन के अध्यक्ष रामजी गुप्ता भी कह चुके हैं कि हम भी चाहते हैं कि सराफा चौपाटी में परंपरागत दुकानें ही रहें। शेष दुकानों को बाहर कहीं स्थान दिया जाए।
1990 के दशक में पटवा सरकार के समय में मालवा मिल, कृष्णपुरा छत्री सहित कई जगह चौड़ीकरण का काम हुआ था। सराफा चौपाटी की सड़कों के चौड़ीकरण का प्रयास भी हुआ था, लेकिन विरोध के बाद इसे छोड़ दिया गया।