इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। शहर में श्वान पालना अब केवल सुरक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा तक ही सीमित नहीं रहा बलि्क यह व्यापार का भी रूप ले चुका है। शहर में ऐसे कई लोग हैं जो पशु चिकित्सा विभाग से लाइसेंस लेकर तो डाग ब्रीडिंग करा रहे हैं। शहर में डाग ब्रीडिंग लाइसेंस प्राप्त करने वालों की संख्या करीब 30 है, जबकि इससे तीन गुना अधिक लोग गैर कानूनी ढंग से यह कार्य कर रहे हैं। यही नहीं कई डाग ब्रीडर और उनके खरीदार ऐसे हैं जो 30 दिन से भी कम उम्र के ही पपी की खरीद फरोख्त करते हैं।
नियमानुसार 60 दिन से कम उम्र का पपी बेचना जितना कानूनन अपराध है उतना ही खरीदना भी अपराध है। विदेशी नस्ल के श्वान के इस अवैध कारोबार और श्वान की नस्ल व सेहत पर इस वजह से पड़ने वाले दुष्प्रभाव को देखते हुए अब पशु चिकित्सा विभाग ने नियमों की अवहेलना करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का मन बना लिया है। इसके साथ ही अब इस दिशा में लोगों को जागरूक भी किया जाएगा।
हाल ही में शहर के एक डाग ब्रीडर के खिलाफ पीपल्स फार एनिमल्स (पीएफए) में शिकायत दर्ज हुई है जिसकी सूचना पुलिस व पशु चिकित्सा विभाग को दी गई। शिकायत के अनुसार डाग ब्रीडर ने घर में कई श्वान पाल रखे हैं। वह उनका ध्यान भी नहीं रखता और बगैर लाइसेंस के डाग ब्रीडिंग कराकर पपी बेचता है।
इस तरह की कई शिकायतें न केवल संस्था को मिल रही हैं बलि्क पशु चिकित्सालय में जो लोग पपी को टीके लगवाने आ रहे हैं वह पपी 60 दिन से कम उम्र के हैं और टीके लगवाने वालों में खरीदारों की संख्या सर्वाधिक है। ऐसे में पशु चिकित्सा विभाग अनैतिक ढंग से डाग ब्रीडिंग कराने वाले, उन्हें बेचने और खरीदने वालों के खिलाफ कदम उठाने जा रहा है।
25 हजार रुपये का हो सकता है जुर्माना
केंद्र सरकार के पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम के अनुसार 60 दिन से कम उम्र का पपी बेचना गैर कानूनी है। पशु चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डा. प्रशांत तिवारी के अनुसार यदि कोई व्यकित 60 दिन से कम उम्र का पपी खरीदता या बेचता है तो उसे 25 हजार रुपये का अर्थदंड हो सकता है। विभाग गैर कानूनी ढंग से ब्रीडिंग कराने और पपी की खरीद-फरोख्त करने वालों के लिए योजना बना रहा है। इसके तहत जल्द ही जांच भी होगी और कार्रवाई भी की जाएगी। नियमानुसार पपी के जन्म के 30 से 40 दिन के भीतर उसे पहला टीका लगता है जो कि ब्रीडर को ही लगवाना पड़ता है और उसका प्रमाणपत्र भी लेना होता है। जबकि अभी ऐसा नहीं हो रहा है। जबकि अस्पताल टीका लगवाने के लिए ऐसे कई पपी लाए जाते हैं जो 30 दिन से भी कम उम्र के हैं और ब्रीडर ने उन्हें टीका लगवाए बिना ही बेच दिया।
पीएफए ने दिया आवेदन
इंदौर पीएफए (पीपल्स फॉर एनिमल्स) की अध्यक्ष प्रियांशु जैन के अनुसार सतत श्वानों के साथ ब्रीडर क्रूरता कर रहे हैं। यह क्रूरता उनकी ब्रीडिंग, पपी को बेचने, खानपान और रखराखाव को लेकर हो रही है। शहर के अधिकांश डाग ब्रीडर नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। करीब 5 वर्ष पहले इसी मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई थी, जिसके बाद पशु चिकित्सा विभाग ने कार्रवाई कर लायसेंस जारी किए थे। अब लाइसेंस संबंधी जांच नहीं होने से इसका अवैध कारोबार होने लगा है। इसके लिए विभाग को आवेदन दिया है।
इस तरह हो रही श्वानों के साथ क्रूरता
* दो ब्रीडिंग के बीच डेढ़ से दो वर्ष का अंतर होना चाहिए लेकिन ब्रीडर वर्ष में दो बार ब्रीडिंग कराते हैं।
* जल्दी ब्रीडिंग कराने से मादा श्वान और पपी दोनों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
* पपी को 60 दिन से पहले ही मादा से अलग कर दिया जाता है जिससे वह मां का दूध नहीं पी पाते।
* पपी को पृथक से भी दूध नहीं दिया जाता।
* कई ब्रीडर पपी 60 दिन बाद बेचते हैं लेकिन 30 से 40 दिन के भीतर लगने वाला टीका नहीं लगवाते।
* छोटे पिंजरे में कई पपी को रखते हैं और वक्त पर पर्याप्त भोजन भी नहीं देते।
* चिकित्सकीय परामर्श लिए बिना ही पपी को औहार देते हैं।