डिजिटल डेस्क, इंदौर। संस्था अखंड संडे के तत्वावधान में लेखिका ज्योति जैन की किताब ज्योति जैन का रचना संसार का 93 वां ऑनलाइन लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर कहानीकार सूर्यकांत नागर ने कहा कि ज्योति जैन का साहित्य गहरे जीवनानुभवों और संवेदनाओं की रचनाएँ हैं। उनकी रचनाओं की बड़ी ताकत सांकेतिकता है। प्रयोगशीलता उनकी पूंजी है। प्रयोग से प्रगति का पथ प्रशस्त होता है। प्रयोग श्रृंगार की वस्तु नहीं है, रचनात्मक का ही एक रूप है। यह संग्रह ज्योति जैन की रचनात्मक को समग्रता में जानने का जरिया है तो दूसरी तरफ उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को समझने का माध्यम भी। रचना में कमोबेश लेखक का व्यक्तित्व मौजूद रहता है। ज्योति जैन की विभिन्न विधाओं की रचनाएं पढ़कर स्पष्ट है कि उनके सामाजिक जीवन और लेखकीय जीवन में कोई भेद नहीं है।
वहीं डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल ने कहा कि प्रत्येक सृजनधर्मी यह सोचता है कि वह ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा का सर्वोच्च समाज को दे। उसका लेखन सोए हुए और सोने का स्वांग कर रहे लोगों को जगा सके। ऐसी एक कालजई रचना के लिए वह आजीवन अध्ययन, चिंतन, मनन और लेखन में लगा रहता है। ज्योति जैन की यह कृति इसी वृत्ति का एक प्रयास है। इस अवसर पर कृति संपादक प्रताप सिंह सोढ़ी ने कहा कि साहित्य अपने समय का भावनात्मक वैचारिक स्पंदन होता है। साहित्य मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है। ज्योति जैन का समग्र साहित्य इसी उद्देश्य के साथ पूर्ण सत्य को जीता हुआ अदृश्य अनुभूतियों एवं संवेदनाओं का अहसास कराता है।
कृतिकार ज्योति जैन ने कहा कि लेखन के संस्कार परिवार से मिले हैं। प्रकृति और प्रेम मेरी प्रिय अनुभूति है। स्त्री को मैं प्रेम का पर्याय मानती हूँ इसलिए मेरी रचनाओं में स्त्री व प्रेम के स्वर मुख्य रूप से रहते हैं। सामाजिक विसंगतियां सोचने पर मजबूर करती है तो कलम अपने आप उठ जाती है। मेरा जीवन सकारात्मकता व आत्मविश्वास से भरपूर है। इसलिए मेरी रचनाएँ भी यही संदेश देती हैं। मुकेश इन्दौरी ने कहा कि किसी भी विषय पर चिंतन मनन उसका अवलोकन करने का ज्योति जैन के पास एक अलग नजरीया, अलग दृष्टिकोण है। यही कारण है कि उनका साहित्य पाठकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। वे अपनी एक अलहदा पहचान रखती है। संचालन मुकेश इन्दौरी ने किया।
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. पदमा सिंह, डॉ रवीन्द्र पहलवान, वैष्णव इंजीनियरिंग कॉलेज के प्राचार्य डॉ. उपेंद्र धर, देवपुत्र मासिक पत्रिका के संपादक गोपाल महेश्वरी, मुंबई से डॉ. रमेश गुप्त मिलन, उज्जैन से माया बदेका, इंदू पाराशर , शोभा प्रजापति, माधुरी निगम, माधुरी व्यास, अर्चना मंडलोई, सुनीता श्रीवास्तव, हरमोहन नेमा, व्रजेन्द्र नगर, डॉ. शशि निगम, चंद्र किरण अग्निहोत्री, सुनीता श्रीवास्तव, उषा गुप्ता, महिमा शुक्ला, सुरेखा सिसोदिया, नवनीत जैन, मुन्नी गर्ग, दिनेश तिवारी, रामचंद्र दुबे, प्रदीप जोशी रश्मि चौधरी, भावना दामले, कार्तिकेय त्रिपाठी, सुरेंद्र व्यास, चेतन भाटी, सुषमा मोघे, स्मृति आदित्य, मधु टाक , आदि कई साहित्यकार उपस्थित थे।