
Khel Khel Me Column Indore: कपीश दुबे, इंदौर (नईदुनिया)। चुनाव सिर पर हैं और उम्र के 76वें बसंत देख चुके राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह संगठन को मजबूत करने में जुटे हैं। मुख्यमंत्री बनने से पहले दिग्गी राजा प्रदेश कांग्रेस के मुखिया रह चुके हैं। संगठन की नब्ज के पुराने जानकार हैं। इंदौर आए तो संगठन में जान फूंकने के लिए, लेकिन विपक्ष पर तंज कसते हुए उनकी कुटिल मुस्कान अचानक ही ‘अपनों’ पर नाराजगी में बदल गई। दरअसल उन्होंने रेसीडेंसी कोठी में फोटो खिंचाने की होड़ में खड़े नेताओं को बाहर जाने को कहा, लेकिन फिर भी कुछ ताकाझांकी में लगे रहे। शोर बढ़ने लगा तो प्रेस से चर्चा छोड़कर दिग्गी राजा उठे और अपने ही लहजे में हड़काकर गेट बंद कर दिया। अपने ही नेताओं पर कटाक्ष करते हुए बोल पड़े कि कांग्रेस यदि अनुशासित हो जाएं तो कोई चुनाव नहीं हरा सकता।
आइपीएल की आमद के बाद से 20 ओवर के क्रिकेट की दीवानगी प्रशंसकों से लेकर खिलाड़ियों तक में बढ़ी है। प्रदेश में फटाफट क्रिकेट का सबसे बड़ा टूर्नामेंट शहर में हो रहा है, प्रदेश भर की टीमें और खिलाड़ी गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। टूर्नामेंट में खेलने के लिए पहले क्लब क्रिकेट से गुजरना होता है, तब किस्मत वालों को संभाग की टीम में जगह मिलती है। यहां से प्रदेश टीम की राह बनती है। मगर यह नियम आम खिलाड़ियों के लिए है। ‘वरिष्ठ’ होने के बाद क्रिकेट में खिलाड़ी नियमों से ऊपर हो जाते हैं। इस टूर्नामेंट में आइपीएल में शोहरत बटोर चुके कई चेहरे नदारद हैं। इससे पहले रणजी ट्राफी में भी ऐसा ही नजारा था। जब प्रदेश की टीम बनेगी तो सितारों को वरीयता मिलेगी और यहां धूप में चमक बिखरने वाले बारी के इंतजार में खड़े रहेंगे।
जैसे वर्षा से पहले गर्मी का मौसम आता है, वैसे ही चुनाव से पहले हड़ताल और अपनी मांगों को लेकर आंदोलन का मौसम होता है। कुछ मांग दबाव बनाने के लिए होती है, तो कुछ मांगों के पीछे तर्क नजर आता है। ऐसे मौसम में चाणक्य के वंशज भी कहां दिमागी द्वंद में पीछे रहते। सर्वब्राह्मण से जुड़े युवाओं के संगठन ने भी गरीब विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्ति की मांग को लेकर मैदान पकड़ लिया है। शहर में ब्राह्मणों से जुड़ा कोई भी मसला हो, झंडा उठाने वाला चेहरा पंडित विकास अवस्थी का होता है। इस बार भी गरीब ब्राह्मण बच्चों के ‘विकास’ की मांग ने इंटरनेट मीडिया पर खूब प्रचार पाया। प्रदेश के 20 जिलों में आंदोलन फैल चुका है। मगर अब तक राजनीतिक मदद हासिल नहीं है, जबकि दोनों ओर ब्राह्मण नेता मौजूद हैं। राजनीति में ‘वोट’ के आधार पर हानि-लाभ का आकलन होता है। अब देखते हैं किसको ‘लाभ’ मिलता है।
दिग्विजय सिंह मंडलम, सेक्टर और बीएलओ तक संगठन के तार मजबूत करने इंदौर पहुंचे। पिछली बार जब आने वाले थे तो पता चला सूची पूरी नहीं है। खैर, इस बार दिग्गी राजा की आमद से पहले आनन-फानन में सूची तैयार कर ली गई। मगर जब कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचे तो उन्होंने ‘राजा’ के दरबार में अध्यक्ष की गुहार लगा दी। अब शहर अध्यक्ष की कुर्सी कांग्रेस की ऐसी दुखती नस है, जिस मर्ज का इलाज फिलहाल किसी को सूझ नहीं रहा। कुछ दावेदारों ने कार्यक्रम से दूरी बनाई तो कुछ अनमने से नजर आए। इस बीच पूर्व अध्यक्ष विनय बाकलीवाल को दिग्विजय से मिली तवज्जो ने नए समीकरणों की चर्चा शुरू कर दी। खैर जब तक कांग्रेस शहर में अध्यक्ष की ताजपोशी नहीं कर देती तब तक ऐसे ही समीकरण बनते-बिगड़ते रहेंगे।