Hindu Marriage Act: हिंदू विवाह से जुड़े कानूनी प्रविधान
Hindu Marriage Act: हिंदू विवाह के अधीन इन शर्तों की पूर्ति की जाना अति आवश्यक है। अधिनियम की धारा पांच हिंदू विवाह के लिए शर्तों का उल्लेख करती है।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Wed, 04 Oct 2023 11:04:35 AM (IST)
Updated Date: Wed, 04 Oct 2023 11:04:35 AM (IST)
Hindu Marriage ActHindu Marriage Act: नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार है। इसे पूरा करने के लिए प्राचीन विधि में कुछ शर्तें अधिरोपित की गई थीं। वर्तमान हिंदू विवाह अधिनियम 1955 आधुनिक हिंदू विधि है। इसे प्राचीन शास्त्रीय विधि तथा आधुनिक परिपेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। इसके अंतर्गत हिंदू विवाह किए जाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण शर्तों का समावेश किया गया है।
हिंदू विवाह के अधीन इन शर्तों की पूर्ति की जाना अति आवश्यक है। अधिनियम की धारा पांच हिंदू विवाह के लिए शर्तों का उल्लेख करती है। धारा सात में हिंदू विवाह के संस्कार बताए गए हैं तथा धारा आठ में हिंदू विवाह के रजिस्ट्रीकरण के संबंध में उपबंध दिए गए हैं।
अधिनियम के अंतर्गत धारा पांच में उल्लेखित शर्तों का उल्लंघन होने पर किसी विवाह को शून्य और शून्यकरणीय घोषित किया जाता है। इन वर्णित शर्तों का पालन नहीं करने पर होने वाले परिणाम का उल्लेख अधिनियम की धारा 11, 12, 17 और 18 में किया गया है। धारा पांच के तहत
हिंदू विवाह के संपन्न किए जाने के लिए जो शर्तें दी गई हैं वे निम्नानुसार हैं-
पक्षकारों का हिंदू होना
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अधीन सबसे पहली शर्त दो हिंदू पक्षकारों का होना है। कोई भी विवाह हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अधीन तभी संपन्न माना जाएगा जब दोनों पक्षकार हिंदू होंगे। एक मामले में
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब विवाह के दोनों पक्षकार हिंदू हों तो ही हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत कोई हिंदू विवाह संपन्न माना जाएगा। यदि विवाह का कोई एक पक्षकार हिंदू है तथा दूसरा पक्षकार गैर-हिंदू है तो विवाह इस अधिनियम की परिधि के बाहर होगा और यह विवाह हिंदू विवाह नहीं कहलाएगा। न्यायालय का यह भी कहना है कि हिंदू विवाह किसी जातिगत व्यवस्था की अनिवार्यता का समर्थन नहीं करता है।
धारा पांच के अंतर्गत यह महत्वपूर्ण शर्त भी अधिरोपित की गई है कि हिंदू विवाह तभी संपन्न होगा जब विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से न तो वर की कोई पूर्व पत्नी जीवित होगी और न ही वधू का कोई पूर्व पति जीवित होगा। प्राचीन शास्त्रीय हिंदू विवाह बहुपत्नी को मान्यता देता था परंतु आधुनिक हिंदू विवाह अधिनियम 1955 बहुपत्नी का उन्मूलन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा है कि दांपत्य युगल शब्द से आशय पूर्व दांपत्य युगल से नहीं है।
अगर वर या वधू की पत्नी या पति जीवित नहीं है तो उन्हें पुनर्विवाह करने से वर्जित नहीं किया जा सकता है। एक कुंवारा व्यक्ति जिसने विवाह के समय तक पूर्व में विवाह न किया हो एक विधवा या विधुर या विवाह विच्छेद के उपरांत ऐसा व्यक्ति विवाह विधिक रूप से कर सकता है।
एक पत्नी का सिद्धांत
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा पांच के तहत ही एक पत्नी सिद्धांत का पालन किया गया है। हालांकि इसकी संवैधानिक वैधता पर प्रश्न भी आए हैं। न्यायालय में आए एक मामले में व्यक्ति ने कहा कि उसकी स्त्री से उसे कोई पुत्र नहीं हुआ है। उसे हिंदू धर्म के अनुसार परलोक सुख के लिए पुत्र होना अनिवार्य है क्योंकि मृत्यु के उपरांत सभी अनुष्ठान पुत्र द्वारा किए जाते हैं तथा पुत्र हिंदू धर्म के अधीन नर्क से मुक्ति का कारण बनता है। अतः वह पुत्र प्राप्ति के लिए दूसरा विवाह करना चाहता है परंतु हिंदू विवाह अधिनियम की धारा पांच उसे इस प्रकार के विवाह करने से रोकती है।
यह उसकी धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन है। न्यायालय ने इस मामले में कहा कि दूसरा विवाह हिंदू विधि के अधीन आवश्यक नहीं है, क्योंकि हिंदू विधि दत्तक पुत्र को औरस पुत्र की भांति ही सभी अनुष्ठान किए जाने की अधिकारिता प्रदान करती है।
- प्राची जोशी, एडवोकेट