Street Venders Scheme: जीवन की पाठशाला से ली सीख...अब नहीं मांगते भीख
Street Venders Scheme: भिखारी नहीं, अब कहलाते हैं कारोबारी, जज्बे से मिली यह पहचान। बदला लोगों का नजरिया, नई पहचान पाकर चेहरों पर लौटी रौनक। इन्हें काम करते हुए करीब सात महीने हो गए हैं। अब ये लोग जरूरतमंदों की मदद करने लगे हैं।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Fri, 02 Dec 2022 02:15:36 PM (IST)
Updated Date: Fri, 02 Dec 2022 02:15:36 PM (IST)

Street Venders Scheme: विनय यादव, इंदौर। कहा जाता है कि सफलता उन्हीं के कदम चूमती है, जिनके पास ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए ऊंचे सोच के साथ-साथ उद्देश्य और पक्का इरादा होता है। साथ ही इन्हें प्राप्त करने के लिए हार न मानने वाला जज्बा भी। इसी जज्बे के साथ आगे बढ़ते हुए शहर के चौराहों पर भीख मांगने वालों ने यह साबित कर दिया कि कोई भी परिस्थिति किसी को सफल होने से नहीं रोक सकती हैं।
यह कहानी है उन लोगों की, जो बरसों तक इंदौर के चौराहों पर भीख मांगकर अपना जीवन यापन करते रहे। किंतु अब इन्हें सफल कारोबारी की पहचान मिल चुकी है। पहले हर जगह दुत्कार पाना ही इनका नसीब बन गया था, लेकिन अब लोगों का इनके प्रति नजरिया बदल गया है। यह सब बदलाव हुआ भिक्षुक पुनर्वास केंद्र के सहयोग से। केंद्र ने इन्हें सहारा दिया, प्रशिक्षण दिया, नतीजतन आज ये लोग भिखारी नहीं बल्कि कारोबार करने वाले कहलाते हैं। भिक्षुक पुनर्वास केंद्र ने प्रशिक्षण तो दिया ही, केंद्र की गारंटी पर स्ट्रीट वेंडर योजना में इन्हें 10 हजार रुपये का लोन भी दिलाया। इन्हें काम करते हुए करीब सात महीने हो गए हैं। अब ये लोग जरूरतमंदों की मदद करने लगे हैं।
खुश हैं राजेश, बोले- 'अब मैं 10 हजार रुपये कमाता हूं'
पारिवारिक कलह में राजेश गुप्ता ने घर छोड़ा और भीख मांगकर गुजारा करने लगे थे। इन्हें पुनर्वास केंद्र की टीम ने चिड़ियाघर के सामने से रेस्क्यू किया। राजेश पहले ठेला लगाकर सब्जियां बेचते थे। टीम ने लोन दिलवाया तो राजेश का ठेला फिर सब्जियों से भर गया। अब वे सब्जियां बेच रहे हैं। राजेश ने बताया कि अब मैं 10 हजार रुपये प्रतिमाह कमा लेता हूं। दूसरों के सामने हाथ फैलाने वाले लोगों की भी मदद मदद करता हूं। उन्हें कुछ काम करने को प्रेरित करता हूं।
अपनी कमाई कर देते हैं दान
हरीश सोनी सोना-चांदी और फिर खिलौनों का काम करने लगे थे। इस बीच उनका मकान हड़प लिया गया तो वे डिप्रेशन में चले गए थे। पेट भरने के लिए भीख मांगने लगे। भिक्षुक पुनर्वास केंद्र की टीम ने रेस्क्यू किया। टीम ने लोन दिलवाया। उसके बाद से हरीश लेदर के हाथी, घोड़े आदि बेचते हैं। अब वे प्रतिमाह करीब आठ हजार रुपये कमा लेते हैं। साथ ही कमाई का हिस्सा उन लोगों के लिए दान भी करते हैं, जो भीख मांगते हैं।
सेवा करना ही मेरा लक्ष्य
आंध्र प्रदेश के चिन्ना ने बताया कि तीन वर्ष तक कई राज्यों में भटकता रहा। भटकते हुए इंदौर आ गया। हिंदी नहीं आती थी। भिक्षुक पुनर्वास केंद्र पर मुझे केयर टेकर की नौकरी मिली। आठ हजार रुपये प्रति माह वेतन मिलता है, उसमें से दान कर देता हूं। अब यही मेरा घर है। यहां की सेवा में ही बाकी जीवन बिताना चाहता हूं।
भिक्षुक केंद्र से प्रशिक्षण देकर रोजगार देने का काम किया जा रहा है। सड़कों पर भीख मांगने वाले कई लोग कारोबारी तो कई कलाकार बन चुके हैं। हमें खुशी है कि यह लोग भिक्षावृति छोड़कर खुद का व्यवसाय करने लगे हैं।
- रूपाली जैन, संचालिका, भिक्षुक पुनर्वास केंद्र