नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। आईवीएफ कानून में बदलाव को लेकर चल रही याचिका अब हाई कोर्ट की निगरानी में चलेगी। याचिकाकर्ता ने खुद को इस याचिका से अलग कर लिया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि शैक्षणिक उद्देश्य से इस याचिका की सुनवाई जारी रखना सही है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में यह याचिका इंदौर निवासी एक दंपती ने दायर की थी। उनका कहना था कि पत्नी की आयु 50 और पति की आयु 55 वर्ष है।
वे आईवीएफ तकनीक का इस्तेमाल करते हुए माता-पिता बनना चाहते हैं, लेकिन सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) अधिनियम के तहत मां बनने के लिए तय की गई आयु से अधिक आयु होने की वजह से डॉक्टर उनकी मदद नहीं कर पा रहे हैं। याचिका लगभग डेढ़ वर्ष से लंबित है। पिछली सुनवाई पर याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि उनका पक्षकार से संपर्क नहीं हो पा रहा है। शायद वे याचिका चलाने में इच्छुक नहीं हैं।
इस पर कोर्ट ने माना कि याचिका में सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) अधिनियम के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, इसलिए कोर्ट शैक्षणिक उद्देश्य से सुनवाई जारी रखेगा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील को न्यायमित्र नियुक्त किया है। कोर्ट ने कहा कि चूंकि उन्होंने इस याचिका को तैयार किया है, इसलिए वे इसके पक्ष को सही तरीके से रख सकेंगे। सुनवाई के दौरान कोर्ट के आदेश पर आईवीएफ विशेषज्ञ भी उपस्थित हुई थीं।
उन्होंने कोर्ट को बताया था कि सिर्फ आयु से नहीं, बल्कि महिला की पूरी जांच के बाद निर्धारित किया जाना चाहिए कि वह गर्भधारण के योग्य है या नहीं। इस पर कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज डीन से कहा था कि वे विशेषज्ञों का बोर्ड गठित कर महिला की जांच कराएं, लेकिन महिला इस बोर्ड के समक्ष उपस्थित नहीं हुई।
वर्ष 2021 में सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) की धारा 21(जी) में आईवीएफ या अन्य तरीके से गर्भधारण की इच्छुक महिलाओं के लिए अधिकतम आयु तय की गई है। इसके अनुसार 21 से 50 वर्ष तक की आयु वाली महिला ही कृत्रिम गर्भधारण कर सकती है।