नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। बैंक पेंशन और पारिवारिक पेंशन के वितरण के लिए एक संवितरण एजेंसी मात्र है। बैंक द्वारा पेंशन या पारिवारिक पेंशन से किसी तरह की कटौती स्वीकार्य नहीं है। यह टिप्पणी हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने स्टेट बैंक द्वारा पेंशन रोके जाने से जुड़ी एक अपील का निराकरण करते हुए की है। कोर्ट ने बकाया ऋण के लिए बैंक द्वारा पेंशन की राशि में से की गई कटौती को गलत माना।
इंदौर निवासी एक व्यक्ति ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से ऋण लिया था। ऋण की कुछ राशि अब भी बकाया है। इस बीच ऋणी व्यक्ति की मृत्यु हो गई। इसके बाद बैंक ने उन्हें मिलने वाली पेंशन की राशि रोक ली। मृतक की पत्नी ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की। एकलपीठ ने पेंशन की राशि में से कुछ हिस्सा काटकर शेष राशि जारी करने का आदेश बैंक को दिया।
एकलपीठ के इस फैसले के खिलाफ मृतक की पत्नी ने युगलपीठ के समक्ष अपील प्रस्तुत की। उनका कहना था कि बैंक इस तरह पेंशन की राशि नहीं रोक सकता। युगलपीठ ने सभी पक्षकारों के तर्क सुनने के बाद एकलपीठ के फैसले को निरस्त कर दिया।
कोर्ट ने फैसले में स्पष्ट कहा कि मप्र सिविल सेवा (पेंशन) नियम के तहत पेंशन की राशि में कमी सिर्फ राज्यपाल के आदेश से ही की जा सकती है। बैंक के पास बकाया ऋण राशि वसूलने के लिए अन्य विकल्प भी उपलब्ध हैं, बैंक उनका उपयोग कर सकता है। कोर्ट ने बैंक से कहा है कि वह याचिकाकर्ता को तुरंत पूरी पेंशन जारी करें।