नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। मालेगांव बम धमाकों के आरोपियों के बरी होने के बाद एनआईए और एटीएस की पोल खुल रही है। तत्कालीन केंद्र सरकार के इशारे पर चल रही जांच में हिंदूओं को टारगेट किया जा रहा था। जांच में शामिल अफसर साध्वी प्रज्ञासिंह के खिलाफ फर्जी गवाह तैयार कर रहे थे। उन्होंने कथन लेने के लिए गवाहों को न सिर्फ धमकाया बल्कि लालच भी देते गए। महाराष्ट्र के मालेगांव में साल 2008 में हुए बम धमाकों में छह लोगों की मौत हो गई थी।
महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोध दस्ता(एटीएस) ने सबसे पहले साध्वी प्रज्ञासिंह को गुजरात से हिरासत में लिया और दावा किया कि जिस गाड़ी में बम लगाए वो उनके नाम से रजिस्टर्ड थी। इस गाड़ी की रिपेयरिंग पलासिया(नवनीत दर्शन टावर के सामने) हुआ करती थी।
मित्रनगर(कनाड़िया रोड़) निवासी रामजी कलसांगरा(फरार) अक्सर गाड़ी लेकर आता था। एटीएस और एनआईए की टीम छानबीन करते हुए गैरेज तक पहुंच गई। संचालक जितेंद्र शर्मा से पूछताछ की और धमाकों में सहयोग करने का आरोप लगाया।
बकौल जितेंद्र एटीएस वाले बयान और पूछताछ के लिए बुलाते थे। उसके पास गाड़ी का पूरा रिकॉर्ड था। रामजी का नाम लेने पर एटीएस ने कहा साध्वी का नाम ले लो। उन्होंने सरकारी गवाह बनाया और लालच भी दिया। जितेंद्र से कहा कि तुम कहो की रामजी को साध्वी ने ही गाड़ी का बोला था। कभी डाकिया तो कभी सब्जी वाला बनकर संदीप का पूछती थी।
एनआईए साध्वी प्रज्ञासिंह,लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित,रमेश उपाध्याय,अजय राहिरकर,सुधाकर द्विवेदी,सुधाकर चतुर्वेदी,समीर कुलकर्णी,श्याम साहू,शिव,धर्मेंद्र की गिरफ्तारी हुई पर संदीप डांगे और रामजी कलसांगरा को फरार दर्शा दिया।
संदीप एसजीएस आइटीएस से इंजीनियरिंग कर चुका था। उस पर बम बनाने का आरोप लगाया। रामजी पर बम लगाने का आरोप लगाया। संदीप के पिता विश्वास पूछताछ और बयानों से परेशान हो गए। एटीएस और एनआईए वाले कभी पोस्टमैन तो कभी सब्जी वाले घर आ जाते थे। रामजी के घर भी 50 बार तलाशी ली गई। दोनों को एनआईए की मोस्ट वांडेट सूची में डाल दिया। इस लिस्ट में पाकिस्तानी आतंकियों के नाम है। उनकी गिरफ्तारी पर एक करोड़ से ज्यादा का इनाम रखा गया है।