Malvi Wheat: इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र, इंदौर ने मालवी (ड्यूरम) गेहूं के रूप में पूसा-प्रभात (एचआइ-8823) प्रजाति भी विकसित की है। मालवी गेहूं की मालव कीर्ति प्रजाति के अनुसंधान के 16 साल बाद उसके विकल्प के तौर पर यह नई प्रजाति लाई गई है। भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान ने इस नई प्रजाति को मंजूरी दे दी है। यह पास्ता, दलिया आदि के लिए भी बहुत उपयुक्त होगी। इसका उपयोग कच्चे माल के रूप में सेमोलिना आधारित उद्योगों में किया जा सकता है। देश के मध्य क्षेत्र में आने वाले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा व उदयपुर क्षेत्र के अलावा उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में इसे बोया जा सकेगा। कृषि वैज्ञानिक डा. दिव्या अंबाटी ने इसे विकसित किया है। सामान्यत: यह कम पानी में पैदा होने वाली प्रजाति है। इसे 20 से 30 अक्टूबर के बीच बोया जा सकेगा।
मोटा दाना, औसत पैदावार 38.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
इस गेहूं में भरपूर प्रोटीन के साथ आयरन 37.9 पीपीएम और जिंक 40.1 पीपीएम होगा। पूसा प्रभात की औसत पैदावार 38.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगी, जबकि इसकी पैदावार की अधिकतम क्षमता 65.6 क्विंटल तक आंकी गई है। इसका दाना मोटा है और यह गेरुआ रोग के लिए प्रतिरोधी है। इंदौर के क्षेत्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र की ओर से हाल ही में भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान के राष्ट्रीय सेमिनार में इसे प्रस्तावित किया गया था। भारतीय संस्थान ने इसे मध्य क्षेत्र के अनुकूल पाकर इस पर मोहर लगा दी है। अब भारत सरकार द्वारा इसकी अधिसूचना जारी होने की संभावना है। उसके बाद इस प्रजाति का प्रजनक बीज (ब्रीडर सीड) तैयार किया जाएगा। अगले दो साल में किसानों तक इस प्रजाति का बीज पहुंचने की उम्मीद है।