MP Chunav 2023: कुलदीप भावसार, इंदौर। मल्हारगंज टोरी कार्नर, बजाजखाना चौक, मालवा मिल चौराहा, बड़वाली चौकी। ये कुछ नाम हैं उन इलाकों के जहां लगने वाले ठीए किसी समय चुनाव के दिनों में रातभर गुलजार रहा करते थे। तीन दशक पहले की बात है इन ठीयों पर शाम होते ही जमावड़ा लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो जाता था। शाम से शुरू होने वाली सियासी चर्चा अलसुबह तक चला करती थीं।
राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेता, बुद्धिजीवी बगैर किसी लाग-लपेट और बगैर किसी औपचारिकता के अपनी बात रखते थे। इन चर्चाओं में शामिल होने के लिए कभी किसी को न्योता भेजने की जरूरत नहीं पड़ती थी। लोग खुद-ब-खुद खिंचे चले आते थे। बगैर किसी औपचारिकता के अपनी बात रखने के बाद वे पूरी तन्मयता से दूसरे पक्ष को भी सुनते थे।
इन ठीयों पर चर्चाओं के दौरान कई बार उग्रता भी आ जाती थी लेकिन कभी वैमनस्यता नहीं रही। ठहाकों और तनातनी के बीच रातभर गुलजार रहने वाले ये
इंदौरी ठीए इंटरनेट मीडिया के युग में अब सुने पड़े हैं। नई पीढ़ी को तो इनके बारे में जानकारी तक नहीं है।
राजनीतिक चर्चा होती थी, राजनीति नहीं
मल्हारगंज चौराहे पर टोरी कार्नर ठीया करीब 75 वर्ष पुराना है। रात गहराने के साथ-साथ यहां सियासी चर्चाओं का रंग जमने लगता था। सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता यहां आते बेबाकी से अपनी बात रखते और फिर शुरू होता चर्चाओं का दौर। दूसरे दिन इस ठीए पर होने वाली चर्चाओं की चर्चा पूरे शहर में हुआ करती थी। टोरी कार्नर की टिमटिम (चाय) की चुस्कियां लेते हुए बड़े-बड़े नेता इन चर्चाओं का हिस्सा बनते।
कई लोग थे जो नियमित रूप से इन ठियों पर पहुंचते थे। ऐसा ही एक ठिया था
मालगंज का। रात ढलने के साथ-साथ यहां जमावड़ा बढ़ने लगता था। उस दौर में मालवा मिल चौराहे पर इंटक के नेताओं का ठिया भी खासा प्रसिद्ध था। इस ठीए की विशेषता थी कि यहां बड़ी संख्या में मिल मजदूर पहुंचते थे। बजाजखाना चौक पर चचा का ठीया भी था, जहां समाजवादी नेताओं की बैठक जमा करती थीं।
कविता पाठ कर माहौल सुधारते
मैं खुद कई वर्षों तक नियमित रूप से टोरी कार्नर पर जमने वाले ठीए का हिस्सा रहा हूं। अन्य जगह भी ठीए जमते थे। इन पर साहित्यिक चर्चा भी हुआ करती थी। सियासी चर्चा के बीच कई बार गहमा-गहमी भी हो जाती थी। ऐसे में चर्चा में शामिल कवि कविता पाठ कर माहौल को हल्का करते थे। इन ठीयों पर विचार विमर्श होता था, लेकिन कभी कोई मर्यादा नहीं लांघता था। अब ये ठीए सूने पड़े हैं।
-सत्यनारायण सत्तन, वरिष्ठ नेता
चर्चा खत्म होते ही माहौल बदल जाता था
1947 में टोरी कार्नर ठीए की शुरुआत हुई थी। दशकों तक यह परंपरा बनी रही। चर्चाओं का कोई पूर्व निर्धारित विषय नहीं होता था। बावजूद इसके ये चर्चाएं देर रात तक चलती थीं। कई बार दो विरोधी विचारधारा के लोगों के बीच तनातनी भी हो जाती थी, लेकिन खास बात यह रहती थी कि ठीयों से जाते समय व्यक्ति दिल पर कोई बोझ रखकर नहीं जाता था। चर्चाएं खत्म होते-होते माहौल हंसी-मजाक का हो जाता था।
-शेखर गिरी, टोरी कार्नर
दशकों पुरानी परंपरा है
मैं इन इंदौरी ठीयों को अकल चबूतरा कहता हूं। यह बहुत पुरानी परंपरा है। इन ठीयों का अपना महत्व होता था। पुराने समय में इन ठीयों पर स्वस्थ्य चर्चा होती थी। कोई बुरा नहीं मानता था। ये ठीए मनोरंजन का साधन भी हुआ करते थे। राजनीतिक सौहार्द का माहौल हुआ करता था।
-बाबूसिंह रघुवंशी, वरिष्ठ नेता