By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Mon, 08 Apr 2024 07:49:09 AM (IST)
Updated Date: Mon, 08 Apr 2024 09:35:33 AM (IST)
MP Dairy: उज्ज्वल शुक्ला, इंदौर। रतलाम के जुलवानिया गांव में गर्मी की दस्तक के साथ बड़ा जल संकट शुरू हो गया है। गांव में पेयजल स्रोत के नाम पर एक हैडपंप है, इसमें भी नाममात्र का पानी आ रहा है। कभी-कभार पानी आ भी जाता है तो गांव वालों को पानी भरने अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। प्रदेश में जल संकट की स्थिति ऐसी है कि विदिशा जिले के सिरोंज से भाजपा विधायक उमाकांत शर्मा को अपने क्षेत्र में पानी की कमी दूर करने के लिए एक एसडीएम के पैर तक छूने पड़ गए थे। इसका वीडियो भी इंटरनेट मीडिया पर बहुप्रसारित हुआ था। जल संकट केवल रतलाम या विदिशा जिले की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे मध्य प्रदेश की समस्या है। यह स्थिति सिर्फ इस वर्ष की भी नहीं है।
मध्य प्रदेश का बड़ा हिस्सा हर साल पानी के संकट से जूझता है और लोगों को पानी की तलाश में कई-कई किमी का रास्ता तय करना होता है। प्रदेश में अभी गर्मी की शुरुआत हुई ही है और
जल संकट के ऐसे हालात नजर आने लगे हैं। इसकी मुख्य वजह प्रदेश के कई इलाकों में भूजल स्तर का कम होना है। पिछले 10 सालों से लगातार भूजल स्तर कम हुआ है, लेकिन इसे बढ़ाने के लिए जिम्मेदारों के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। वे आंख बंदकर भयावह स्थिति बनने का इंतजार कर रहे हैं। भूजल स्तर बढ़ाने की कवायद के तहत पिछले दिनों इंदौर में बड़े पैमाने पर 'वंदे जलम्' अभियान की शुरुआत की गई है। संस्था संघमित्र व विश्वम् इसे नगर निगम के सहयोग से चलाएंगे।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जल संकट लगातार गहरा रहा है। कई राज्य भूजल की कमी के चरम बिंदु को पार कर चुके हैं। रिपोर्ट में ऐसा अनुमान लगाया गया है कि पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में वर्ष 2025 तक गंभीर रूप से भू-जल संकट गहरा सकता है।
भारत में दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि देश के पास सिर्फ चार प्रतिशत जल संसाधन हैं। यह आंकड़ा भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा पानी की कमी वाले देशों में से एक बनाता है।
यही वजह है कि पिछले कुछ साल से गर्मी आते ही पानी भारत में सोने की तरह कीमती चीज बनती जा रही है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बड़ी संख्या में लोग जल संकट का सामना करते हैं। पानी की जरूरत के लिए भारत की अनियमित मानसून पर निर्भरता इस चुनौती को और बढ़ा रही है। इससे लाखों लोगों का जीवन और आजीविका खतरे में हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पानी की चुनौतियां और बढ़ी हैं।
लगातार हो रहे
जलवायु परिवर्तन ने पानी के स्रोतों में बाढ़ या सूखे जैसी स्थिति पैदा कर दी है। समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआइ) रिपोर्ट के अनुसार देश के 21 प्रमुख शहरों में लगभग 10 करोड़ लोग जल संकट की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। वर्ष 1994 में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 6000 घन मीटर थी जो वर्ष 2025 तक घटकर 1600 घन मीटर रह जाने का अनुमान है।
पानी की बर्बादी और प्रदूषण के लिए हमारी आदतें जिम्मेदार हैं। उपयोग किए गए पानी का फिर से उपयोग किया जाना चाहिए। हम स्नान में भारी मात्रा में पानी बर्बाद करते हैं। ऐसे ही वाटर पार्क से लेकर गाड़ियों की धुलाई और वाशिंग मशीन में अकसर पानी का दुरुपयोग करते हैं। दुनिया के कुछ देशों में वाश बेसिन से निकले पानी को पाइप से जोड़कर शौचालय की सफाई में इस्तेमाल किया जाता है।
कार या कपड़े धोने अथवा एयर कंडीशनर से निकले पानी को फिर से इस्तेमाल करने की तकनीक का विकास तात्कालिक आवश्यकता है। वर्षा जल संचयन जरूरी है। प्रत्येक छत पर वर्षा जल संचयन, इस पानी का सदुपयोग और शेष पानी को एक पाइप द्वारा जमीन के भीतर तक ले जाने से भूगर्भ जल में बढ़त होगी।
जल ही जीवन है, जल के बिना सुनहरे कल की कल्पना नहीं की जा सकती, यह बातें हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। इसके बावजूद हमारे देश या प्रदेश में कभी जल संरक्षण के बारे में कोई खास काम नहीं हुआ। जल संरक्षण को लेकर कागजों पर योजनाएं खूब बनती हैं, पर वह कभी धरातल पर नजर नहीं आती हैं। प्रतिवर्ष जल संकट पहले के मुकाबले और गहराता जा रहा है, लेकिन हम हमेशा यही सोचते हैं बस जैसे-तैसे गर्मी का मौसम निकाल जाए, बारिश आते ही पानी की समस्या दूर हो जाएगी और यह सोचकर जल संरक्षण के प्रति बेरुखी अपनाए रहते हैं। ऐसी स्थिति सरकार और आम जनता दोनों के लिए चिंता का विषय है। इस दिशा में अगर त्वरित कदम उठाते हुए सार्थक पहल की जाए तो स्थिति बहुत हद तक नियंत्रण में रखी जा सकती है, अन्यथा अगले कुछ वर्ष हम सबके लिए चुनौतीपूर्ण साबित होंगे।
वर्षा जल संरक्षण की कमी
जल संकट बढ़ने का बड़ा कारण यह भी है कि हम वर्षा जल का बहुत कम मात्रा में संरक्षण कर पाते हैं। एक ओर जहां इसरायल जैसे देश में औसतन 10 सेंटीमीटर वर्षा होने के बावजूद भी वह इतने अन्न का उत्पादन कर लेता है कि उसका निर्यात करने में भी सक्षम हो जाता है। भारत में औसतन पचास सेंटीमीटर से भी ज्यादा वर्षा होने के बावजूद अन्न की कमी बनी रहती है। दरअसल नदियों-तालाबों जैसे पवित्र माने जाते रहे जलस्रोतों को सहेजने में लापरवाही और वर्षा जल संचयन का उचित प्रबंध न होना जल संकट गहराते जाने की मुख्य वजह बन रहे हैं।
वर्ष 2030 तक 25 शहर ‘डे जीरो’ की कगार पर
वर्ष 2025 तक देश में जल संकट बहुत बढ़ जाएगा। वर्ष 2030 तक कई शहर ‘डे जीरो’ की कगार पर होंगे। दुनिया में कतर, इसरायल, ईरान, लीबिया, इरिट्रिया, जार्डन, कुवैत, सऊदी अरब, यूएई, भारत और पाकिस्तान सहित कुल 17 देश ऐसे हैं जो डे-जीरो के करीब हैं। डे-जीरो यानी वो दिन जब नल से पानी आना बंद हो जाए। दक्षिण अफ्रीका के कैपटाउन शहर में बीते तीन साल से सूखा खतरनाक स्थिति तक पहुंच गया है।
नंबर गेम
- 110 करोड़ लोगों को हर दिन पानी नहीं मिल पाता है
- 270 करोड़ लोगों को साल में एक महीना पानी की कमी से जूझना पड़ता है।
- 150 लीटर पानी की आवश्यकता प्रति व्यक्ति प्रति दिन होती है।