
MP Forest नईदुनिया प्रतिनिधि, मालवा-निमाड़। कभी प्राकृतिक संपदाओं से समृद्ध रहे मालवा-निमाड़ क्षेत्र के जिले और नर्मदा-ताप्ती नदियों के तट धीरे-धीरे वन विहीन होते जा रहे हैं। जंगलों में अंधाधुंध होने वाली कटाई से सघन वन क्षेत्र बड़े बगीचों में बदल चुके हैं। वन माफिया पेड़ों की कटाई कर रहा है और वन विभाग कागजी खानापूर्ति के लिए समय-समय पर कार्रवाई की रस्म पूरी कर फिर आंख मूंद लेता है वोट और सत्ता के लालच में जनप्रतिनिधि भी प्रकृति के साथ हो रहे इस खिलवाड़ पर चुप्पी साधे हैं।
‘नईदुनिया’ ने मालवा-निमाड़ में वन संपदा की पड़ताल की तो मैदानी हकीकत कुछ इस तरह सामने आई। खरगोन जिले में महाराष्ट्र सीमा से सटे सतपुड़ा (भगवानपुरा-झिरन्या क्षे्त्र) वन क्षेत्र में वन्य जीव हैं। इसके अलावा बड़वाह, काटकूट, मंडलेश्वर व कसरावद में वन क्षेत्र है। सतपुड़ा, बड़वाह क्षेत्र में अवैध वन कटाई के कारण क्षेत्र कम हो रहा है। यहां तेंदुआ, हिरण सहित अन्य जीव हैं। पहले एक लाख 80 हजार हेक्टेयर से ज्यादा वन क्षेत्र था।
पांच सालों से कटाई से इसमें 30 हजार हेक्टेयर की कमी आई है। अब पर्यावरण विशेषज्ञों ने चिंता जताई है। उधर, वन विभाग की इको टूरिज्म (ग्रीन इंडिया मिशन) में 125 हेक्टेयर में पांच नगर वन विकसित किए जा रहे हैं। दो माह के बाद सभी जगह पर्यटन शुरू हो जाएगा। सांसद गजेंद्र सिंह पटेल का कहना है कि केंद्र सरकार की योजना से दोबारा वन व वन्य जीव को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। नई सरकार बनने पर जिले को वन व वन्य जीवों के लिए प्राथमिकता वाली योजनाओं पर ध्यान दिया जाएगा।
खंडवा जिले में करीब दो लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र था, लेकिन पांच साल में तेजी से हुई वन कटाई और अतिक्रमण ने 40 हजार हेक्टेयर से ज्यादा के जंगल को नष्ट कर दिया है। इसमें से ज्यादातर भूमि अब भी अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है। दो साल पहले तत्कालीन डीएफओ ने जंगल से गोंद संग्रहण पर लगे प्रतिबंध को हटा कर थोक के भाव लाइसेंस जारी कर दिए थे। इससे गोंद देने वाले हजारों पेड़ केमिकल वाले इंजेक्शन लगाने से नष्ट हुए हैं। वर्तमान डीएफओ विजय सिंह ने कुछ दिन पहले ही लाइसेंस निरस्त कर गोंद संग्रहण पर एक साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है।
धार जिले में 11 हजार 995 हेक्टेयर में वन क्षेत्र है। यह जिले के कुल भूभाग का 15% है। कभी जिले में वन का घनत्व करीब 34% हुआ करता था। वन विभाग नियमित रूप से पौधरोपण कार्यक्रम चलाया जाता है।
सघन वन क्षेत्र में भी कमी झाबुआ जिले में सघन वन क्षेत्र भी कम होता जा रहा है। देवझिरी, कोटड़ा, नवागांव, कालापीपल क्षेत्र में ही वन विभाग द्वारा नया जंगल तैयार किया गया है लेकिन आए दिन पेड़ कट रहे हैं। यहां भी सांसदों ने वनक्षेत्र बचाने के लिए नाम मात्र के प्रयास भी नहीं किए। कुछ वर्ष पूर्व पुलिस विभाग व जिला प्रशासन ने हाथीपावा पहाड़ी पर 10 हजार के करीब पौधे लगाए थे।
शाजापुर जिले में वनक्षेत्र नहीं हैं। वन मंडल अधिकारी मयंक चांदीवाल का कहना है कि हरियाली बचाने के लिए वैकल्पिक पौधारोपण के तहत जेठड़ा में 100 हेक्टेयर भूमि पर पौधे लगाए हैं। सगाड़िया में 85 हेक्टेयर, सेतखेड़ी में 30 हेक्टेयर और अन्य जगह पर भी पौधारोपण हो चुका है। वैकल्पिक पौधारोपण के तहत 11 वर्ष तक इनके रखरखाव की योजना है।
देवास में बागली, कन्नौद, उदयनगर जैसे क्षेत्रों में वन संपदा अधिक है। सागवान के घने जंगल हैं। कुछ समय से वन माफिया वन संपदा नष्ट कर रहे हैं। माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि वनकर्मियों पर हमले भी हो चुके हैं। कुसमानिया के पास खिवनी अभयारण्य है। यहां करीब 8 बाघ समेत तेंदुए और अन्य वन्य जीव हैं। इनके बचाव के लिए जनप्रतिनिधियों ने ठोस व कारगर कदम नहीं उठाए।
सतपुड़ा की पर्वत शृंखला के बीच बसे बड़वानी जिले में फिलहाल जंगल कम हो गया है। सरदार सरोवर के बैकवाटर के कारण तटीय इलाके का एक बड़ा जंगल क्षेत्र बैकवाटर में समा गया है। सामाजिक संस्थाओं के प्रयासों से पहाड़ियों को गोद लेकर पौधारोपण कर हराभरा किया जा रहा है।