नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (MP High Court) की इंदौर खंडपीठ ने दैनिक वेतनभोगी से स्थायी किए गए कर्मचारियों को राहत देते हुए उन्हें सातवें वेतन आयोग का लाभ (benefit of seventh pay scale) देने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति विनोद कुमार द्विवेदी की युगलपीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। राज्य शासन ने वर्ष 2016 में दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को स्थायी कर्मी का दर्जा देने के लिए नीति बनाई थी।
इस नीति के तहत कर्मचारियों को कुशल, अर्धकुशल और अकुशल तीन वर्गों में बांटकर उन्हें निश्चित वेतनमान दिया गया था, लेकिन वर्ष 2017 में जब प्रदेश शासन ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू कीं, तब इन स्थायी कर्मियों को इससे वंचित रखा गया। इसके खिलाफ कर्मचारियों ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता प्रखर कार्पे और श्रेय चांडक ने तर्क प्रस्तुत किया कि स्थायी कर्मी नियमित कर्मचारियों की तरह ही कार्य करते हैं, इसलिए उन्हें वेतनमान से वंचित रखना समान कार्य के लिए समान वेतन के संवैधानिक सिद्धांत का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी बताया कि इन कर्मचारियों को पांचवें और छठे वेतन आयोग का लाभ पहले ही दिया जा चुका है, इसलिए सातवें वेतन आयोग से वंचित रखना न्यायसंगत नहीं है।
वहीं, शासन ने तर्क दिया कि स्थायी कर्मी नियमित कर्मचारी नहीं हैं, इसलिए उन्हें वेतन आयोग का लाभ नहीं दिया जा सकता। शासन का कहना था कि वर्ष 2016 की नीति में स्पष्ट है कि इन कर्मचारियों को केवल निश्चित वेतनमान और महंगाई भत्ता मिलेगा। हालांकि, न्यायालय ने शासन के तर्कों को अस्वीकार करते हुए कहा कि स्थायी कर्मियों को जीवनभर एक ही वेतनमान में बांधकर रखना भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है।
कोर्ट ने आदेश दिया कि जब नियमित कर्मचारियों का वेतनमान सातवें वेतन आयोग से बढ़ाया गया है तो स्थायी कर्मियों का न्यूनतम वेतनमान भी उसी अनुपात में संशोधित किया जाना चाहिए। कोर्ट के इस फैसले से प्रदेश के हजारों स्थायी कर्मियों को सीधा लाभ मिलेगा। अब वे न केवल सातवें वेतन आयोग के तहत संशोधित वेतनमान प्राप्त करेंगे, बल्कि वर्षों से रोके गए बकाया की राशि भी उन्हें मिलेगी।
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