
सुमेधा पुराणिक चौरसिया, इंदौर नईदुनिया। जलसंकट से निपटने के लिए अब मुस्लिम समाज भी आगे आया है। नमाज में 'वजू' के लिए इस्तेमाल होने वाला पानी ड्रेनेज के बजाय जमीन में उतारने की तैयारी है। अगर शहर की सभी 300 मस्जिदों में वजू का पानी बचाने के लिए पहल हुई तो प्रतिदिन छह लाख लीटर और सालाना 18 करोड़ लीटर पानी बचाया जा सकता है। पानी रिचार्ज करने के लिए शहर की मस्जिदों को तैयार किया जा रहा है। मस्जिदों में नमाज के पहले वजू के लिए रोज लाखों लीटर पानी इस्तेमाल किया जाता है। वजू यानी हाथ-पैर और मुंह धोने के लिए हर व्यक्ति को कम से कम एक बाल्टी पानी लगता है। यह पानी सीधे ड्रेनेज लाइन में जाकर बर्बाद हो जाता है।
शहर में वाटर हार्वेस्टिंग करवा रही नगर निगम की तकनीकी टीम ने शहरकाजी डॉ. इशरत अली से मुलाकात की। शहरकाजी मस्जिदों में वाटर रिचार्जिंग के लिए तैयार हुए। उन्होंने माना कि अगर सभी मस्जिदों में पानी रिचार्ज होगा तो बड़ी मात्रा में पानी बचाया जा सकता है। शहरकाजी ने सभी मस्जिद प्रबंधन से पानी बचाने का यह आसान तरीका अपनाने की अपील की है। निगम की तकनीकी टीम पिट तैयार करने में मदद करेगी।
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सभी संकल्प करें तो शहर को डेंजर जोन से बाहर ला सकेंगे : शहरकाजी ने मस्जिदों से वजू का पानी बचाने का एक औसत हिसाब तैयार किया है। उन्होंने बताया कि शहर में 300 मस्जिद हैं। हर मस्जिद में रोजाना 200 लोग दो वक्त की नमाज पढ़ने जाते हैं। इस हिसाब से रोज करीब 1 लाख 20 हजार लोग वजू करते हैं। वजू के लिए हर इनसान को करीब पांच लीटर पानी लगता है। इस तरह से वजू के दौरान रोज औसतन छह लाख लीटर पानी नाली में बह जाता है। इस हिसाब से सालभर में 18 करोड़ लीटर पानी बहता है। इसी तरह छत से बारिश का तीन करोड़ लीटर पानी बहकर व्यर्थ होता है। अगर सभी मस्जिद प्रबंधन पानी बचाने का संकल्प कर लें तो लाखों लीटर पानी रोज बचाकर खतरे के संकेत तक पहुंच चुके शहर को सूखे से बचाया जा सकता है। डॉ. इशरत अली ने कहा कि सभी को पानी बचाने के लिए सोचना चाहिए।
मुस्लिम समाज का सकारात्मक रवैया : वाटर हार्वेस्टिंग में तकनीकी सपोर्ट कर रहे नागरथ चेरिटेबल ट्रस्ट के सुरेश एमजी ने बताया कि हमने शहर काजी से मुलाकात की है। पानी बचाने के लिए मुस्लिम समाज का काफी सकारात्मक रवैया है। उन्होंने पानी बचाने का जो हिसाब तैयार किया है, वह भी काफी अहमियत रखता है। इसी तरह गुरुद्वारा और चर्च में भी पानी बचाने की पहल पर काम शुरू हो गया है।
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सीधे बोरिंग में नहीं उतरता जमीन में नमी बनाता है
तकनीकी विशेषज्ञों के अनुसार वेस्ट पानी जमीन में उतारने की सबसे आसान और सस्ती प्रक्रिया है। इसमें पानी सीधे बोरिंग में नहीं उतरता सिर्फ जमीन में नमी बनाए रखता है। पानी निकासी वाले स्थान से पाइप जोड़कर सीधे जमीन तक लाते है। वहां उचित स्थान देखकर पिट (गड्ढा) किया जाता है जिसे सोखता गड्ढा या रिचार्ज शॉफ्ट कहते हैं। गड्ढ़े को मिट्टी और गिट्टी (बारीक पत्थर) से भरते हैं। इसके जरिये पानी जमीन में 12-15 फीट अंदर उतरकर आसपास के जलाोतों में नमी बनाए रखता है। यह तरीका पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से बेहतर है।
लोकमान्य और राजेंद्र नगर में भी हो चुके हैं प्रयास
लोकमान्य नगर और राजेंद्र नगर में कई सार्वजनिक स्थानों पर पिट बनाकर वाटर रिचार्जिंग के प्रयास किए जा रहे हैं। वर्षों पहले इन क्षेत्रों में यह पहल हो चुकी थी। पक्की सड़कें बनने के बाद पिट बनाकर वाटर रिचार्जिंग किया जा रहा है, जहां सड़क पर बहने वाला पानी या आंगन धोने या कपड़े धोने वाला पानी उतारा जा रहा है। लोकमान्य नगर निवासी अजय वैंशंपायन ने बताया कि पानी की बर्बादी को रोकने के लिए हमारे क्षेत्र में हर तरह से पानी रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं।
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