- ख्यात पार्श्वगायिका संजीवनी भेलांडे ने सजाया सुरीले गीतों का सुंदर गुलदस्ता
इंदौर। नईदुनिया रिपोर्टर
मासूमियत से लबरेज मीठी आवाज, नर्मो-नाजुक मिजाज और बेहद दिलकश अंदाज के साथ जब रविवार की रात ख्यात पार्श्वगायिका संजीवनी भेलांडे ने लाभ मंडपम् सभागार का मंच संभाला तो श्रोताओं ने करतल ध्वनि से उनका स्वागत किया। भीगे-भीगे आलम में संजीवनी ने कुछ ऐसे मीठे गीत सुनाए कि कार्यक्रम यादगार बन गया। उन्होंने दर्शाया कि मुसलसल रियाज के दम पर उन्होंने अपने स्वरों को कुछ इस तरह साध लिया है कि वो उस मौसम में भी सलीके से साथ निभाते हैं, जिसमें ज्यादातर लोगों के गले जवाब देने लग जाते हैं। जो हरकतें वो गले से ले रही थीं, उसी तर्ज पर उनके हाथ भी जुंबिश कर रहे थे। उनकी बॉडी लैंग्वेज में भी उनके सुरों का अक्स नजर आ रहा था। गाते-गाते कभी वो मग्न होकर आंखें बंद कर लेतीं तो कभी श्रोताओं से आई कॉन्टैक्ट करते हुए गातीं। लेकिन इस दौरान इस बात का पूरा एहतियात रखतीं कि उनके सुर कमजोर न पड़ें।
गीत ही नहीं गीतों की जानकारियां भी
महान गीतकार पं.नरेंद्र शर्मा के लिखे और लता मंगेशकर के गाए कालजयी गीत 'ज्योति कलश छलके' के साथ मंच पर नमूदार होते हुए संजीवनी ने दर्शा दिया कि उनकी तैयारी किस आला दर्जे की है। इसके बाद उन्होंने अलग-अलग थीम के मुताबिक गीतों की प्रस्तुति दी। इनमें राग-रागिनियों पर आधारित गीतों का खासतौर पर जिक्र करना लाजमी है। क्योंकि सबसे ज्यादा तालियां इन्हीं गीतों के हिस्से में आईं। इस तरह के गीतों में 'मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे, ये दिल और उनकी निगाहों के साए, अजीब दास्तां है ये' जैसे गीत खासतौर पर उल्लेखनीय रहे। संजीवनी ने बताया कि फिल्म मुगल ए आजम की ठुमरी 'मोहे पनघट पे' में नौशाद साहब ने इस तरह संगीत दिया था कि संगीत पूरे दृश्य का चित्रण बंद आंखों के सामने भी कर देता है। यह गीत उन्होंने नौशाद के जन्म शताब्दि वर्ष में उन्हें समर्पित करते हुए सुनाया।
भीगी-भीगी रात में गीतों की बौछार
लता मंगेशकर और आशा भोंसले के गीतों को जहां बखुबी सुनाकर उन्होंने दाद बटोरी वहीं खुद के द्वारा गाए गीत भी उन्होंने पेश किए। मंच से यह बात उन्होंने कही भी कि जिन गीतों से मेरी पहचान बनी उन्हें मैं एक बार फिर श्रोताओं को सुनाउंगी। इस कड़ी में उन्होंने राहत इंदौरी द्वारा लिखा गया करीब फिल्म का गीत 'चोरी चोरी जब नजरें मिली' सुनाया तो युवाओं के चेहरे खिल उठे। इसके अलावा यारा जग छूट जाने दे, ये मोह मोह के धागे सहित कई गीतों को बेहतर खूबसूरती से प्रस्तुत किया। युगल गीतों में स्वरांश पाठक और आशुतोष ने 'ओ मेरे सनम, ये रात भीगी-भीगी, इशारों-इशारों में दिल लेने वाले' और 'भीगी-भीगी रातों में' जैसे गीतों में संजीवनी का बखूबी साथ निभाया। स्वरांश ने 'किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार, ये चांद सा रोशन चेहरा, इक अजनबी हसीना से यूं मुलाकात हो गई' संगतकार रवींद्र कामले (कीबोर्ड), संकेत (तबला), विनोद सहगल (बांसुरी) और रूपेश राणे (ऑक्टोपैड तथा परकशन) ने भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई।
(फोटो : आशू पटेल)