Navratri 2022 : इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। इंदौर के राजवाड़ा के पास सुभाष चौक पर देवी दुर्गा को समर्पित ऐतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर का इतिहास होलकर राजवंश से जुड़ा है। यहां देवी दुर्गा की मूर्ति अस्त्र-शस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित और महिषासुर का मर्दन करते हुए स्थापित है। देवी दुर्गा के साथ महाकाली और महासरस्वती की मूर्तियां भी स्थापित हैं। मंदिर में तीन शिवलिंग भी हैं, जो त्रिदेव के प्रतीक स्वरूप हैं। यहां भैरव की मूर्ति भी है। करीब एक करोड़ रुपये की लागत से वर्ष 2017 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।
इतिहास
जिस स्थान पर यह मंदिर है, वहां कभी होलकर सेना की चौकी हुआ करती थी। तुकोजीराव होलकर प्रथम को स्वप्न में मां दुर्गा ने दर्शन देते हुए बताया कि उनकी यह मूर्ति महेश्वर के पास सहस्रधारा में है। वहां से मूर्ति इंदौर लाई गई। तुकोजीराव द्वारा लिए गए संकल्प अनुसार मूर्ति को हाथी पर विराजित कर नगर भ्रमण कराया गया। जहां हाथी रुका, वहीं मूर्ति स्थापित कर दी गई। इस तरह चौकी ने मंदिर का रूप लिया और 1781 में फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को इस मंदिर में मां दुर्गा की यह मूर्ति स्थापित हुई। उस वक्त मां को चढ़ाई गई होलकर कालीन दो तलवारें आज भी यहां रखी हैं।
दिन में तीन बार रूप बदलती है मूर्ति
सफेद संगमरमर से बनी इस मूर्ति पर प्राकृतिक रूप से बने तिल भी हैं। कहा जाता है कि यह मूर्ति स्वयंभू है और दिन में तीन बार रूप बदलती है। सुबह बाल्यावस्था, दोपहर में युवा और शाम को वृद्धावस्था के भाव मां के चेहरे पर नजर आते हैं। मां की पूजा और श्रृंगार मराठी परंपरानुसार होता है। यूं तो यह मंदिर सभी के लिए आस्था का केंद्र हैं, लेकिन मराठीभाषी परिवारों की यहां गहरी आस्था है। नवरात्र में यहां बड़ी संख्या में महिलाएं मां की गोद भराई के लिए आती हैं।
दुखों को दूर करती हैं दुर्गा
मंदिर के पुजारी पं. उदय एरंडोलकर ने बताया कि मां दुर्गा दुखों को दूर करने वाली हैं। महिषासुर मर्दिनी के रूप में मां दुष्टों का नाश करती हैं। यहां वासंती और शारदीय नवरात्र के अलावा स्थापना दिवस पर विशेष अनुष्ठान होते हैं। दोनों नवरात्र की दशमी तिथि पर पूरण की आरती होती है और पूरण पोली का भोग लगता है। नवरात्र में देवी का दिन में दो बार श्रृंगार किया जाता है।
पूरी होती है हर मनोकामना
मंदिर के भक्त खेमराज दवे का कहना है कि मैं बचपन से इस मंदिर में दर्शन करने आ रहा हूं। मां के प्रति गहरी आस्था है। वे हर समस्या, दुख दूर कर देती हैं। यहां दर्शन कर मन को बहुत शांति मिलती है। मां की आराधना केवल शास्त्रोत्क ही नहीं, बल्कि भावनात्मक भी है क्योंकि हम मां से भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हैं।