नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर : देश दुनिया में प्रसिद्ध नूरजहां आम के पेड़ों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक प्रयास शुरू किए जा रहे हैं। आलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा में इस आम के सिर्फ नौ पेह़ ही बचे हैं। आधा से चार किलो वजनी इस आम की प्रसिद्धि इतनी है कि सीजन शुरू होने के महीनों पहले ही फल की बुकिंग हो जाती है। वैज्ञानिकों ने टिशू कल्चर की सहायता से आम की नई किस्म विकसित करने की दिशा में पहल शुरू की है। उद्यानिकी विभाग को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस आम की मांग देश के साथ ही कुवैत, जर्मनी और दुबई तक है।
इंदौर संभाग के उद्यानिकी विभाग की समीक्षा बैठक में संभागायुक्त दीपक सिंह ने आलीराजपुर के कट्ठीवाड़ा क्ष्रेत्र के नूरजहां आम के पेड़ों का संरक्षण करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही उद्यानिकी विभाग नई किस्म तैयार करेगा। संयुक्त संचालक एनके जाटव ने बताया कि नई किस्म तैयार करने के लिए महाराष्ट्र और बड़वानी की प्रयोगशाला से चर्चा कर किस्म तैयार करने की योजना बनाई जाएगी।
साथ ही किसानों से चर्चा कर इसकी ब्रीडिंग और ग्राफ्टिंग की योजना पर भी काम किया जाएगा, ताकि नई किस्म बनाई जा सके। उल्लेखनीय है कि आलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा में वर्तमान में तीन बगीचों में नूरजहां के नौ पेड़ ही बचे हैं। आलीराजपुर के शिवराज सिंह जाधव के पास छह पेड़ हैं, जबकि उनके भाई भरतराज सिंह जाधव के पास दो पेड़ हैं। एक पेड़ रणजीत सिंह के पास है।
शिवराज सिंह जाधव ने बताया कि नूरजहां आम का वजन 500 ग्राम से लेकर चार किलो तक होता है। इसकी लंबाई 11 इंच होती है और खाने में खट्टा-मीठा होता है। इसमें गूदा ज्यादा होता है और गुठली 200 ग्राम की होती है। गुठली की लंबाई 5 से 6 इंच होती है। फरवरी में पेड़ों पर फूल आना शुरू होते हैं। सामान्यत: जून में आम की फसल तैयार होती है। एक नग का दाम 500 से लेकर 1500 रुपये तक होता है। एक पेड़ में 100 से 150 फल लगते हैं।
नूरजहां का पौधा बेहद मुश्किल से ही पनपता है। इसके लिए विशेष किस्म की मिट्टी और जलवायु की जरूरत होती है। देशी आम की गुठली से तैयार पौधे में नूरजहां की कलम लगाकर इसकी किस्म तैयार होती है। इसी पद्धति से तीन पौधे तैयार किए हैं।