Police Complain Process: थाने पर रिपोर्ट न लिखी जाए तो पुलिस अधीक्षक को की जा सकती है शिकायत
Police Complain Process: कई बार व्यक्ति को ऐसा लगता है कि पुलिस थाने वाले आरोपित के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Thu, 08 Feb 2024 01:06:16 PM (IST)
Updated Date: Thu, 08 Feb 2024 01:06:16 PM (IST)
थाने पर रिपोर्ट न लिखी जाए तो पुलिस अधीक्षक को की जा सकती है शिकायतनईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। Police Complain Process अपराध होने पर संज्ञेय अपराधों में ही पुलिस फरियादी की रिपोर्ट थाने पर दर्ज करती है। संज्ञेय अपराधों में ऐसे अपराध सम्मिलित होते हैं, जो कि गंभीर प्रवृति के होते हैं और भारतीय दंड प्रक्रिया में धारा 320 (2) में जिनका उल्लेख होता है। इन अपराधों में फरियादी या अपराधी राजीनामा नहीं कर सकते।
एडवोकेट विमल मिश्रा ने बताया कि कई बार व्यक्ति को ऐसा लगता है कि पुलिस थाने वाले आरोपित के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, मगर पुलिस भी कानून की विधि अनुसार कार्य करने को प्रतिबद्ध है। अगर संज्ञेय अपराधों में अपराध नहीं बनता है, तो पुलिस आरोपितों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं करती, केवल सूचना प्राप्त कर अदम चेक काट देती है। असंज्ञेय अपराध में पुलिस द्वारा अदम चेक काटने पर फरियादी को यह वैधानिक अधिकार प्राप्त है कि वह आरोपित के खिलाफ न्यायालय में निजी परिवाद संबंधित थाना क्षेत्र के न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष समयावधि में प्रस्तुत करे।
परिवाद प्रस्तुत करने के लिए फरियादी को अभिभाषक नियुक्त करना होता है। अगर फरियादी निर्धन है यानी कमजोर आर्थिक वर्ग का है, तो वह
विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यालय में जाकर एक आवेदन देकर अपने प्रकरण की पैरवी करने के लिए निश्शुल्क अभिभाषक नियुक्त करवा सकता है। यही नहीं, उसे न्याय शुल्क देने का प्रविधान भी है। असंज्ञेय अपराधों में परिवाद प्रस्तुत करने पर सर्वप्रथम न्यायालय पुलिस थाने से रिपोर्ट तलब करता है और फरियादी और उसके साक्षियों के प्राथमिक कथन दर्ज करने के बाद अपराध पंजीबद्ध करता है। इसके बाद आरोपितों के खिलाफ समन जारी करता है।
अधिकारी दे सकते एफआइआर दर्ज करने के आदेश
आरोपित समन मिलने पर यदि उपस्थित नहीं होते हैं, तो
न्यायालय जमानती और फिर गिरफ्तारी वारंट जारी कर आरोपितों को उपस्थित होने के लिए विवश करता है। वारंट तामिली के पश्चात आरोपितों को न्यायालय से जमानत करवाना होती है। इसके बाद प्रकरण का विचारण विधि अनुसार शुरू हो जाता है। अगर पुलिस फरियादी की रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है, तो सीआरपीसी की धारा 156 (3) में यह प्रविधान है कि न्यायिक दंडाधिकारी निजी परिवाद के साथ प्रस्तुत इस आवेदन पर सुनवाई करके पुलिस थाने के अधिकारी को एफआइआर दर्ज करने के आदेश दे सकते हैं।
धारा 156 (3) का आवेदन प्रस्तुत करते समय यह आवश्यक है कि आवेदन के साथ फरियादी का शपथ पत्र प्रस्तुत किया जाए। अगर 156 (3) का आवेदन न्यायालय स्वीकार कर लेता है, तो पुलिस द्वारा आरोपितों को गिरफ्तार करके, जांच करके, न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया जाता है। अगर आवेदन अस्वीकार हो जाता है, तो फिर न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष निजी परिवाद को विधि अनुसार अधिवक्ता के मार्गदर्शन में फरियादी को प्रकरण चलाना पड़ता है।
सीआरपीसी में कई प्रविधान हैं जिनकी आम व्यक्ति को जानकारी नहीं होती। जैसे कि अगर पुलिस अधिकारी रिपोर्ट नहीं लिखता है तो पुलिस अधीक्षक को इसकी शिकायत की जा सकती है। पुलिस अधीक्षक को भेजी गई शिकायत धारा 154 सीआरपीसी के तहत पुलिस रिपोर्ट ही मानी जाएगी।