इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि । विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान एवं राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठी आयोजित की गई। इंटरनेट मीडिया के जरिए हुई इस संगोष्ठी में वक्ताअों ने 'रामकाव्य की परंपरा और रामराज्य- वैश्विक परिप्रेक्ष्य में' विषय पर विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं मीडिया विशेषज्ञ सुरेशचंद्र शुक्ल ने कहा कि राम की कथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज भी सकारात्मक दिशा देती है। पर्यावरण प्रेम से जुड़े अनेक संदर्भ राम काव्य में मौजूद हैं।
उन्होंने बताया कि नॉर्वेजियन भाषा में तुलसीकृत रामचरितमानस के प्रमुख अंशों का अनुवाद भी किया गया है। प्रमुख वक्ता के रूप में समालोचक एवं विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकाय के अध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि राम का चरित्र अपार है। स्वयं भगवान राम अलग- अलग रूप में धरती पर जन्म लेते हैं। रामराज्य एक विशिष्ट प्रक्रिया के माध्यम से स्वरूप लेता है। रामराज्य केवल राजनीतिक प्रादर्श नहीं, संपूर्ण जीवन दर्शन है। रामराज्य का आना जीवन शैली और मूल्यों में आमूलचूल परिवर्तन होना हैं। महात्मा गांधी ने रामराज्य को स्वराज्य और धर्मराज्य के रूप में अंगीकार है। लौकिक और अलौकिक दोनों ही रूप में राम हमारे बीच हैं। देश दुनिया में रामकाव्य सदियों से विकासमान रहा है। वाल्मिकी द्वारा लिखी रामायण, तुलसीकृत रामचरितमानस एवं अन्य कृतियों में राम एक ऐसे नेतृत्वकर्ता के रूप में दिखाई देते हैं, जिनके संरक्षण में जनता चिरकाल तक रहना चाहती है।
विशिष्ट अतिथि विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान के अध्यक्ष डा. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ने कहा कि स्वयं राम और राम कथा के प्रमुख पात्रों ने मूल्य स्थापित किए हैं। वे धर्मानुकूल मार्ग पर चलने की दिशा देते हैं। डा. गोकुलेश्वर कुमार दि्ववेदी ने कहा कि रामकथा में राम के त्याग की भावना उत्कृष्ट साहस का परिणाम है। राम ने कदम-कदम पर संयम, त्याग और साहस का प्रमाण दिया है। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना महिला इकाई छत्तीसगढ़ की अध्यक्ष डॉ. रिया तिवारी ने कहा कि राम शब्द नहीं, स्वरूप हैं, अहसास हैं, अनुभूति हैं। अायोजन में वक्ता के रूप में लक्ष्मीकांत वैष्णव चांपा, सुवर्णा जाधव, अोमप्रकाश त्रिपाठी, डा. शैल चन्द्रा, डा. वंदना श्रीवास्तव, डा. पूर्णिमा मालवीय, हरेराम बाजपेयी, डा. रश्मि चौबे, रुली सिंह, डा. शिवा लोहारिया अादि ने भी विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में सरस्वती वंदना लता जोशी ने प्रस्तुत की।