इन्हीं आषाढ़ी बादलों को देख मेघदूत जैसी रचना का हुआ जन्म
इस गोष्ठी में विभिन्न शहरों के रचनाकारों व विषय विशेषज्ञों ने भाग लिया। जिसमें विचारों के आदान-प्रदान के साथ कविता, गीत भी प्रस्तुत किए गए।
By gajendra.nagar
Edited By: gajendra.nagar
Publish Date: Sat, 03 Jul 2021 09:32:21 AM (IST)
Updated Date: Sat, 03 Jul 2021 09:32:21 AM (IST)

इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। गर्मी की इंतेहा होने पर पूरा देश जब आसमान की ओर तांकने लगता है, तब दक्षिण, पूर्व और पश्चिम के सागर से काली घटाओं की आमद होती है। महाकवि कालिदास ने इन्हीं आषाढ़ी बादलों को देखकर उन्हें विरही यक्ष का संदेश अलकापुरी में निवासरत प्रिया के पास पहुंचाने का माध्यम बनाया था और सहसा मेघदूत जैसी महान रचना का जन्म हुआ था।
यह बात विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना संस्था द्वारा आयोजित आनलाइन गोष्ठी में कही। 'पावस ऋुतु के सरोकार: साहित्य के परिप्रेक्ष्य में" विषय पर हुई इस गोष्ठी में देश के विभिन्न शहरों के रचनाकारों व विषय विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस वेब संगोष्ठी में विचारों के आदान-प्रदान के साथ कविता, गीत भी प्रस्तुत किए गए। प्रो. शर्मा ने कहा कि महाकवि सूरदास, नंददास, तुलसीदास, सेनापति से लेकर सुमित्रानंदन पंत, निराला ने पावस पर केंद्रित मार्मिक कविताओं का सृजन किया है। लोक संस्कृति में वर्षा के बुलावे के लिए कई उपाय प्रचलित हैं। किसान और उनके परिजन गीतों के माध्यम से बादलों का आव्हान करते हैं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी ने वर्षा के स्वागत पर आधारित रचना सुनाई। जिसमें वर्षा के आगमन का हर्ष भी था और महान कवियों की कृतियों के नामों का समावेश भी था। कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डा. सुवर्णा जाधव ने की। आयोजन में साहित्यकार सुरेशचंद्र शुक्ल, डा. उर्वशी उपाध्याय, डा. रोहिणी डाबरे, प्रतिभा मगर, सविता इंगले, डा. शिवा लोहारिया, गरिमा गर्ग, डा. मुक्ता कौशिक, डा. प्रभु चौधरी थे। कार्यक्रम का संचालन पूर्णिमा कौशिक ने किया।