
मल्टीमीडिया डेस्क। कला को किसी दायरे में नहीं बांधा जा सकता और न इसका कोई दायरा होता। साथ ही साथ कला की कोई परिभाषा भी नहीं होती है। कलाकार की प्रतिबद्धता ही उसे कला में पारंगत करती है, लेकिन जब कोई कलाकार परंपरागत कला से हटकर नई कला विकसित करता है तो उसकी प्रतिभा को नए नजरिए से देखा जाता है। इसका कारण यह है कि उसकी कला का कोई सानी नहीं होता। इंदौर के मूर्तिकार राकेश वर्मा एक ऐसे ही कलाकार हैं, जिन्होंने अपनी रचनात्मकता से मूर्तिकला को एक नया आयाम दिया और लोगों के छोटे आकार के स्टेच्यू (मूर्ति) बनाए। कला के प्रति उनमें ऐसा जुनून है, जिसने उन्हें मूर्तिकला के एक अनोखे मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उन्होंने क्ले से किसी भी व्यक्ति का चित्र देखकर उसका स्टेच्यू निर्माण करना प्रारंभ किया और आज वे इसके सिद्धहस्त कलाकार माने जाते हैं।
राकेश वर्मा अपने प्रत्येक ग्राहक के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं और वही भाव उनके स्टेच्यू में भी लाने की कोशिश करते हैं। इस रचनात्मक कला के क्षेत्र में उनके पास 11 साल का अनुभव है। उन्होंने इंदौर में बतौर ग्राफिक डिजाइनर, फोटोग्राफर और क्रिएटिव डायरेक्टर की हैसियत से विभिन्न एजेंसियों में काम किया है। काम के प्रति समर्पण और अभिनव दृष्टिकोण रखने के साथ ही वे हमेशा अपने ग्राहकों को अनुकूलित बजट से खुश रखने की भी कोशिश करते हैं। अपनी कला यात्रा की शुरुआत में उन्होंने सबसे पहले स्वर्गीय एपीजे अब्दुल कलाम की का स्टेच्यू बनाया, जिसे काफी सराहा गया। नोबेल पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी की मूर्ति बनाने को भी वे एक उल्लेखनीय उपलब्धि मानते हैं।

भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम की छोटी मूर्ति।
राकेश वर्मा बताते हैं, 'मुझे छोटे स्टेच्यू बनाने की प्रेरणा चौराहों पर नेताओं और प्रसिद्ध हस्तियों के स्टेच्यू से मिली। उन्हें लगा कि केवल नेताओं और प्रसिद्ध लोगों के ही स्टेच्यू (मूर्तियां) क्यों बने? आम आदमी के पास भी छोटे रूप में उसकी खुद की या उसके परिजन की मूर्ति हो सकती है। मैंने दिसंबर 2016 से इस पर काम करना शुरू किया। मैंने क्ले से ऐसी मूर्तियां बनाना शुरू किया और अब तक कई लोगों की मूर्तियां बना चुका हूं। सबसे पहले मैंने एपीजे कलाम से काम शुरू किया, फिर कुछ मॉडल बनाए। पिछले दिनों श्री कैलाश सत्यार्थी जी की इंदौर यात्रा के दौरान मुझे डेली कॉलेज में उनसे मिलने का मौका मिला तो मैंने उनका मिनी स्टेच्यू उन्हें भेंट किया। वे आश्चर्यचकित हुए और मेरी कला को बहुत सराहा। मैंने मल्टीमीडिया में डिप्लोमा किया है और इस मूर्तिकला को मैंने स्वयं विकसित किया है। इसे इंटरनेट, पुस्तक और अन्य माध्यम से संवारने की कोशिश करता हूं।'
राकेश की कोशिश है कि वे अपनी कंपनियों शांतिमन और वेडिंगमामा के माध्यम से ग्राहकों को अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में बेहतर कला सेवाएं मुहैया करें।