इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि) Leopard Hunt Indore। आठ माह पुराने तेंदुआ गोलीकांड को स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स (एसटीएसएफ) ने सुलझाने का दावा किया है। मगर पूरी जांच सवालों के घिरे में आ गई है। शिकारियों के बयान में तेंदुए को गोली मारने का कोई जिक्र नहीं है। नौ जुलाई की घटना का भी उल्लेख नहीं है। शिकारियों के स्वजन ने एसटीएसएफ पर फर्जी सुबूत तैयार करने का आरोप लगाया है। साधे कागज पर हस्ताक्षर करवाकर आरोपितों के बयान लिखवाने की बात भी सामने आई है। हालांकि शनिवार को दो शिकारियों का रिमांड पूरा हो गया है। दो अन्य आरोपितों को भी कोर्ट में पेश किया, जहां से चारों को जेल भेज दिया गया।
28 मार्च को घड़िया गांव से रामचरण और विष्णु नामक दो शिकारियों को वनपाल थावरसिंह गेवाल व अमित निगम ने पकड़ा था। रमेश, राजेंद्र जाघव, अतुल, मोहन, महेश फरार हो गए। पूछताछ में शिकारियों ने जंगली सूअर, खरगोश और सेही का शिकार करना बताया। उन्होंने बंदूक जंगल में फेंकने की बात भी बताई। 30 मार्च को दोनों शिकारियों को कोर्ट में पेश किया गया। यहां से एसटीएसएफ ने तेंदुआ गोलीकांड का आधार बनाकर शिकारियों का तीन अप्रैल तक रिमांड मांगा। बाद में रमेश को पकड़ने के बाद राजेंद्र जाधव खुद एसटीएसएफ कार्यालय पहुंच गया। शनिवार को चारों आरोपितों को कोर्ट में पेश किया गया। एसटीएसएफ ने कोर्ट में जो बयान पेश किए हैं, उसमें केवल तेंदुआ शब्द जोड़ा गया है। बाकी बयान में 28 मार्च की पूरी घटना का जिक्र है। राजेंद्र जाधव के बेटे नितिन का आरोप है कि साधे कागज पर पहले हस्ताक्षर करवाए, फिर अपने मुताबिक ब्यान लिखे गए हैं। एसटीएसएफ ने बंदूक, तलवार और एक कछुआ जब्त करना बताया है, जो राजेंद्र के घर की टंकी में रखा हुआ था। मामले में एसटीएसएफ प्रमुख रितेश सरोठिया और रेंजर धर्मवीर सोलंकी से बातचीत करनी चाही तो उन्होंने फोन बंद कर लिया।
अधिकारियों ने रसूखदारों को बचाया
नवंबर 2020 में एसटीएसएफ को तेंदुआ गोलीकांड की जांच सौंपी गई थी। मगर पांच महीने में भी कोई नया सुबूत जांच अधिकारी नहीं खोज पाए। यहां तक संदिग्धों से भी सख्ती से पूछताछ नहीं की। क्षेत्रीय कार्यालय की एसडीओ प्रतिभा अहिरवार और रेंजर धर्मवीर सोलंकी ने प्रकरण में लापरवाही बरती। इसे लेकर अधिवक्ता अभिजीत पांडे ने वन विभाग सचिव, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ, वन व पर्यावरण मंत्रालय, वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो में शिकायत कर दी। मंत्रालय से वाइल्ड लाइफ डीआइजी राकेश जगनिया ने 28 फरवरी को पत्र लिखकर सात दिन में प्रतिवेदन मांगा। 27 मार्च को दूसरा रिमांडर भेजा गया। प्रकरण खत्म करने का दबाव एसटीएसएफ पर बना था। इसके चलते शिकारी मिलते ही जांच अधिकारियों ने गोलीकांड से इन्हें जोड़ दिया। सूत्रों के मुताबिक, दो रसूखदारों को अधिकारियों ने बचाने की कोशिश की है, जिसमें एक निजी अस्पताल का डाक्टर है। अधिवक्ता पांडे ने जांच पर आपत्ति उठाई है और इसकी शिकायत मंत्रालय में ई-मेल के जरिए कर दी। पांडे का कहना है कि पूरे मामले को लेकर कोर्ट में याचिका लगाई जाएगी।
जांच पर उठ रहे ये सवाल
- नौ जुलाई को लेकर एक भी शिकारी की नयापुरा जंगल में कोई लोकेशन नहीं मिली है, जबकि एक शिकारी नयापुरा गांव में रहता है। उसके आधार पर जांच अधिकारियों ने तेंदुआ गोलीकांड से शिकारियों को जोड़ा है। यहां तक डम डाटा में भी कोई काल होना नहीं पाया है।
- शिकारियों को इंदौर रेंज के वनकर्मियों ने पकड़ा। बयान उन्होंने भी दर्ज किए। मगर एसटीएसएफ ने उन्हें अंतिम रूप नहीं देने दिया। प्रकरण की जांच में तेंदुआ गोलीकांड से जुड़ा एक भी सुबूत व शिकार से जुड़ी कोई जानकारी नहीं दी।