Indore News: इंदौर शहर जिसकी रगों में रची-बसी है चित्रकारी की रंगीन विरासत
Indore News: शहर का शासकीय ललित कला संस्थान प्रदेश का पहला चित्रकला संस्थान है।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Sat, 07 May 2022 04:28:38 PM (IST)
Updated Date: Sat, 07 May 2022 04:28:38 PM (IST)

Indore News: इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। आज जिस शहर की खूबसूरती को दीवारों और बैकलेन में की गई चित्रकारी और भी निखार रही है असल में उस शहर की रगों में चित्रकारी की परंपरा तब से रची-बसी है जब होलकर शासकों का यहां राज था। राजाश्रय से निकली रंगों की परंपरा ने पहले शहर को कला संस्थान की सौगात दी, फिर शुरू हुई देश को एक से बढ़कर एक कलाकार देने की परंपरा जो आज तक जारी है।
शहर का शासकीय ललित कला संस्थान प्रदेश का पहला चित्रकला संस्थान है और इसकी सबसे बड़ी खूबी यही है कि इसकी स्थापना के लिए होलकर शासक ने न केवल पहल की बल्कि भवन भी मुहैया कराया। इस तरह शहर में कला की इबारत लिखने की शुरुआत 1923 में हुई।
राज परिवार के चित्रकार रामचंद्र राव जाधव के मार्गदर्शन में अपनी चित्रकला को निखारने वाले दत्तात्रेय दामोदर देवलालीकर की लगन और चित्रकारी से प्रभावित होकर होलकर शासक ने उन्हें होलकर स्टेट का नवरतन मंदिर प्रांगण दिया जिसे आज देवलालीकर कला वीथिका के नाम से जाना जाता है। 1923 से 1927 तक यहां अनौपचारिक ढंग से कला की बारीकियां सिखाई जाती रही लेकिन 1927 में अकादमी के रूप में प्रशिक्षण देने की शुरुआत हुई और नवरतन मंदिर को ललित कला संस्थान नाम मिला। यह वही संस्थान है जिसने दुनिया को मकबूल फिदा हुसैन, सैय्यद हैदर रजा, एनएस बैंद्रे, कला गुरु विष्णु चिंचालकर, डीजे जोशी, श्रेणिक जैन सहित कई चित्रकार दिए। बाद में शासन ने इसे अपने अधीन लिया और इसके नाम के साथ शासकीय शब्द जुड़ गया।
वक्त के साथ बहुत कुछ बदला यहां
एमजी रोड स्थित यह कला वीथिका वर्तमान में केवल प्रदर्शनी या कला को समर्पित समारोह के ही काम आ रही है। एक वक्त था जब यहां कक्षा और कला प्रदर्शनी दोनों साथ लगा करती थी। बाद में इस भवन के पीछे बने अन्य भवन में कक्षाएं संचालित होने लगी और 1980 में डीडी देवलालीकर को समर्पित करते हुए इस भवन को कला वीथिका बना दिया गया। हालांकि उसके बाद भी कई वर्षों तक यहां क्ले और प्रिटिंग की कक्षा लगती रही पर मुख्य रूप से इसे वीथिका का ही दर्जा मिला। वक्त के साथ वीथिका को तो दुरुस्त कर दिया गया लेकिन जिन कक्षाओं में देश के नामी कलाकारों ने चित्रकारी की वह जर्जर होकर खंडहर में तब्दील हो गए और संस्थान 2012 में स्कीम नबंर 78 में किराए के भवन में आ गया।
वक्त के साथ पाठ्यक्रम भी बदला
शासकीय ललित कला संस्थान के प्राचार्य अरुण मोरोणे बताते हैं कि आज भले ही संस्था किराए के भवन में लग रही है पर जिस भवन से इसकी शुरुआत हुई थी वहां आज भी वर्ष भर में कई कला प्रदर्शियां आयोजित होती हैं। सभी विद्यार्थियों के लिए वर्ष में दो प्रदर्शनी, एमएफए और बीएफए अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों के लिए प्रथक प्रदर्शनी, गणेशजी और देवी दुर्गा पर केंद्रित प्रदर्शनी आज भी इस कला वीथिका में लगती है। इसके अलावा संस्थान में वर्षभर में करीब 5 से 6 अतिथि कलाकारों के लाइव डेमोस्ट्रेशन और व्याख्यान होते हैं। जहां तक पाठ्यक्रम की बात है तो वक्त की मांग को देखते हुए विगत वर्षों में यहां एप्लाइड आर्ट का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि विद्यार्थी कला के जरिए मीडिया जगत में अपनी रचनात्मकता से पहचान बना सकें।
कई वीथिका और संस्थानों से संपन्न शहर
चित्रकार राजेश एकनाथ पाटिल के अनुसार शहर ने कला का वह दौर भी देखा जब यहां चित्रकला को प्रदर्शित करने के लिए शहर में केवल एक ही कला वीथिका थी और आज उस दौर का भी शहर साक्षी है जब यहां कई वातानुकूलित वीथिकाएं हैं और वर्ष भर में सैकड़ों कला प्रदर्शनी यहां लगती हैं। शासकीय और निजी कला संस्थानों की अब शहर में कोई कमी नहीं। देवलालीकर द्वारा रखी गई नींव आज भव्य इमारत बन चुकी है।
फोटो: प्रफुल्ल चौरसिया 'आशु'।