इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। संगीत के रसिकों से भरा सभागृह उस वक्त स्तब्ध हो गया जब राग छेड़ते ही सितार के तार ने कलाकार का साथ छोड़ दिया। जिस साज के माधुर्य को सुनने के लिए सैकड़ों श्रोता वहां उपस्थित थे उसके तार का टूटना दो पल के लिए ही सही चिंता के भाव श्रोताओं के मन पर छोड़ गया लेकिन सिद्धहस्त कलाकारों के हाथ में सितार के होने से तार भी तुरंत बदल दिया गया और संगीत की सभा फिर कुछ ऐसी सजी की अंगुलियां सितार पर नाच रही थी और तान श्रोताओं के दिल में उठ रही थी। इंदौर से ही ताल्लुक रखने वाले मेवाती घराने के सितार वादक सिराज खां ने राग अमीर समारोह की अंतिम रात अपने बेटे असद खां के साथ न केवल अविस्मरणीय प्रस्तुति दी बल्कि संगीत के संस्कार का उदाहरण भी मंच से प्रस्तुत किया।
उस्ताद अमीर खां की स्मृति में उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा आयोजित ‘राग अमीर’ कार्यक्रम में रविवार की रात सिराज खां ने मंच से अमीर खां की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि मैं बचपन में उनके साथ इस शहर में खूब घूमा हूं। छत्रीबाग की छत्री उनके साथ देखी तो उनकी गायकी को कइयों दफा सुना। आज मैं अपने बेटे असद को भी इसलिए ही यहां लाया हूं ताकि वह भी इस पावन धरती का आशीष ले सके। अपने वादन का आरंभ इन्होंने खमाज थाट के मधुर राग रागेश्री से किया।
तंतुवाद्य के इस मोहपाश से श्रोताओं को बांधने के लिए उन्होंने खयाल अंग की सितारखानी गतें भी पेश की और तंत्रकारी के साथ गायकी अंग का समावेश भी प्रस्तुत किया। पिता-पुत्र दोनों ने ही सितार थामे कभी सवाल-जवाब के जरिए तो कभी लयकारी, झाले, गतों के माध्यम से मुरीदों को वाह कहने पर मजबूर कर ही दिया। वादन का समापन इन्होंने राग हंसध्वनि में उस्ताद अमीर खां के तराने की बंदिश पेशकर किया। इनका साथ तबले पर अंशुल प्रताप सिंह ने दिया।
इस जोड़ी से पहले महफिल गायकी के नाम थी जिसमें देवकी पंडित ने घरानेदार गायकी लेकिन अलग-अलग गुरुओं की शिक्षा को अपनी गायकी के माध्यम से बखूबी पेश किया। अपनी गायकी ओर कार्यक्रम का आगाज देवकी ने राग गोरख कल्याण से किया था। इस राग में विलंबित एकताल में निबद्ध पं. रामाश्रय झा की बंदिश ‘रैन भई भई भारी’ को अपनी मखमली आवाज में पेश किया। आलापचारी हो या सम पर आकर फिर उठान की बात सभी में इन्होंने बेहद सजीले ठंग से प्रस्तुत किया। द्रुत तीनताल में इन्होंने पं. जितेंद्र अभिषेकी की बंदिश ‘दरस बिन जियरा तरसे’ को भावपूर्ण ठंग से सुनाय। इसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक बंदिशें हिंदुस्तानी और कर्नाटकीय शैली में प्रस्तुत की। तबले पर इनका साथ रोहित मुजुमदार और हारमोनियम पर डा.विवेक बनसोड ने दिया।