
दिल की बीमारी जब दस्तक देती है, तो न तो कोई चेतावनी देती है और कई बार न ही संभलने का मौका। इंसान अपना रोज़मर्रा का जीवन जी रहा होता है और सीने में अचानक दर्द, घबराहट या तेज़ धड़कन सब कुछ बदलकर रख देती है। इस समय में, मरीज, परिजन और डॉक्टर, तीनों के लिए हर मिनट चुनौतियों भरा होता है। डॉक्टर का एक फैसला और टीम की एकजुट कोशिश किसी इंसान के पूरे जीवन की दिशा तय करती है। समय पर और सही इलाज मिल जाए, तो वही दिल दोबारा जीवन की रफ्तार पकड़ लेता है और थोड़ी-सी लापरवाही या देरी सब कुछ छीन भी सकती है।
ऐसे ही नाज़ुक पलों में इंदौर के दो ऐसे मरीजों को सफल इलाज मिला, जिनके लिए चिकित्सा विज्ञान भी एक कठिन परीक्षा के दौर से गुजरने वाला था। एक ओर दिल की दीवार फट चुकी एक बुज़ुर्ग महिला थीं, तो दूसरी ओर शरीर की सबसे बड़ी धमनी के फटने से जूझता एक अधेड़ उम्र का पुरुष। दोनों ही मामलों में समय के खिलाफ जंग थी और इस जंग में नेतृत्व कर रहे थे कार्डियोथोरेसिक और वैस्कुलर सर्जन डॉ. मोहम्मद अली।
पहला मामला 75 वर्षीय महिला का था, जो दिल का दौरा पड़ने के बाद एक ऐसी दुर्लभ और बेहद खतरनाक स्थिति में फँस गईं, जहाँ ज़िंदगी हर पल हाथ से फिसलती नजर आ रही थी। उनके दिल के निचले हिस्सों को अलग करने वाली दीवार फट चुकी थी। इस स्थिति को चिकित्सकीय भाषा में वेंट्रिकुलर सेप्टल रप्चर कहा जाता है। सरल शब्दों में कहें, तो जैसे दो कमरों के बीच की दीवार गिर जाए और सब मिल जाए। परिणामस्वरूप, रक्त का प्रवाह पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है और दिल शरीर को पर्याप्त खून पहुँचाने में असमर्थ हो जाता है।
महिला की स्थिति अत्यंत गंभीर थी। दिल की पम्पिंग क्षमता महज़ 20 से 25 प्रतिशत तक सिमट चुकी थी। हालत यहाँ तक बिगड़ गई कि गुर्दों ने भी काम करना लगभग बंद कर दिया और क्रिएटिनिन का स्तर 7.5 तक पहुँच गया। वह कार्डियोजेनिक शॉक की अवस्था में थीं। यह एक ऐसी स्थिति है, जहाँ जीवन को बचाना अक्सर चमत्कार जैसा माना जाता है। डॉक्टर और उनकी टीम ने बिना समय गँवाए इंट्रा-एऑर्टिक बैलून पम्प लगाकर स्थिति को संभाला। परिजनों को पहले ही बता दिया गया था कि बिना सर्जरी के उनके बचने की संभावना लगभग शून्य है। यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन जोखिम उठाए बिना जीवन को बचाया भी नहीं जा सकता था।
ऑपरेशन के दौरान दिल में लगभग ढाई सेंटीमीटर का बड़ा छेद मिला। आसपास की माँसपेशियाँ इतनी नाज़ुक थीं कि मानो गीली रोटी पर सिलाई करनी पड़ रही हो। इस चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में डॉक्टर ने इंफार्क्ट एक्सक्लूज़न तकनीक का सहारा लिया। विशेष मेडिकल कपड़े और बायो ग्लू की मदद से दिल के भीतर एक नई दीवार बनाई गई और रिसाव को रोका गया। सर्जरी लंबी और कठिन रही, लेकिन महिला ने इसे सहन कर लिया। शुरुआती दिनों में डायलिसिस की आवश्यकता पड़ी, पर धीरे-धीरे दिल और गुर्दे दोनों ने फिर से काम करना शुरू कर दिया। आज वह महिला अपने पोते-पोतियों के साथ घर पर सामान्य जीवन जी रही हैं और पूरी तरह स्वस्थ हैं।
दूसरा मामला उतना ही भयावह था। 51 वर्षीय को एऑर्टिक डिसेक्शन हुआ था, जिसे चिकित्सा जगत की सबसे घातक स्थितियों में गिना जाता है। शरीर की मुख्य धमनी महाधमनी की भीतरी परत फट चुकी थी और खून गलत दिशा में बहने लगा था। इस स्थिति में हर गुजरता घंटा मौत के खतरे को लगभग एक प्रतिशत तक बढ़ा देता है।
सीटी स्कैन में सामने आया कि मरीज की महाधमनी जड़ों से लेकर पैरों तक फटी हुई थी। इतना ही नहीं, उसका एऑर्टिक वॉल्व भी क्षतिग्रस्त होकर खून को रिसने दे रहा था। दिल की पम्पिंग क्षमता इतनी घट गई कि सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत ही रह गई। स्थिति बेहद नाज़ुक थी और ऑपरेशन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।
डॉ. अली और उनकी टीम ने नौ घंटे तक चली मैराथन सर्जरी में न सिर्फ फटी हुई महाधमनी को बदला, बल्कि वॉल्व को भी सफलतापूर्वक प्रतिस्थापित किया। इस सर्जरी के लिए उच्चतम स्तर की विशेषज्ञता और धैर्य की जरुरत होती है। ऑपरेशन के बाद मरीज को गहन चिकित्सा इकाई में रखा गया, जहाँ उसने धीरे-धीरे सुधार दिखाया। बारह दिनों के भीतर मरीज स्वस्थ होकर अपने घर लौट सका।